वक़्त और अपने book67
इंसान वक़्त से ज्यादा अपनों से परेशान हैं
जो वक़्त से भी ज्यादा जल्दी बदल जाते हैं
खैर इसमें उनकी कोई गलती नहीं
अक्सर जहाज़ डूबने से पहले चूहे कूद जाते हैं।
रंग बदलते कहाँ देर लगता है भला
वक़्त खराब होते ही झट से भाग जाते हैं
ज्यादातर हैं यहाँ मतलब के यार
काम निकलते ही साथ छोड़ जाते हैं।
जिनको कभी था सहारा दिया
वो भी गुरबत में मुह फेर जाते हैं
खुशी के पलों में साथ हँसने वाले भी
गम में अकेला रोता छोड़ जाते हैं।
वक़्त के चक्रव्यूह में फंस कर अक्सर
जाने कितने ही अभिमन्यु मर जाते हैं
अपनों को दोष दें या इस वक़्त को
जो बदलते वक़्त के साथ बदल जाते हैं
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