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Showing posts from May, 2024

chand ko dekha (चाँद को देखा)

chand ko dekha toa, sitaro ne sikayat ki, sitaro ko dekha toa, chand ne kaha mujhse beimani ki, chahe jo bhi ho ye dost, iss raat ki galti hai, jo gujarti nahin, warna farmaish toa subah ki thi, lekin chand ki roshni mein, iss dil ne subah samajh kar nadani ki......... चाँद को देखा तो सितारों ने शिकायत की सितारों को देखा तो चाँद ने कहा मुझसे बेईमानी की चाहे जो भी हो ये दोस्त इस रात की गलती है जो जल्दी गुजरती नहीं फरमाइश तो सुबह की थी लेकिन चाँद की रोशनी में इस दिल ने सुबह समझ कर नादानी की

कच्ची मिट्टी

कच्ची मिट्टी को कहाँ पता था की वो दीप बन विभा फैलाएगी घनघोर तिमिर को भेद श्री राम को इक दिन राह दिखाएगी।। कुम्हार ने तो बनाये थे बहुत सारी कृतियाँ कलश, घड़ा, घर, घरौंदा, गुल्लक इत्यादि तब वो दीया अपनी किस्मत पे था रोया भट्टी में उसको भी गया था बहुत जलाया- तपाया और वो बनकर रह गया बस एक छोटा सा दीया! साँझ होते ही जब सूर्य का उजास खो गया धरा को जब तिमिर ने अपने आगोश में ले लिया ना कलश दिख रहा था ना ही घर घरौंदा तब उस दीये ने ही फिरसे जलकर प्रकाश था फैलाया स्वाभिमान से भरा वो लौ जैसे सर उठाय खड़ा हो भगवान की आरती का सौभाग्य भी पाया लेकिन बिन बाती बिना तेल के उसका क्या अस्तित्व? शायद एक मिट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं ठीक वैसे ही मनुष्य (दीया) मानवता (बाती) ज्ञान (तेल) सेवा (प्रकाश) के बिना शायद कुछ भी नही...

ये घाव

जितना दिखता है, उससे ज्यादा गहरा है ये घाव ताज़ा दिखता है, लेकिन बहुत पुराना है ये घाव हरा दिखता है, लेकिन बहुत काला है ये घाव दर्द जरूर देता है, लेकिन बहुत मीठा है ये घाव रुला जरूर देता है, लेकिन याद दिलाता है ये घाव पहले पराया था, लेकिन अब अपना लगता है ये घाव

कोरोना का वध

घनघोर अंधकार फैला है मन में डर का बसेरा है अगर तम को भगाना है तो बस दीप ही जलाना है बस दीप ही जलाना है सबको साथ चलते जाना है देश हित में जो भी हो वो सब करते जाना है माँ भारती के नौनिहालों हमें एक जुट रहना है वसुधा है पुकार रही भारत को आगे आना है खुद के साथ- साथ इस विश्व को बचना है हिम्मत की मशाल जला तिमिर से पार पाना है कोरोना का वध कर विजय ध्वज फहराना है।

ब्रह्म की तलाश

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जहां से चला था घूमकर फिर वहीं खड़ा हूँ, अभी पूर्णतः मरा नहीं, अधमरा हूँ। आकांक्षाओ और इक्षाओं के बीच, कहीं तो आज़ादी दब सी गयी है, हर कुछ पाने की असीम चाह में, ज़िन्दगी देखो कहीं छूट सी गयी है, मन को जब खामोश अकेले टटोलता हूँ, तो एक दर्द का आभाष होता है, सब कुछ पाकर भी जैसे कुछ ना पाया हो, ये जीवन अधूरा सा रह गया प्रतीत होता है कुछ तो है अपने अंदर जो पूर्ण स्वरूप लेना चाहता है जैसे कैद हो इस शरीर रूपी पिंजरे में, बेचैन, बेबस लेकिन असीम ऊर्जा से भरा वो खुद को आज़ाद करना चाहता है, फंस कर रह जाता है इंसान माया के जाल में भूल जाता है कि क्यों आया है इस संसार में, जगा अपनी चेतना को और उभर के दिखा कैसा और कितना तूने अद्भुत ये जीवन पाया है ज़िन्दगी की ये जद्दोजहत बस जीने के लिए नहीं ये महज इंसान बनने के लिए नहीं, ये जो जद्दोजहत है वो भगवान बनने के लिए है सब में छुपा है वो ब्रह्म उसे तलाशने की जरूरत है तराशने की जरूरत है।। ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या, जीव ब्रह्म ईवा नपरः।

पापा

दुनिया में अगर कोई असली हीरो हैं तो वो हैं पापा जब जब मैं गिरा, आपकी बहुत याद आई  जो जो बातें समझाईं थी वो सब याद आईं  आपसा कोई नहीं है दूजा  जितनी भी करूँ कम है पूजा आपसे ही तो है ज़िन्दगी मेरी आज जो भी मैं हूँ  वो आपसे ही हूँ आपके बिना तो मैं अधूरा भी नहीं हूँ पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्यारा आपसे ही ये जग सारा पापा मेरे प्यारे पापा मेरी लाइफ के सुपर हीरो  आपके बिना मैं तो जीरो मम्मी की मार से बचाते कितना भी थक जाते मुझे कांधे पे घुमाते बिना मांगे सब कुछ लाते पता नहीं कैसे जान जाते पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्यारा आपसे ही ये जग सारा पापा मेरे प्यारे पापा जब भी गिर जाता था  आप उठाने आते थे हौसला मेरा बढ़ाते थे अब जब भी गिर जाता हूँ  आपकी याद बहुत आती है जीवन के आपा धापी में कमी बहुत खलती है पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्यारा आपसे ही ये जग सारा पापा मेरे प्यारे पापा क्यों छोड़ चले गए  हमसे रूठ क्यों गए हमसे क्या हुई है गलती क्या हमारी याद नहीं आती  क्या मेरी फिक्र नही सताती  अब तंग नहीं करेंगे कभी वापस आ जाइये अभ...

दोस्त book38

दिल तन्हा जब भी होता है दोस्त तू याद बहुत आता है जीवन के इस आपा धापी में तेरा ना होना बहुत खलता है तू ही तो वो कंधा था जिसपे मैं टेक सर सुकून से रोता था तू ही तो वो बन्दा था जिसको मैं अपना मर्म सुनाया करता था तू ही तो वो तिनका था जिसके मैं सहारे जीवन जिया करता था तू ही तो वो हौंसला था जिससे मैं ऊंची उड़ान भरा करता था तू ही तो वो सलाह था जिससे मैं समाधान निकाला करता था तू व्यस्त हो गया अपने जीवन में खुद बाद में बोल कर भूल जाता है तू नाराज़ है मुझसे तो बोल ना रूठा हुआ अच्छा नहीं लगता है तेरी आवाज़ सुने जमाना हो गया अब तो मेरा दम भी घुटने लगता है तेरे बगैर है ये ज़िन्दगी अधूरी सी मेरा जीने का मन भी नहीं करता है महीने में ना सही साल में एक बार तू कम से कम बातें कर सकता है 'प्रभास' बैठा रहता है तेरे इंतेज़ार में याद आ जाए तो फ़ोन कर सकता है

yaad aata hai book17

apne shehar ki galiyan yaad aatin hain., ghar ki chaukhat roj bulatin hain, hain itni mazbooriyan ki apno se door hain, warna ye paun ghar ke taraf hie chalna chahtin hain, wo maa ka thappi de kar sulana, papa ka cycle sikhna- yaad aat hai, pichhe -pichhe bhag kar maa khana khilati thi, wo kaan aethna- yaad aata hai, nikale itne door ke hum, har raaste mein ghar ka pata nazar aata hai,, school jate hue paise dena, thak gaya toa pair dabana, shham ke samay papa ka bazaar ghumana, yaad aata hai. sapno ke shehar mein jo apne chhut gayein hain, wo samajh kar bhi samajh nahin aata hai, bhai ke saath khelna aur usse jjhagarna, uske kadmon ke nishan ke pichhe,, apne kadmon ke nishan banana- yaad aata hai. iss dhul bhare shehar mein, apne ghar ka har phhol yaad aata hai. doston ke saath ghumna, chai ke saath baatein ghumana, jis chaurahe pe bichhard gaye hain, wo chauraha yaad aata hai, har mod pe ek naya raasta nazar aata hai, nikle the kahin aur pahunche hain kahin, manzeelon ke safar mein, ...

