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Showing posts from January, 2019

हाशिये पे ज़िन्दगी: लघुकथा

सिन्हा जी और उनकी पत्नी ता उम्र लोगो से ताना सुनते रहे कि वो दोनों बहुत ही कंजूस हैं, दो जोड़ी कपड़े उनके लिए पर्याप्त हुआ करते थे, बैंक में सरकारी नौकरी करने के बावजूद अभी तक उन्होंने कानपुर में अपना घर नहीं बनाया था, और ये सब वो करते रहें तो बस अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए। आज उनके दोनों बच्चे विदेश में कार्यरत है, एक डॉक्टर है तो दूसरा सॉफ्टवेयर अभियंता लेकिन आज सिन्हा जी की ज़िंदगी हाशिये पे आ खड़ी है, बुढ़ापे में उन्हें पूछने वाला कोई भी नहीं।

जिजीविषा: लघुकथा

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एकता प्यार में धोखा खाने के बाद बहुत ही निराश थी, उसको अपने शरीर से घृणा होने लगी थी, और हो भी क्यों नहीं आखिर जिसे वो अपना जीवन साथी समझती थी वो उसके जिस्म को इस्तेमाल करके उसे छोड़ चुका था। अब उसे लगता था कि प्यार के जाल में फंसा कर रमेश ने उसका बहुत नाजायज़ इस्तेमाल किया। अब वो अपने पिताजी, माँ, भाई को कैसे मुह दिखाती, उसकी जिजीविषा नष्ट हो चुकी थी, जीवन का मोल नहीं रहा उसके लिए और अंततः उसने आत्महत्या करने का फैसला किया और वो पंखे से लटक गई। लेकिन इस ज़िन्दगी की डोर तो उस ऊपर वाले के हाथ में है जो जीवन प्रदान करता है, समय पर उसकी छात्रावास की लड़कियों ने उसे अस्पताल पहुंचा कर बचा लिया। उसकी बगल वाली बेड पर एक और लड़की ज़िन्दगी के लिए संघर्ष कर रही थी जो हर हाल में जिंदा रहना चाहती थी, उनकी कौनसी सांस आखरी हो पता नहीं। एकता ने नर्स से उस दूसरी लड़की के बारे में पूछा तो उसके आंखों से खुद ब खुद आँसू बहने लगें, वो निर्भया थी जिसको बहुत ही निर्दयता से बलात्कार किया गया था, फिर भी उसकी जिजीविषा जीवन के लिये प्रेरणा दायक थी, एकता अपनी आत्महत्या के निर्णय पे पछता रही थी और वो फुट फु

तेरा तसव्वुर

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तसव्वुर करने गया सर्द हवाओं के बीच, वहाँ भी तेरी ही गर्म सांसे याद आयीं ठेस लग गई थी छत पे जाते जाते तबभी तेरा दिया दर्द और तू ही याद आयी, बार-बार तेरी यादें मेरे दिल को छिला करती हैं, अच्छा खेल ये खेला करतीं हैं आँखों में तेरी तस्वीर दिखा पहले जिया देतीं हैं..फिर इसे मुआ देतीं है ऐसा नहीं कि तेरे तसव्वुर में सिर्फ दर्द ही याद आएं, तेरा मुझसे बेपनाह प्यार करना, मुझसे दूर रह कर तेरा रात भर रोना, आक़िबत की गोद में अफ़साने बुनना, सब याद है- तेरा मुझसे भी ज्यादा मुझे प्यार करना, बेरहम वक़्त ने ऐसी करवट ली, छूट गया हमारा मिलना, तू ब्याह के चली गयी अपने पापा के कहने पर, और मैं महीनों तेरे फ़ोन के इंतज़ार में तकता रहा एक बार तू बस बता तो देती साथ में मुझको खुदके साथ रुला तो लेती, खुद चालक बन तुझे तेरे ससुराल छोड़ आता, प्यार के रिश्ते को दोस्ती में बदल जाता.. इन सर्द हवाओं से ही तेरा हाल जानना चाहा है तुझसे अकेले में बात करनी थी ठिठुरती रात में छत पे लिखने का तो बस बहाना है तू किसी दिन कम से कम एक फ़ोन तो करना, तुझसे बातें करने के लिए 14 सालों का फसाना है।

डीपी लगा दे उसके साथ

दिल को तो बस बहकने का बहाना चाहिए, आशिकों को अश्क़ छुपाने को मयखाना चाहिए, तू बस एक डीपी(DP) लगा दे उसके साथ, मुझे आज फिर पीने का बहाना चाहिए.... फेसबुक पे तेरी तस्वीर देखके दिल आज भी धड़कता है व्हाट्सएप्प पे तेरी डीपी देखके तुझेमे खो जाता है मेसेंजर पे तू बात करे ना करे.. जीमेल के पुराने चैट पढ़ दिल खुद को बहला लेेेत है इंस्टा पे तेरी अदायगी आज भी खूब भाती है तू आज भी क्या खूब मुस्कुराती है तेरे बच्चों के साथ तेरी फ़ोटो देख मामा मामा की आवाज़ कानो में सुनाई दे जाती है तू अच्छे से जी रही है जिंदगी ये देख अच्छा लगता है तेरे लिए ये 'प्रभास' आज भी सजदा करता है भले ही जी रहे हैं हम अलग-अलग तुझमें मैं और मुझमें तू आज भी बसता है।

कैसा लगता है

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तू आज भी मेरे profile पे रुक जाती है ना, पढ़ती है ना शायरी मेरे wall पे, कभी किसी दिन comment कर बात ही देती, कैसा लगता है तुझे पढ़ना तेरे ही दिये दर्द में बारे में।

वज़ह है क्या

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मेरेनसीब के साथ छोड़ने की वज़ह है क्या मेरे अपनो के रूठने की वज़ह है क्या। माना के हाथों की लकीरें मेरे काबू में ना रहीं, लेकिन मेरे दिल के बागी होने की वजह है क्या। माना के अनेकों तारे जीतने मेरे दोस्त खफ़ा हो गयें, लेकिन मेरे अपने चाँद के खोने की वज़ह है क्या। माना के वो मुझे छोड़ चली गयी और मै बेसुद रह गया, लेकिन बार बार मेरे नब्ज़ को टटोलने की वज़ह है क्या।