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Showing posts from March, 2019

आओ खेलें मोबाइल में होली

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आओ खेलें मोबाइल में होली रंगों से भर दें apps की टोली कौनसा रंग लगाऊँ सखी जो तुम्हारे मन को भाय, Facebook का नीला रंग या whatsapp का हरा हो जाए जोगीरा सारा रा रा रा र कौनसा रंग लगाऊँ सखी जो तुम्हारे मन को भाय Instagram का purple shade या google का multicolor हो जाए जोगीरा सारा रा रा रा रा र कौनसा रंग लगाऊँ सखी जो तुम्हारे मन को भाय Twitter का आसमानी रंग या tiktok का काला रंग हो जाए जोगीरा सारा रा रा रा रा र कौनसा रंग लगाऊँ सखी जो तुम्हारे मन को भाय Amazon पे करा दूँ shopping Paytm से सब payment हो जाए जोगीरा सा रा रा रा र Internet के रंग में घोल कर Message की पिचकारी से बरसा रहा हूँ रंगों की बौछार सबको मुबारक़ होली का त्योहार।।

बंदर: लघुकथा

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अभिषेक को घुमाने शर्मा जी चिड़िया घर पहुंचे, तरह तरह के जानवरों को देखते हुए वो बंदरों के पिंजरे के पास पहुंचे, अभिषेक बंदरों को देखकर बहुत उत्साहित हुआ और ताली बजाने लगा, बहुत सारे लोग मूंगफली, केले पिंजरे के अंदर फेक रहे थे। शर्मा जी ने अभिषेक से कहा- बेटा हम जब बच्चे थे तो हमारे आंगन में एक अमरूद का पेड़ था वहाँ कभी-कभी बंदरों की टोली आया करती थी अमरूद खाने के लिए, मुझे उन्हें देखकर बहुत गुस्सा आता था उस समय, वो मेरे पसंदीदा अमरूद खा जाया करते थे, ये बोलते बोलते शर्मा जी बहुत उदास हो गएं और अतीत में कहीं खो गएं। अभिषेक ने उन्हें झंझोरते हुए कहा पापा-पापा क्या हुआ आपको? अब वे बंदर क्यों नहीं आते? शर्मा जी- बेटा अब बंदर कैसे आएंगे, अब ना कोई आंगन है, ना ही कोई पेड़ बचे हैं, फिर फल हो भी तो कैसे,  पेड़ अब इमारतों में तब्दील हो चुके हैं, जिसपे खुद को इंसान कहने वाले बंदर ही रहा करते हैं ठीक इस पिंजरे में कैद बंदरो के तरह।

बुढ़ी और गाय

हर रोज़ की तरह मैं सुबह उठ कर अपने घर की बालकनी में सड़क पे आते जाते लोगो को देख रहा था, हमारी गली छोटी सिकरी सी गली है जिसमें अनगिनत वाहनों का परिचालन होता है। आज हलकी हलकी बारिश हो रही थी, लोग अपने काम काज पे जा रहे थे और दिन की भांति हमारे पड़ोस में एक बुढ़ि माता जो की लगभग ७० साल की होगी वो मछली बेच रही थी , उनका घर हमारे घर से एक दम सटा हुआ है, उनके ४ पुत्र हैं , जिसमे से २ लड़के सबसे छोटा वाला और उससे बड़ा वाला उनके साथ रहते है, सबसे बड़ा वाला इसी मोहल्ले में कहीं और अपना माकन बना कर रहता है और उससे छोटा कुछ वर्ष पूर्व किसी दुर्घटना में चल बसा था। वो जीवन के हर कर्त्तव्य निभा चुकी थी सभी बच्चो की शादियाँ भी कर चुकी थी, बुढ़िया अपना जीवन सुबह सुबह मछली बेच कर गुजारती थी, उसके साथ जो उसके दो बच्चे रहते थे उनके पास रोज़गार नहीं था, अलग अलग नौकरी के लिए फॉर्म भरते थे। आते जाते लोग उससे पसंद करते और उसके बुढ़ापे पे चुटकी लेते हुए मज़ाक भी करते रहते थे, वो इस मोहल्ले में बहुत सालों से जो रहा करती थी, लेकिन ये दिन उसका आखरी दिन था और उसका देहांत हो गया। छोटा बेटा जो उसके साथ रहता था वो जोर जोर से