बचाने की ज़रूरत है-पर्यावरण को प्रताड़ना से book11

बचाने की ज़रूरत है प्रकृति को शोषण से, पर्यावरण को दोहन से, वरना तापमान बढ़ता ही जाएगा वन-जन-जन्तु का जीना मुश्किल होगा बचाने की ज़रूरत है गर्मी को शीत से, आर्द्रता को शुष्क से, वरना रेगिस्तान में बर्फ गिरेगी, बारिश में सूखा होगा। बचाने की ज़रूरत है बादलों को गिरते तापमान से प्रदूषित SO2 और NO2 se वरना बूंदों की जगह ओला गिरेंगे, बारिश नहीं अल्मीय वर्षा होगी। बचाने की ज़रूरत है ओज़ोन को cfc से, धरती को UV विकिरण से वरना समुंद्री जल स्तर बढ़ता ही जाएगा बाढ़ को संभालना मुश्किल होगा बचाने की ज़रूरत है थल एवं जल को प्लास्टिक और अन्य क्षेपण से फिज़ा को हानिकारक गैसों से, वरना शुद्ध जल घटता ही जायेगा सांस भी लेना मुश्किल होगा जीव जन्तु जिन्दा ना रह पाएंगे अंत में प्रलय से बचना मुश्किल होगा।

उसकी गली: गज़ल

उसकी गली से जब भी गुजरता हूँ छत की तरफ देख लिया करता हूँ क्या पता दिख ही जाए किसी दिन बाइक को धीरे कर लिया करता हूँ ब्याह के चली गयी वो गैर के साथ फिरभी उसे याद कर लिया करता हूँ जिस मंदिर में हम साथ कभी जाते थे सिर झुका सजदा कर लिया करता हूँ दर-ए-रब पे अब भी तू क्यों जाता है फ़रियाद-ओ-आह कर लिया करता हूँ इबादत करके भी 'प्रभास' क्या कर लेगा अगले जन्म के लिए माँग लिया करता हूँ

चंद्रयान 2

चंद्रयान 2 Breaking news देशवासियों चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, सफलता और असफलता तो कर्म के साथ जुड़े ही रहते हैं, हमारे वैज्ञानिकों ने नवाचार किया इसके लिए हमें उनपे गर्व है। वैसे हमने भी प्रचार कम नहीं किया, अभी मैं फ्रांस गया था तो बहुत फेंक कर आया हूँ कि हम चाँद पे उतरेंगे तो सबको पार्टी दूँगा। खैर हमें विश्वास है कि विक्रम से हमारा संपर्क फिर से हो पायेगा, अभी श्याद network का issue है roaming में network नहीं आ पाता है यह सबको ज्ञात तो होगा ही, जैसे ही वो नेटवर्क क्षेत्र में आएगा हमारे पास सूचना आ जायेगी। कुछ दिनों बाद..... बधाई हो! विक्रम मिल गया, उसने खुद हमसे संपर्क साधा है, हमनें तो उम्मीदें छोड़ ही दी थी, आखिर हम यहाँ पृथ्वी पे दावूद को ढूंढ नहीं पा रहें तो वहाँ चाँद पे कैसे ढूंढते। विक्रम ने बताया है कि सब कुशल मंगल है, प्रज्ञान चंद्रमा के सतह पे अटखेलियाँ करता रहता है और चंदा मामा- चंदा मामा कहाँ हो कह के पुकारता रहता है, हम जल्द ही उस बुढ़िया को भी ढूंढ लेंगे जो कई सालों से वहाँ रोटी ही बना रही है, आखिर वो इतना गेंहूँ कहाँ पीसवाति होगी। मन की बात में अब जाते जाते यही...

विक्रम और प्रज्ञान

चंद्रयान से बिछड़ने के बाद विक्रम और प्रज्ञान का क्या होता है, विक्रम के दिल में क्या चलता है, वो अपने देश भारत और अपने जनक इसरो को क्या संदेश देना चाहता है, उसे कवि 'प्रभास' ने क्या खूब रचा है... विक्रम और प्रज्ञान नाम है हमारा चंद्रयान से निकले थे अभियान पूरा करने के लिए भले बिछड़ गएं हैं इसरो से लेकिन खोये नहीं हैं हम। तेजी से धम धमाते पटकन खाते गिरे लुढ़क पुढक कर किसी तरह रुके विपरीत परिस्तिथियों में भी हौसले और बहादुरी से डटे रहे हम देशवासियों के सपने को पूरा करेंगे देश के सम्मान की रक्षा करेंगे वैज्ञानिकों के मेहनत का अहसास है हमें इसरो को निराश नहीं करेंगे हम बर्फीली सतह पे खड़े हैं चारो तरफ पानी से घिरे हैं कर्तव्यनिष्ठ साहसी प्रज्ञान निकल चुका है अपनी खोज को जरूर पूरा करेंगे हम घने अंधेरे में डूबे है धुंध में कहीं फंसे हैं शीतल और शुष्क है फ़िज़ा सूर्य की किरणों से परे हम बर्फ ही बर्फ है चारो तरफ पानी पे तैरती शिलाएँ हैं हर तरफ किसी भी जीव का निशान नहीं सुना सुना सब बस अकेले ही हैं हम सभी शोध हमने कर लिए हैं सारा डेटा इक्कठा कर लिया है यूँही गुम...

कारोबार

जिसकी हर शाम दोस्तों के साथ गुजरती थी, जिसके लिए दोस्त परिवार और रिश्तेदारों से भी ज्यादा मायने रखते थे, जो एक शाम में हज़ारों रुपये दोस्तों पे उड़ा देता था, उस वैभव को क्या पता ...

मंदी की मार

माया जल्दी से मेरा नाश्ता लाओ मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है, बढ़िया इस्त्री की हुई सफेद शर्ट, क्रीच वाली ग्रे पैंट, मैचिंग टाई, पॉलिश किये हुए जूते और हाँथों में चमचमाती घड़ी जो उसके ब्लेजर की आस्तीन से झाँक रही थी, डाईनिंग टेबल पे बैठा वैभव अपनी पत्नी माया को आवाज़ देता है। दो मिनट रुको वैभव बोलते हुए माया तेजी से अपना हाथ चलाती है, नौकरानी को प्लेट और पानी लगाने को बोलती है और झटपट सुबह का नाश्ता वैभव को परोसती है। इधर वैभव लगातार मोबाइल पे अपने ऑफिस के साथियों से बात करता रहा, नाश्ता करते हुए भी उसके मोबाइल की घंटी चुप होने का नाम नहीं ले रही थी। थ्री बी.एच. के आलीशान फ्लैट से निकल, लिफ्ट से तेरहवी मंजिल से नीचे उतर अपनी पार्किंग के पास पहुँचता है जहाँ उसका ड्राइवर रमेश काली रंग की लंबी बी.एम. डब्ल्यू कार को साफ कर रहा होता है। वैभव कार में बैठते ही बोलता है जल्दी चल रमेश आज कंपनी की बोर्ड मीटिंग गई, आज साल के आखरी तिमाही का निर्णय आना है। कांफ्रेंस हॉल में पहले से ही सभी बोर्ड के सदस्य कंपनी के सी. ई.ओ वैभव रंबानी का इंतज़ार कर रहे थे। कंपनी के सी. एफ.ओ ने सबके सामने नतीजे पेश किए, ...

