आत्मा का परमात्मा से मिलान book18

जब आत्मा का परमात्मा से मिलन होगा,
अलौकिक परम आनंद ही सर्वर्श होगा,
खुशी से रोना चाहोगे तब भी ना रो पाओगे,
हर्ष से प्रफुलित तुम हंस भी ना पाओगे,
मचलने के लिए ना ही मन होगा,
उछलने के लिए ना ही तन होगा,
बस एक शून्य में विलय होगा
तन विहीन आत्मा बस परमात्मा में विलीन होगा,
मनुष्य जन्म पाया है तो बस भक्ति कर बंधू,
जो ये हृदय पाया है तो बस उससे प्रेम कर बंधु,
उसने भेजा तेरी ही ज़िद पे तुझे क्या तुझे ये याद नहीं,
उससे प्रेम करना तेरा लक्ष्य है क्या ये भी याद नहीं,
भ्रमित हो रहा तू उसके ही बनाये माया जाल में,
माया का ही ये भ्रम तोड़ने तो आया है तू,
ये जो तन मन है मिला बस उससे प्रेम करने को,
फिर क्यों डर कर उससे मिलना चाहता है तू,
निर्भय जीता जा इस ज़िन्दगी को,
उस परब्रह्म का ही तो अंश है तू,
धर्म की राह पे अटल चलते रहना,
ना घबराना किसी रक्त रंजिश से तू,
सब हैं बनाये उसकी के बंदे,
जो भटका उसको राह दिखा तू,
प्रेम से देख सब में तुझे ईश्वर ही दिखेगा,
ईश्वर के ही हैं सब अनेक रूप।।

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