Posts

chand ko dekha (चाँद को देखा)

chand ko dekha toa, sitaro ne sikayat ki, sitaro ko dekha toa, chand ne kaha mujhse beimani ki, chahe jo bhi ho ye dost, iss raat ki galti hai, jo gujarti nahin, warna farmaish toa subah ki thi, lekin chand ki roshni mein, iss dil ne subah samajh kar nadani ki......... चाँद को देखा तो सितारों ने शिकायत की सितारों को देखा तो चाँद ने कहा मुझसे बेईमानी की चाहे जो भी हो ये दोस्त इस रात की गलती है जो जल्दी गुजरती नहीं फरमाइश तो सुबह की थी लेकिन चाँद की रोशनी में इस दिल ने सुबह समझ कर नादानी की

कच्ची मिट्टी

कच्ची मिट्टी को कहाँ पता था की वो दीप बन विभा फैलाएगी घनघोर तिमिर को भेद श्री राम को इक दिन राह दिखाएगी।। कुम्हार ने तो बनाये थे बहुत सारी कृतियाँ कलश, घड़ा, घर, घरौंदा, गुल्लक इत्यादि तब वो दीया अपनी किस्मत पे था रोया भट्टी में उसको भी गया था बहुत जलाया- तपाया और वो बनकर रह गया बस एक छोटा सा दीया! साँझ होते ही जब सूर्य का उजास खो गया धरा को जब तिमिर ने अपने आगोश में ले लिया ना कलश दिख रहा था ना ही घर घरौंदा तब उस दीये ने ही फिरसे जलकर प्रकाश था फैलाया स्वाभिमान से भरा वो लौ जैसे सर उठाय खड़ा हो भगवान की आरती का सौभाग्य भी पाया लेकिन बिन बाती बिना तेल के उसका क्या अस्तित्व? शायद एक मिट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं ठीक वैसे ही मनुष्य (दीया) मानवता (बाती) ज्ञान (तेल) सेवा (प्रकाश) के बिना शायद कुछ भी नही...

ये घाव

जितना दिखता है, उससे ज्यादा गहरा है ये घाव ताज़ा दिखता है, लेकिन बहुत पुराना है ये घाव हरा दिखता है, लेकिन बहुत काला है ये घाव दर्द जरूर देता है, लेकिन बहुत मीठा है ये घाव रुला जरूर देता है, लेकिन याद दिलाता है ये घाव पहले पराया था, लेकिन अब अपना लगता है ये घाव

कोरोना का वध

घनघोर अंधकार फैला है मन में डर का बसेरा है अगर तम को भगाना है तो बस दीप ही जलाना है बस दीप ही जलाना है सबको साथ चलते जाना है देश हित में जो भी हो वो सब करते जाना है माँ भारती के नौनिहालों हमें एक जुट रहना है वसुधा है पुकार रही भारत को आगे आना है खुद के साथ- साथ इस विश्व को बचना है हिम्मत की मशाल जला तिमिर से पार पाना है कोरोना का वध कर विजय ध्वज फहराना है।

ब्रह्म की तलाश

Image
जहां से चला था घूमकर फिर वहीं खड़ा हूँ, अभी पूर्णतः मरा नहीं, अधमरा हूँ। आकांक्षाओ और इक्षाओं के बीच, कहीं तो आज़ादी दब सी गयी है, हर कुछ पाने की असीम चाह में, ज़िन्दगी देखो कहीं छूट सी गयी है, मन को जब खामोश अकेले टटोलता हूँ, तो एक दर्द का आभाष होता है, सब कुछ पाकर भी जैसे कुछ ना पाया हो, ये जीवन अधूरा सा रह गया प्रतीत होता है कुछ तो है अपने अंदर जो पूर्ण स्वरूप लेना चाहता है जैसे कैद हो इस शरीर रूपी पिंजरे में, बेचैन, बेबस लेकिन असीम ऊर्जा से भरा वो खुद को आज़ाद करना चाहता है, फंस कर रह जाता है इंसान माया के जाल में भूल जाता है कि क्यों आया है इस संसार में, जगा अपनी चेतना को और उभर के दिखा कैसा और कितना तूने अद्भुत ये जीवन पाया है ज़िन्दगी की ये जद्दोजहत बस जीने के लिए नहीं ये महज इंसान बनने के लिए नहीं, ये जो जद्दोजहत है वो भगवान बनने के लिए है सब में छुपा है वो ब्रह्म उसे तलाशने की जरूरत है तराशने की जरूरत है।। ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या, जीव ब्रह्म ईवा नपरः।

पापा

दुनिया में अगर कोई असली हीरो हैं तो वो हैं पापा जब जब मैं गिरा, आपकी बहुत याद आई  जो जो बातें समझाईं थी वो सब याद आईं  आपसा कोई नहीं है दूजा  जितनी भी करूँ कम है पूजा आपसे ही तो है ज़िन्दगी मेरी आज जो भी मैं हूँ  वो आपसे ही हूँ आपके बिना तो मैं अधूरा भी नहीं हूँ पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्यारा आपसे ही ये जग सारा पापा मेरे प्यारे पापा मेरी लाइफ के सुपर हीरो  आपके बिना मैं तो जीरो मम्मी की मार से बचाते कितना भी थक जाते मुझे कांधे पे घुमाते बिना मांगे सब कुछ लाते पता नहीं कैसे जान जाते पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्यारा आपसे ही ये जग सारा पापा मेरे प्यारे पापा जब भी गिर जाता था  आप उठाने आते थे हौसला मेरा बढ़ाते थे अब जब भी गिर जाता हूँ  आपकी याद बहुत आती है जीवन के आपा धापी में कमी बहुत खलती है पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्यारा आपसे ही ये जग सारा पापा मेरे प्यारे पापा क्यों छोड़ चले गए  हमसे रूठ क्यों गए हमसे क्या हुई है गलती क्या हमारी याद नहीं आती  क्या मेरी फिक्र नही सताती  अब तंग नहीं करेंगे कभी वापस आ जाइये अभी के अभी पापा मेरे प्यारे पापा आपसा कोई नहीं प्या

दोस्त book38

दिल तन्हा जब भी होता है दोस्त तू याद बहुत आता है जीवन के इस आपा धापी में तेरा ना होना बहुत खलता है तू ही तो वो कंधा था जिसपे मैं टेक सर सुकून से रोता था तू ही तो वो बन्दा था जिसको मैं अपना मर्म सुनाया करता था तू ही तो वो तिनका था जिसके मैं सहारे जीवन जिया करता था तू ही तो वो हौंसला था जिससे मैं ऊंची उड़ान भरा करता था तू ही तो वो सलाह था जिससे मैं समाधान निकाला करता था तू व्यस्त हो गया अपने जीवन में खुद बाद में बोल कर भूल जाता है तू नाराज़ है मुझसे तो बोल ना रूठा हुआ अच्छा नहीं लगता है तेरी आवाज़ सुने जमाना हो गया अब तो मेरा दम भी घुटने लगता है तेरे बगैर है ये ज़िन्दगी अधूरी सी मेरा जीने का मन भी नहीं करता है महीने में ना सही साल में एक बार तू कम से कम बातें कर सकता है 'प्रभास' बैठा रहता है तेरे इंतेज़ार में याद आ जाए तो फ़ोन कर सकता है