महात्मा

हर जीव के प्रति रखते थे संवेदना निष्काम कर्म से बने वो महात्मा

महात्मा बन गएं

यूँही नहीं गांधी मोहनदास से महात्मा बन गएं काले कोट को त्याग सफेद खादी धारण किया उन्होंने कोर्ट के महत्वकांक्षी गलियारों को छोड़ गांव की पगडंडियों पे चलना पसंद किया गोरे काले का भेद मिटा जात पात से ऊपर उठ उनके लिए हमेशा देशहित सर्वोपरि रहा निहत्ते निडर खड़े हो कर सत्य अहिंसा का मार्ग दिखाया अफ्रीका हो या बिहार शोषण के खिलाफ सत्याग्रह को अपना अहम हथ्यार बनाया आमरण अनसन हो या भूख हड़ताल उन्होंने देशवासियों के लिए हर त्याग किया असहियोग आंदोलन से अहिंसा का पाठ पढ़ाया तो सविनय अवज्ञा हेतु दांडी मार्च भी किया बार-बार जेल जाने पर भी उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का नारा बुलंद किया देश के दो बेटों को साथ लेकर चलना चाहते थे लेकिन देश विभाजित होने से बचा ना सके अंत में वो ना समझो द्वारा गोली का शिकार हो गएं यूँही नहीं गांधी मोहनदास से महात्मा बन गएं।

ख्वाब सिरहाने

ख्वाब सिरहाने रख कर सोया जब-जब टूटा फुट कर रोया निकले थे मंजिल पाने को रास्ते पे भटक कर खोया

पत्थर 50

कौन कहता है पत्थरों को दर्द नहीं होता फिर वो आवाज़ें...वो चीखें कैसी हैं जो निकलतीं हैं उनके तोड़े जाने पड़ वो भी तो बने हैं अणुओं से जो जुड़े हुए हैं एक दूसरे से ठीक उसी तरह जैसे हम जीव बने हैं कोशिकाओं से हाँ! ये अलग बात है कि हमारी तरह उन्हें ज़िन्दा रहने के लिए खाना नहीं पड़ता और अगर ये खाने पीने का मामला ना होता तो फिर हम इंसानों और पत्थरों में तुम ही बताओ आखिर क्या फर्क होता? जैसे किसी पत्थर से ठेस लग जाने पड़ कभी पत्थर को रोते देखा है नहीं ना वैसे ही हम इंसान भी किसी को ठेस पहुंचा भला कहाँ कभी रोते हैं लेकिन किसी को चोट पहुचाने के दौरान आह की आवाज़ खुद से भी जरूर आती है ठीक उन्हीं पत्थरों की तरह।

ख़्वाब

स्याह रातें लाल हो चुकीं हैं, 2122 212 122 हसरतें बदहाल हो चुकीं है, 2122 212 122 रोज़ मरते है कई ख़्वाब यहाँ 2122 212 22 जीस्त भी मुहाल हो चुकी है 2121 212 122

चौथा बच्चा

क्या राहुल दिखाई नहीं देते, कहाँ रहते हो आज कल कविता लिखते-लिखते क्या अब उपन्यास भी लिखने लगे- आनंद ने व्यंगात्मक शैली में राहुल से पूछा राहुल: नहीं यार वो बात ये है कि.... बीच में ही राहुल की बात को काट कर सुमित बोलता है कविता कहानी में क्या रखा है राहुल, यूँही झोला उठा कर चलते रहोगे ज़िन्दगी में दो वक्त की रोटी नसीब हो जाएगी वही बहुत है, किसी और काम के बारे में सोंचो। राहुल: वो मुझे बच्चों को संभालना पड़ता है आजकल भइया का परिवार अलग हो गया है कोई उन्हें देखने वाला नहीं, सुनैना अकेले नहीं कर पाती.... आनंद हँसते हुए बोला- तो किसने बोला था दूसरा बच्चा इतनी जल्दी करने के लिए, थोड़ा सब्र से काम ले लेते अपना नहीं तो कम से कम देश का तो सोचते राहुल दुखी मन से-  दो नहीं भाई तीन बच्चे सुमित: अब ये तीसरा बच्चा कहाँ से आ गया, इतनी जल्दी कोई फैक्ट्री खोल रखी है क्या? पूरी तरह से या तो पागल हो या ठरकी हो गए हो...राहुल: तीसरा बच्चा मेरी बूढ़ी माँ है ।

रुक मेरे बेटे

रुक मेरे बेटे थोड़ा wait कर, 2 min जरा सा wait कर चेक कर लेने दे मुझे पहले whatsapp चेंज कर लेने दे fb का status लिख लेने दे दो चार पंक्तियां yq पर फिर भेज लेने दे उन्हें insta पर रुक मेरे बेटे थोड़ा wait कर

होली

रंगों से भरा हो आपका घर संसार दिलों में हो सबके प्यार ही प्यार भूला कर भेद भाव द्वेष अहंकार मनाए मिलकर होली का त्योहार

कर्मपथ

कर्म पथ पे बढ़ता चल कदमताल से होती हलचल पथभ्रमित ना होना कभी त्याग ही दिलाता सुनहरा कल।

टूटता तारा

धीरे-धीरे छूट रहा जो भी था मुझे प्यारा मैं गिर रहा ऐसे जैसे कोई टूटता तारा

समय book23

समय से ही समस्या समय से ही समाधान है समय जग में सबसे बलवान है समय ही ले जाता शिर्ष पर समय ही लाता फिर फर्श पर समय को जिसने जीत लिया वो ही कहलाता सुल्तान है।

हंसते- हंसते book21

यूँही गुजर रही है ज़िन्दगी हंसते-हंसते, कुछ हम पे हंसते तो कुछ पे हम हंसते, कुछ होते हालात ऐसे की है हसना पड़ता, कुछ तो कभी हम हालात पे हंसते, हंसते रहो कहीं ये ज़िन्दगी बुरा ना मान जाए काँटों भरी ही तो है बस काट दो हंसते- हंसते।

नींद book24

अर्धरात्रि हो ही जाती है सब समेटने में साहब सबकी उम्मीदें हैं, ख्वाहिशें हैं, जरूरतें हैं खुद में हौंसला भी चाहिए हर रात संजोने के लिये सबको ख्वाब बना कर नींद में पिरोने के लिये।

दोहराया है दोराहा। book25

इधर जाऊं  के उधर जाऊं रुकूँ कहीं के दौड़ता जाऊं मन को विचलित करने फिरसे दोहराया है दोराहा। जीवन पथ पे चलता चला कभी गिरा तो कभी उठा सोंच को भ्रमित करने फिरसे दोहराया है दोराहा।

