दोनों

बचपन से साथ रहे खेले खुदे बड़े हुए
एक दूसरे का हाँथ थाम दोनों खड़े हुए
क्या खूब मुहब्बत थी दोनों में
फिरभी ना जाने क्यों दोनों भाई अलग हुए।

कैसे पनप जाता है खून में नफरत का बीज
जिसे माँ ने अपने दूध से रखा होता है सींच
पिता ने भी तो दिये थे बराबर प्यार और संस्कार
फिरभी ना जाने क्यों बढ़े फासले दोनों के बीच।

खीच गयी है दीवार दोनों के दरमियाँ
बंट गयीं हैं घर की सारी खिड़कियाँ
बंटे माँ बाप भी रोते रहते हैं अलग-अलग
फिरभी ना जाने क्यों नहीं सुनते दोनों उनकी सिसकियाँ।

पराये घर से आई कभी अपनी ना हो सकी
बहु- बहु ही रह गयी कभी बेटी ना बन सकी
चाहती तो सवांर कर रख सकती थी घर को
फिरभी ना जाने क्यों दोनों साथ ना रह सकी

दोस्तों उनसे कभी वफ़ा की उम्मीद मत रखना
कोई- कैसा भी निजी संबंध मत रखना
जो अपने भाई का ना हो सका
वो तुम्हारा क्या होगा बस यही याद रखना।

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