झूठ में थोड़ा झूठ book20

आज कल अक्सर मैं तन्हाइयों से लिपट कर बैठा रहता हूँ
महफिलों से दूर कर रखा है
अपनो में भी बेगाना नज़र आता हूँ,
अब तो मेरी रूह भी कहने लगी है मुझसे की तू गलत है
टेक दे घुटने और सर झुका
भेड़ियों में तू भेड़िया बन कर क्यों नहीं रहता,
अकसर जंगल में होता है शेर का शिकार,
अक्सर आंधियों में जो पेड़ झुकते नहीं वो टूट जाया करते हैं
बीच में पैसा आ जाये तो रिश्ते छूट जाया करते हैं,
हाँ में हाँ ही तो मिलना है
सच को दबा कर बस झूठ में थोड़ा झूठ ही तो मिलना है।।

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