यादें बुक31

दिल की व्याख्या करने को जब काग़ज़ पे क़लम ले उतरा यादों से घिरा मेरा मन भूत काल में चलता चला। तरह तरह के भाव हैं अातें न जाने कैसी है ये व्यथा  यादों के हर रंग को समाने रंग क़लम अब है आ निकला। कितना रोचक कितना सुहाना हर दर्द का तीस-तीस कर जाना वापस अब है किसको जाना अच्छा लग रहा है यादों में आना। गुज़रगएं इतने साल और इतने महीने  आएँ कितने मोड़ छूटें कितने पसिने यादें सिखा रहीं हर पल को जी ले हर पल को जित ले, हर पल जी ले।

साहस book32

ख़ुश मिज़ाज मौसम में ख़ुश मिज़ाज हम रहने दे यूँही ना दे कोई ग़म  जीवन मैंने माना की तूझमे है बहुत दम साहसी हूँ, है साहस मेरा करम  तेरे हाँथों में  माना के हैं भाग्य कि कमान थका मुझे, गिरा मुझे, कर तू मुझे परेशान हर समय की पटकथा पे गीत लिखता जांउगा, धैरय है इतना के तूझे असमंजस करता जांउगा।

वक़्त और अपने book67

इंसान वक़्त से ज्यादा अपनों से परेशान हैं जो वक़्त से भी ज्यादा जल्दी बदल जाते हैं खैर इसमें उनकी कोई गलती नहीं अक्सर जहाज़ डूबने से पहले चूहे कूद जाते हैं। रंग बदलते कहाँ देर लगता है भला वक़्त खराब होते ही झट से भाग जाते हैं ज्यादातर हैं यहाँ मतलब के यार काम निकलते ही साथ छोड़ जाते हैं। जिनको कभी था सहारा दिया वो भी गुरबत में मुह फेर जाते हैं खुशी के पलों में साथ हँसने वाले भी गम में अकेला रोता छोड़ जाते हैं। वक़्त के चक्रव्यूह में फंस कर अक्सर जाने कितने ही अभिमन्यु मर जाते हैं अपनों को दोष दें या इस वक़्त को जो बदलते वक़्त के साथ बदल जाते हैं

पाप book65

लडकों की चाह रखने वाले कन्या पूजन के लिए लड़कियाँ ढूंढते दिखें बूढ़ी माँ को घर में प्रताड़ित करने वाले मंदिरों में माता की जय जयकार करते दिखें रास्ते में चौक चौराहे पर लड़कियाँ छेड़ने वाले मनचले लोफर मूर्तियाँ बैठते दिखें सदियों से रावण है जल रहा पाप खत्म नहीं हुआ पाप को पालने वाले ही तीर चलाते दिखें

मैं नशे में हूँ

हाँ  मैं नशे  में हूँ  सही पकड़े हैं मैं चरसी से हूँ  ऐरा गैरा ना समझना  मैं हेरोइन  का सेवन करता हूँ  जहाँ जाऊं  जिसके पास जाऊं  मिलता बस नशा हैं हाँ मैं हूँ तुम जैसा ही, एक युवा मुझे देख कर सीख लेना मुझ जैसा नहीं है बनना हाँ भाई हाँ मैं मजे में हूँ पता नहीं क्यों मैं ऐसा हूँ मैं नशे में हूँ सही पकड़े हैं मैं चरसी से हूँ। 

गंगा 2 book65

चाँदी सी चमकती वो भागीरथी बन कर निकली प्रयागराज में मिली अलखनंदा से तो गंगा बन बह चली। पहाड़ों में वो घूमती फिरती छोटी बच्ची सी इठलाया करती जैसे किसी गली में खेलते है बच्चे वो खाड़ियों में रुनझुम खेला करती। गंगा वादियों से निकल कर ऋषिकेश में अलग ही नज़र है आती हरिद्वार में खूब तेज बहती भीड़ में थोड़ी घबराई हुई सी लगती। अविरल बहती चंचल चमकती गंगा कितनी सुहानी है दिखती लेकिन हो जाती है गंदी मैली ज्यूँ- ज्यूँ वो शहरों से गुजरती। जहाँ- जहाँ से वो है गुजरती धरा को उर्वरक करती जाती निःस्वार्थ एक माँ के जैसी वो सबका पालन पोषण है करती।

गंगोत्री से निकली गंगा book64

गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में कितने ही गांव बसे इसकी पावन राह में कितनी सभ्यताएं पली इसकी उर्वरक बांह में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में कितनी ही नदियाँ मिली इसकी अविरल धार में झुकी यमुना और कोसी इसकी अलौकिक शान में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में कितने ही घाट बने इसको पाने की चाह में प्रशिद्ध हुए हरिद्वार व काशी इसकी सेवा सत्कार में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में कितने ही जीव जंतु पनपे इसके शुद्ध जल संसार में जीते डॉलफिन और घड़ियाल इसके विशाल गहरे पन में गंगोत्री से निकली गंगा जाकर गिरी बंगाल में।

पिता book54

दो जोड़ी कपड़े में ज़िन्दगी बिता देना बिना दिखावे के साधारण जीवन जीना पाई पाई पैसे जोड़ अपने बच्चों को पढ़ाना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना हमारी बेहतरी के लिए प्रतिबंध लगा रखना उनका बहुत बातों पे शख्त रूप अख्तियार कर लेना हमारे भविष्य के लिए अपना आज कुर्बान कर देना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना अपना पेट काट कर अपने बच्चों का पेट भरना अच्छे घर में बेटियों की शादी करना साथ में अपना खुद का नया घर भी बना लेना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना खुद की ख्वाहिशों का गला घोंट देना हमारे ख्वाबों के लिए दिन रात एक कर देना कभी किसी से कोई शिकायत ना करना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना।

दरिया for book 1

दरिया को कहाँ पसंद है दायरे में रहना, बाढ़ बन सब कुछ बहा ले जाता है , समंदर में समा कर भी कहाँ अस्तित्व है खोता, लहरें बन साहिल से वही तो टकराता है। समंदर तो रहा है हमेशा से ही नकारात्मक, नीरस, नमकीन और निर्रथक, भले फैला हो समस्त धरती पे... फिरभी, चाँद को देख उसे हो जाती है घबराहट , बार-बार चट्टानों से टकरा बिखर जाता है, पीछे जा खुद को फिरसे समेटता, फिर वापस पूरा जोर लगा, दहाड़ता हुआ आज़ादी के लिए लड़ता है, ऊष्मा से खुद को तपा भांप बन, दरिया फिरसे बादल का अवतार लेता है, खुद को मिटा धरती की प्यास बुझा, फिरसे नई राह बना अविरल बहता है।

क्या पूरा कर पाऊंगा book48

आँखों में नींदें नहीं अब ख्वाब रहते है पलती है ख्वाहिशें बच्चों की उम्मीदें उनकी सारी जरूरतें क्या पूरा कर पाऊंगा अच्छा खाना पीना अच्छे से रहना सहना पढ़ना लिखना पहनना बिस्कुट चॉकलेट चिप्स छोटी-छोटी सी चाहतें क्या पूरा कर पाऊंगा नन्हे-नन्हे हैं ख्वाब थोड़ी सी है ख्वाहिशें एक टॉफी भर ही तो हैं इनकी फरमाईशें बच्चों जैसी ही जरूरतें क्या पूरा कर पाऊंगा आजकल कमा नहीं पाता घर संभाल नहीं पाता बंद हो गया कारोबार कोई नौकरी भी नहीं देता आखिर बिना पैसे के क्या पूरा कर पाऊंगा

ज़िन्दगी जी बस खुल कर जीने के लिए book42

समय मुझे अपने बहाव में बहा देना चाहती है मैं अपने हिसाब से तैरना चाहता हूँ, लोग तो अपने हिसाब से चलाते थे और चलाते ही रहेंगे, मैं एक बार और बार-बार ज़िन्दगी से मुहब्बत करना चाहता हूँ, लोगो ने तो समय को भी घड़ी में कैद कर रखा है मैं जिंदा नहीं महज जीने के लिए आज़ाद था और मैं आज़ाद ही रहना चाहता हूँ। मेरे हौंसलों की उड़ान अभी देखी हैं कहाँ आसमान को भी धरती पे झुका रखा है गिर गया एक दो बार तो क्या मैं मिट्टी में मिल गया हूँ देख फिर खड़ा हूँ फिर गिरने के लिए, गिरने के डर से तू भले ना चले, देख मेरे पर फिर उगे हैं उड़ान भरने के लिए। देख मेरे पर फिर उगे हैं उड़ान भरने के लिए।। बंदे मेरे बंधु तू कोशिश करना ना छोड़ देना ऊपर वाला जरूर मिलेगा तेरी फर्याद सुनने के लिए शिकायत ना करना तू उसकी और ना किसी की शुक्रिया अदा करना बेशक़ तुझे ज़िन्दगी देने के लिए अपने हिसाब से जीना है तो लड़ना ही पड़ेगा आज कल भीख भी देते हैं लोग पुण्य कमाने के लिए औरो की ना देख  अपनी  करता जा ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए।।

समय से बंधा सूर्य book41

शीर्षक: समय से बंधा सूर्य इधर आया तो उधर भी गया, ऊपर गया तो नीचे भी आया, जितना भी जोर लगाया, अंत में पराजय ही पाया, घाट-घाट का पानी पिआ, सीखा चाहे हो पुण्य या पाप, मदारी ने ऐसा नाच नचाया, पटका ऐसे के उठ ना पाया, गिरता रहा उठता रहा उठ-उठ के गिरता रहा आदत सी हो गयी पराजय कि अंत में समय ही जीतता रहा बहुत घाव दिये समय ने, लेकिन वही हर दाव भी सिखाता रहा, लड़ना, जूझना, जीना हर परिस्थिति में, वो हर भाव में हसना सिखाता रहा, समय को गुरु मान कर शिष्य की भांति बस सीखता रहा, समय से बंधा तो है सूर्य भी, फिरभी देखो कैसे वो  डूबता रहा, उगता रहा और चमकता रहा।

ब्रह्न की तलाश book 40

जहां से चला था घूमकर फिर वहीं खड़ा हूँ, अभी पूर्णतः मरा नहीं, अधमरा हूँ। अकांछाओ और इक्छाओ के बीच, कहीं तो आज़ादी दब सी गयी है, हर कुछ पाने की असीम चाह में, ज़िन्दगी देखो कहीं छूट सी गयी है, मन को जब खामोश अकेले टटोलता हूँ, तो एक दर्द का आभाष होता है, सब कुछ पाकर भी जैसे कुछ ना पाया हो, ये जीवन अधूरा सा रह गया ये ज्ञात होता है कुछ तो है अपने अंदर जो पूर्ण स्वरूप लेना चाहता है जैसे कैद हो इस शरीर रूपी पिंजरे में, बेचैन, बेबस लेकिन असीम ऊर्जा से भरा वो खुद को आज़ाद करना चाहता है, फंस कर रह जाता है इंसान माया के जाल में भूल जाता है कि क्यों आया है इस संसार में, जगा अपनी चेतना को और उभर के दिखा कैसा और कितना तूने अद्भुत ये जीवन पाया है ज़िन्दगी की ये जद्दोजहत बस जीने के लिए नहीं ये महज इंसान बनने के लिए नहीं, ये जो जद्दोजहत है वो भगवान बनने के लिए है सब में छुपा है वो ब्रह्म उसे तलाशने की जरूरत है तराशने की जरूरत है।।

हवा कुछ कह रही थी- इश्क़ अश्क़

हवा कुछ कह रही थी धीमे-धीमे चुपके से फ़िज़ा में जो हो रही थी गुफ़्तगू हमारे बारे में... उसने सुनी थी बातें उस पीपल के पत्तों की जिसकी छाँव में हम एक दूसरे से मिलते थे। हंसते कभी, कभी तो रोते एक दूसरे के कंधों पे बारी- बारी सर रख कर सोंचते आलिंगन कभी, कभी चूमते एक दूसरे की आंखों में हम बहुत देर तक डूबे रहते चिंतित कभी, कभी भयभीत अपने भविष्य के बारे में हम कितनी ही बातें करते जो प्रेम किया करते थे वो सब कुछ देखा था वो सब कुछ सुना था उन पीपल के पत्तों ने वो ये भी विमर्श किया करते थे अलग-अलग धर्मों के होकर हम दोनों कैसे मिलेंगे इस कठोर समाज से कैसे लड़ेंगे वो ये भी बातें किया करते थे की हम कब तक मिला करेंगे उनके तने से अड़ कर हम कब तक लिपटते रहेंगे उनको अच्छा लगता था हमारा उनके नीचे प्रेम करना एक दूसरे की हाँथों में हाँथ डाल अक़ीबत के सपने बुनना उन्होंने पूछा है इन हवाओं से ही हमारी प्रेम कहानी के बारे में अब इनसे मैं क्या कहूँ हम जी रहे हैं अलग- अलग चौबारे में आखिर मैं हवाओं से क्या कहूँ हमारी अधूरी प्रेम कहानी के बारे में।

जीने की शर्त book36

अपनी शर्तों पे जीना चाहोगे तो कष्ट होगा ही, यूँही नहीं नदी पत्थरों से टकरा अपनी राह बनाती है, कौन नहीं चाहता कि कैद में बुलबुल रहे, बाज बन जा उससे दुनिया भय खाती है, नभ में जब तू ऊंची उड़ान भरेगा, तब सब तुझे डराएंगे मज़ाक भी उड़ाएंगे, संयम से तू बस उड़ते चले चलना, आसानी से कौन अपना मंज़िल पाया है, कितने आएं और कितने गएं, बस चंद लोग हैं जिन्होंने ने नाम कमाया है ज़िन्दगी तेरी है तो जीने की शर्तें भी तेरी हो, नियमों में बांध कर कौन आज़ादी को रख पाया है।।

किसी का इंतेज़ार है क्यों? Book35

जीवन दायनी माँ को आज भी शक्ति की दरकार है क्यों? गंगा को धरती पे अवतरित होने के लिऐ भगीरथ के आव्हान का इंतज़ार था क्यों? हर युग में ही क्या परीक्षा देगी सीता, अग्नि की शुद्धता का प्रमाण है क्या? कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिऐ, आज भी दयानन्द का इंतज़ार है क्यों? आत्मनिर्भर नारी का खुलकर जीना अपराध है क्यों? आम्रपाली जैसी सुंदर प्रतिभावान को भी मुक्त होने के लिए बुद्ध का इंतज़ार है क्यों? अधनारीश्वर प्रभु में भी शिव- शक्ति के बराबरी का स्वरूप है दिखता राधा-कृष्ण हो या सिया-राम पहले माँ का ही नाम लिया है जाता। पुरुष प्रधान इस दुनिया में, महिलाओं को मिले आरक्षण ऐसी माँग ही है क्यों? महिलाओं को सशक्त होने के लिए, आज भी पुरुषों का इंतज़ार है क्यों? प्रकृति से ही मिला जब समानता का अधिकार फिर तुम्हे किसी की प्रमाणता का इंतज़ार है क्यों? किसी पे निर्भर क्यों है रहना ज़िन्दगी खुलकर जियो तुम्हे किसी का इंतज़ार है क्यों? तुम्हे किसी का इंतज़ार है क्यों?

टिके रहो book37

टिके रहो के हर जीत मुमकिन है, मुमकिन बिना नामुमकिन का भी अस्तित्व नहीं, ना को अपने अंदर रौंद दो, नकारात्मकता से दूर रहो, रुको नहीं बस चलते चलो टिके रहो बस टिके रहो।। जिस पथ पे तुम चल रहे हो वहां पहले कोई आया होगाउस पथ को किसी ने तो बनाया होगा,एक नवीन पथ का तुम भी निर्माण करो,जिसपे पे अनेको युवा चल पाएं ऐसा आरम्भ करो, रुको नहीं बस चलते चलो,टि के रहो बस टिके रहो।। आज में कुछ ऐसा करो के भविष्य का निर्माण हो, भूतकाल बन जाये तुम्हारा इतिहास ऐसा प्रयास करो, चलते हुए गिरोगे बार-बार लेकिन बस उठ जाना, क्यों चले थे और किसके लिए ये बस याद रखो, रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिक रहो।।

पागलपन की शान book35

हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है, हम तो निकले थे अकेले अब पागलों का काफिला बढ़ता जा रहा है, मैं भी पागल, अरे तू भी पागल पागलों का ठहाका गूँजता जा रहा है। हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है, आज एक पागल चल बसा है तो देखो कैसे नाच रहे हैं, छूटा जमाने से पागल का पीछा तो मिठाइयां बांट रहे हैं, हंस रहे हैं हमें देख कर लोग हम आईना समझ कर हंस रहे है हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है। हर अख़बार में ख़बर छपी है पागलों के नाम का वारंट निकल जा रहा है, मरने लगीं हैं युवतियाँ हर पागल में उनको उनका आशिक़ नज़र आ रहा है हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है। नेताजी आ रहे हैं पागलों से मिलने अब उनको भी हम में अपना वोट बैंक नज़र आ रहा है, पागलों का अलग धर्म बना दो, हर फेंके हुए पत्थर में उन्हें अपना भगवान नज़र आ रहा है, हमारे पागलपन की शान देख कर, अब सारा जमाना पागल हो रहा है।

टूटा टूटा वो book 39

टूटा टूटा वो टूटा-टूटा वो  छूटा-छूटा वो रिश्ता-रिश्ता वो  रास्ता-रास्ता वो ये कैसा है दौर सब रहे हैं दौड़ मंज़िलों की ओर इंसानो की होड़।। टूटा -टूटा वो  छूटा-छूटा वो रस्मे-रस्मे वो  राहें-राहें वो ये कैसा है शहर लगता है डर जिंदगी जैसे हो ज़हर वक़्त जरा तू ठहर वक़्त जरा तू ठहर।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो यारी-यारी वो गलियां-गलियां वो ये कैसा है बाग, नहीं उगते गुलाब जाने क्यों लगी है आग दिलों में ना हो कोई भाग दिलों में ना हो कोई भाग।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो

AAM book34

aam ke ped ke neeche khade ho kar, main aam ko dekh raha tha, bahut der se patthar fek kar, girane ki koshisk kar raha tha, par ek bhi aam mil naa paya, kai dino se main uss aam ki chah mein, roz aata aur torne ki koshish karta, lekin kuchh bhi haanth naa lag paya, ek din gira mere haanth mein, khud toot kar... jo sabse achha tha, baat isme nahin ki jo mila, woh sabse achha tha, baat isme hai ki jo mila,  wahi toa apna tha. आम के पेड़ के नीचे खड़े हो कर में आम को देख रहा था, बहुत देर से पत्थर फेक कर गिरने की कोशिश कर रहा था, पर एक भी आम मिल ना पाया, कई दीनी से मैं उस आम की चाह में रोज़ आता और तोड़ने की कोशिश करता, लेकिन कुछ भी हाँथ ना लग पाया, एक दिन गिरा मेरे हाँथ मैं खुद टूट कर जो सबसे अच्छा था, बात इसमें नहीं कि जो मिला वो सबसे अच्छा था, बात इसमें है कि जो मिला वही तो अपना था।।

दोनों

बचपन से साथ रहे खेले खुदे बड़े हुए एक दूसरे का हाँथ थाम दोनों खड़े हुए क्या खूब मुहब्बत थी दोनों में फिरभी ना जाने क्यों दोनों भाई अलग हुए। कैसे पनप जाता है खून में नफरत का बीज जिसे माँ ने अपने दूध से रखा होता है सींच पिता ने भी तो दिये थे बराबर प्यार और संस्कार फिरभी ना जाने क्यों बढ़े फासले दोनों के बीच। खीच गयी है दीवार दोनों के दरमियाँ बंट गयीं हैं घर की सारी खिड़कियाँ बंटे माँ बाप भी रोते रहते हैं अलग-अलग फिरभी ना जाने क्यों नहीं सुनते दोनों उनकी सिसकियाँ। पराये घर से आई कभी अपनी ना हो सकी बहु- बहु ही रह गयी कभी बेटी ना बन सकी चाहती तो सवांर कर रख सकती थी घर को फिरभी ना जाने क्यों दोनों साथ ना रह सकी दोस्तों उनसे कभी वफ़ा की उम्मीद मत रखना कोई- कैसा भी निजी संबंध मत रखना जो अपने भाई का ना हो सका वो तुम्हारा क्या होगा बस यही याद रखना।

रे बिल्लू। book29

उलूल जुलूल फिजुल , ख़ुद  में कहाँ है गुल दिन में टटू  , रात में उल्लू , कैसी तेरी हालत रे बिल्लू। ऐसा वैसा जैसा मिल जाये कुछ पैसा कराता  ऐसा तैसा कैसा है  ये पेशा, न समझ में आये रे बिल्लू। यदा जदा सदा , कैसी है ये विपदा , जैसे हो आपदा, सबसे हो गया जुदा , कैसा है ये वक़्त  रे बिल्लू। यूँही जभी कभी याद जाऊं कहीं , मैं हूँ वही जो अपना था कभी भूल ना जाना हूँ वही मैं बिल्लू।

मेरे सपनों की नगरी book33

मेरे सपनों की नगरी के शिल्पकार से मिलवा दो जिसने लिखी है मेरी पट कथा उस रचेता से मिलवा दो आँखों इतने तारे क्यों हैं चमचमाते इतने नहीं चाहिए बस एक चाँद ही दिला दो बहुत रंग हैं छूट गए उस कलाकार को कोई तो बता दो इतनी बेजान आवाज़ें जो निकलतीं हैं उन्हें कोई रागिनी तो बना दो जितनी धड़कने उतनी हैं हसरतें मेरे सपनों के संसार में कम से कम एक दिया तो जला दो फंसा हूँ ज़िन्दगी की मझधार में मुझे मेरे माझी से मिलवा दो रात में अकेले डर जाता हूँ ठीक से सो भी नहीं पाता हूँ मुझे कम से कम मेरी माँ से मिलवा दो मेरे सपनों की नगरी के शिल्पकार से मिलवा दो जिसने लिखी है मेरी पट कथा उस रचेता से मिलवा दो

lo chala book28

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लो चला फिर अपना  मन पीछे छोड़ के , यादों को समेटे , पलकों में अश्क़ छुपाये , अपने नगर हर डगर को अलविदा कह के। रूह की कपकपाहट को कोई महसूस ना कर ले , नम्न नेत्र देख कहीं वो रो  ना दे , रखना पड़ता है चेहरे पे  कहीं अपनों से ये फरेब कोई पदक ना ले। दिल जिग़र आत्मा सब छोड़ कर है जाना , फिर से उसी शहर में जा कर है कमाना , अब तो  काटेंगे हर दिन गिन गिन  के , यादों को सिरहाने रख चुपके से सो है जाना।

Main girunga Phir uthunga book27

Bujha de Jo tere khwab the Bhula de Jo thi Teri manzil maan le haar bas tu abb Maan kar mukaddar isko Main girunga phir uthunga Tut ke bhi phir jutunga Bujh bujh kar hie sahi jalta rahunga Laga le tu zor jitna bhi ye zindagi...... Naa manaunga haar Ho chahe kuchh bhi Main girunga phir uthunga Main girunga phir uthunga बुझा दे जो तेरे ख़्वाब हैं भूला दे जो है तेरी मंज़िल मान ले हार बस तू अब मान कर मुक्कदर इसको मैं गिरूँगा फिर उठूँगा टूट के भी फिर जुटूँगा बुझ-बुझ कर ही सही मैं हमेशा जलता रहूँगा लगा ले तू ज़ोर जितना भी ज़िन्दगी हो चाहे अब जो कुछ भी मैं हर नहीं मानूँगा मैं गिरूँगा फिर उठूँगा।

आज मैंने ज़िन्दगी को देखा book22

आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा सुबह से शाम शाम से सुबह तलक देखा पाया बहुत खोया थोड़ा सा उस खोये हुए को पाने के लिए आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा टूटा हुआ तो बस एक सपना था उसको पाने के लिए एक और सपना देखा नींद नहीं आ रही थी फिरभी सो रहा था ख्वाबों को कच्ची नींद में पिरो रहा था आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा निगाहें ना जाने क्या तलाश रहीं थी हर मंज़र में हर कोई अपना दिखा पूछा उनसे तो हर बार एक नया रास्ता दिखा आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा

झूठ में थोड़ा झूठ book20

आज कल अक्सर मैं तन्हाइयों से लिपट कर बैठा रहता हूँ महफिलों से दूर कर रखा है अपनो में भी बेगाना नज़र आता हूँ, अब तो मेरी रूह भी कहने लगी है मुझसे की तू गलत है टेक दे घुटने और सर झुका भेड़ियों में तू भेड़िया बन कर क्यों नहीं रहता, अकसर जंगल में होता है शेर का शिकार, अक्सर आंधियों में जो पेड़ झुकते नहीं वो टूट जाया करते हैं बीच में पैसा आ जाये तो रिश्ते छूट जाया करते हैं, हाँ में हाँ ही तो मिलना है सच को दबा कर बस झूठ में थोड़ा झूठ ही तो मिलना है।।

फ़ैसले book19

सुना है जो परिंदे पिंजरा तोड़ उड़ जाया करते हैं उन्हें बाहर बैठे चील कौवे नोंच जाया करते हैं इस डर से क्या कोई अपने पंखों को ही काट दे या लड़ने के लिए अपनी चोंच को धार दें, सोने के पिंजरे का मोह कब तक रख सकेगा इससे पहले के पंख उड़ना ही भूल जाएं अपनी सोंच को एक नया आयाम दे, मजबूरियां इंसान को मिट्टी में मिला देतीं हैं तो कुछ को महान बना देतीं है, ये जद्दोजहत सिर्फ इंसान बनने के लिए नहीं है, आपके फ़ैसले ही मिट्टी को भगवान बना देतीं हैं

आत्मा का परमात्मा से मिलान book18

जब आत्मा का परमात्मा से मिलन होगा, अलौकिक परम आनंद ही सर्वर्श होगा, खुशी से रोना चाहोगे तब भी ना रो पाओगे, हर्ष से प्रफुलित तुम हंस भी ना पाओगे, मचलने के लिए ना ही मन होगा, उछलने के लिए ना ही तन होगा, बस एक शून्य में विलय होगा तन विहीन आत्मा बस परमात्मा में विलीन होगा, मनुष्य जन्म पाया है तो बस भक्ति कर बंधू, जो ये हृदय पाया है तो बस उससे प्रेम कर बंधु, उसने भेजा तेरी ही ज़िद पे तुझे क्या तुझे ये याद नहीं, उससे प्रेम करना तेरा लक्ष्य है क्या ये भी याद नहीं, भ्रमित हो रहा तू उसके ही बनाये माया जाल में, माया का ही ये भ्रम तोड़ने तो आया है तू, ये जो तन मन है मिला बस उससे प्रेम करने को, फिर क्यों डर कर उससे मिलना चाहता है तू, निर्भय जीता जा इस ज़िन्दगी को, उस परब्रह्म का ही तो अंश है तू, धर्म की राह पे अटल चलते रहना, ना घबराना किसी रक्त रंजिश से तू, सब हैं बनाये उसकी के बंदे, जो भटका उसको राह दिखा तू, प्रेम से देख सब में तुझे ईश्वर ही दिखेगा, ईश्वर के ही हैं सब अनेक रूप।।

एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश book16

एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश, लोकतांत्रिक गणराज्य मेरा भारत है सर्वश्रेष्ठ २९ राज्य और 7 केंद्र शासित संप्रभुत्व हैं प्रदेश यहाँ ना असहिष्णुता ना है कोई द्वेष एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश, सामाजिक , आर्थिक,राजनैतिक न्याय की है वयवस्था सबको समान अवसर और प्रतिष्ठा देता है मेरा देश अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की है स्वतंत्रता विश्व की सबसे लंबी लिखित संविधान वाला है देश एकता अखंडता की मूरत है मेरा देश विभिन्न बोलियों विविध संस्कृतियों का है मेरा देश हर राज्य का अपना है भोजन और भेष कश्मीर पगड़ी तो कन्याकुमारी है पैर पश्चिम दायां तो बायां हाँथ है पूर्वी क्षेत्र एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश उत्तर में खड़ा हिमालय सीना ताने पूरब में बंगाल की खाड़ी वाला देश पश्चिम में फैला है अरब सागर तो दक्षिण में हिन्द महासागर का परिवेश एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश सबकी आन, बान ,शान है तिरंगा, दिल ओ जान हिंदुस्तान है मेरा देश, सौभाग्य है जो यहाँ जनम लिया, हर जन्म में भारत ही हो मेरा देश एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश।।

हवाओं ने जो रुख बदल लिया है book15

हवाओं ने जो रुख बदल लिया है मौसम ने भी तेवर बदल लिया है तिनके जो अक्सर किसी का सहारा बनते थे उन्हीने ने भी घोंसला बनना पसंद किया है वृक्ष जो रहते थे सीना ताने उन्होंने भी अब झुकना पसंद किया है चिंगारियां जो पहले दहक जाती थीं उन्होंने भी अब बुझना पसंद किया है कश्तियाँ जो मझधार से लड़ जाती थीं उन्होंने भी अब डूबना पसंद किया है आत्माएं जो इंसान में जन्म लेना चाहतीं थी उन्होंने भी अब जानवर बनना पसंद किया है अये दुनिया के हुक्मरानों ऐसा माहौल मत बनाओ कि ज़िंदगी जीना ही छोड़ दे.... और बदलाव अगर आ जाएगा तो अंधेरे जो रौशनी से डरा करते थे उन्होंने आज सूरज बनना पसंद किया है।

आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा book14

अब खड़ा कौन होगा चुनाव में मुद्दा बन कर विकास भी तो अब से आरक्षित हो जाएगा बिना पढ़े अब वो भी सरकारी मुलाज़िम हो जाएगा नाचो गाओ हर्ष मनाओ मेरे देशवासियों आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा। अब जात-पात पे चुनाव नहीं लड़ा जाएगा बेरोज़गारी रही कहाँ जो उसपे बात किया जाएगा अब बातें विकास की भी नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जाएगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा अब सब आरक्षित हैं मतलब सभी खुश हैं गरीब भूखे का भी पेट भर जाएगा, अब किसानों की भी आत्महत्या नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जाएगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा अब असहिष्णुता सहिष्णुता में तब्दील हो जाएगा, गाय पे भी सौहार्द का माहौल बन जायेगा, अब तो तीन तलाख की भी बातें नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जायेगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा अब मेरे हनुमान का जात नहीं पूछा जाएगा, श्री राम का मंदिर सवर्ण आरक्षण के तहत बन जायेगा, ईमानदार सरकार में भ्रस्टाचार की भी बात नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जायेगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा।

main toa pani hoon book 13

main toa pani hoon, bhagwan pe chadha , phirbhi naale se hokar gujra hoon, bujhaya bahut pyaas phir bhi, ansoo ban kar nikala hoon, baarish ban kar barsa toa khush hua, phirbhi aasman se chhuta toa.... dharti pe mit gaya hoon, main toa pani hoon. मैं तो पानी हूँ, भगवान पे चढ़ा फिरभी नाले से होकर गुजरा हूँ मैं तो पानी हूँ बुझाया बहुत प्यास फिरभी आँसू बनकर निकला हूँ मैं तो पानी हूँ बारिश बनकर बरसा तो खुश हुआ फिरभी आसमान से छूटा तो धरती पे मिट गया हूँ....

शिवम book 10

तुम से ही है शुरू , तुम से ही है खतम, तेरे नाम की जिंदगी, जो करना है तू कर शिवम्। मिलने को तो सब मिल गया बिना मांगे ही भगवन तुझसे मैं और क्या मांगूँ जो देना है दे दे शिवम्। हर मुश्किल में तुझे साथ पाया तू ही बस रहा साथ हरदम किसी और कि क्या हो दरकार जो सर पे रहे तेरा हाँथ हे शिवम। खाली हाँथ आये और खाली हाँथ है जाना बस मिथ्या है ये संसार और जीवन सब तू ही है और है सब तेरा तू ही सबका सब में तू ही है शिवम्।

कृष्णा book8

कष्टों में जन्म लिया तूने बाल गोपाल, फिर भी बाल लीला करे कैसे नंदलाल, यौवन तेरा रस भरा राधा प्रेम संजोय, मामा कंस के डर से सारा ब्रज भयभीत होए, वृन्दावन त्याग तू कैसे गया सब छोड़, अधर्मी बलशाली कंस का वध कैसे लिया सोंच, कैसे बिना शस्त्र उठाये जिताया महायुद्ध पल पल तूने जीवन जीया जैसे जीवंत स्वरूप, तुम ही अगम अगोचर, तुम हो अवतार रूप। राधे राधे सब करें, ऐसा तेरा प्रभुत्व।।

बिन लोरी book 12

बिन लोरी तुम कैसे सोये भूखे पेट नींद कैसे आयी वो मेरे बिहार के नौनिहालों उठ जाओ राहत है आयी जो गलतियाँ हुई है हमसे उसकी ना है कोई भरपाई अभी तो पनपा था बचपन उनपे ये कयामत क्यों आयी सुविधाओं के आभाव में विपदा ने सैकड़ों जाने खायी फिर भ्रस्टाचार की चपेट में देखो गरीबी ने जान है गवाई क्यों तुमने बिहार में जन्म लिया कैसी खराब किस्मत थी पायी माफ करना बिहार के नौनिहालों तुम्हे बचाने राहत देर से आयी। अश्रुपूर्ण श्रधांजलि... 'प्रभास'

बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू book 5

बीच में ही भीड़ है बिल्लू असफल हो जब तुम फर्श पे गिरोगे तब तुम्हारे साथ कोई ना होगा सफलता की सीढ़ी चढ़ जब शिर्ष पे रहोगे तब भी तुम्हारे साथ कोई ना होगा बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू जंगल का राजा बस एक ही होता है उसको भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है लड़ना पड़ता है अपनों और परायो से वक़्त आने पे दहाड़ना भी पड़ता है बस बीच मे ही भीड़ है बिल्लू बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू भेड़ चाल में ही जी सकते हो गधे की तरह गाजर देख चल सकते हो कोरू के बैल की तरह पिसते रहोगे या पिंजरा तोड़ अकेले उड़ान भर सकते हो बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू दुनिया में अकेले ही है आना दुनिया से अकेले ही है जाना फिर क्यों रोना और पछताना सबका अपना अपना है फसाना बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू

ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए book4

ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए।। मुझे अपने बहाव में बहा देना चाहती है मैं अपने हिसाब से तैरना चाहता हूँ, लोग तो अपने हिसाब से चलाते थे और चलाते ही रहेंगे, मैं एक बार और बार-बार ज़िन्दगी से मुहब्बत करना चाहता हूँ, लोगो ने तो समय को भी घड़ी में कैद कर रखा है मैं जिंदा नहीं महज जीने के लिए आज़ाद था और मैं आज़ाद ही रहना चाहता हूँ। मेरे हौंसलों की उड़ान अभी देखी हैं कहाँ आसमान को भी धरती पे झुका रखा है गिर गया एक दो बार तो क्या मैं मिट्टी में मिल गया हूँ देख फिर खड़ा हूँ फिर गिरने के लिए, गिरने के डर से तू भले ना चले, देख मेरे पर फिर उगे हैं उड़ान भरने के लिए। देख मेरे पर फिर उगे हैं उड़ान भरने के लिए।। बंदे मेरे बंधु तू कोशिश करना ना छोड़ देना ऊपर वाला जरूर मिलेगा तेरी फर्याद सुनने के लिए शिकायत ना करना तू उसकी और ना किसी की शुक्रिया अदा करना बेशक़ तुझे ज़िन्दगी देने के लिए अपने हिसाब से जीना है तो लड़ना ही पड़ेगा आज कल भीख भी देते हैं लोग पुण्य कमाने के लिए औरो की ना देख अपनी करता जा ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए।।समय मुझे अपने बहाव में बहा देना चाहती है ...

तुझे क्या पता होगा मेघ book 2

रातभर बरसते मेघों को क्या पता यहाँ सड़क किनारे भी लोग सोते हैं बेसहारा, बेबस, बिना छत के फूटपाथ ही जिनकी चारपाई है शरीर जितनी ही जिसकी चौड़ाई है लंबाई से ज्यादा हिस्सा भी नहीं मिलता बगल में आखिर कोई और भी तो है सोता जिसका पता नहीं क्या धर्म होगा या जात लेकिन हैं दोनों के एक जैसे ही हालात गंदे कपड़े मैला शरीर हर जगह से जीर्ण-शीर्ण लेकिन सब मिलकर रहते हैं एक साथ बांट रखा है उन्होंने भी अपना साम्राज्य जिसकी रक्षा के लिए तैनात हैं अनेक भगवान जिनको लटका रखा है सामने की दीवारों पे शायद इसी उम्मीद से की उनके दिन भी अच्छे हों ठीक हमारी तरह ही भगवान से मांगते हैं वो वो भी तो परम पिता परमेश्वर का ही अंश हैं आखिर किसी ने कहा है ना तत्त्वं असि! सोहम! हर जीव में ब्रह्म हैं, मैं वो हूँ! लेकिन तुझे ये सब क्या पता होगा मेघ, तू बस बरस। तत्त्वं ऐसी - वो ही तुम हो सोहम- मैं वह हूँ