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तुम्हे किसी का इंतज़ार क्यों है

जीवन दायनी माँ को आज भी शक्ति की दरकार क्यों है, गंगा को धरती पे अवतरित होने के लिऐ भगीरथ के आव्हान का इंतज़ार क्यों है। हर युग में ही क्या परीक्षा देगी सीता, अग्नि की शुद्धता का प्रमाण क्या है कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिऐ, आज भी दयानन्द का इंतज़ार क्यों है। आत्मनिर्भर नारी का खुलकर जीना अपराध क्यों है, आम्रपाली जैसी सुंदर प्रतिभावान को भी मुक्त होने के लिए बुद्ध का इंतज़ार क्यों है। अधनारीश्वर प्रभु में भी शिव- शक्ति के बराबरी का स्वरूप दिखता है राधा-कृष्ण हो या सिया-राम पहले माँ का ही नाम लिया जाता है। पुरुष प्रधान इस दुनिया में, महिलाओं को मिले आरक्षण ऐसी माँग ही क्यों है महिलाओं को सशक्त होने के लिए, आज भी पुरुषों का इंतज़ार क्यों है प्रकृति से ही मिला जब समानता का अधिकार फिर तुम्हे किसी की प्रमाणता का इंतज़ार क्यों है , किसी पे निर्भर क्यों है रहना ज़िन्दगी खुलकर जियो तुम्हे किसी का इंतज़ार क्यों है तुम्हे किसी का इंतज़ार क्यों है।

समय से बंधा सूर्य भी

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इधर आया तो उधर भी गया, ऊपर गया तो नीचे भी आया, जितना भी जोर लगाया, अंत में पराजय ही पाया, घाट-घाट का पानी पिआ, सीखा चाहे हो पुण्य या पाप, मदारी ने ऐसा नाच नचाया, पटका ऐसे के उठ ना पाया, गिरता रहा उठता रहा उठ-उठ के गिरता रहा आदत सी हो गयी पराजय कि अंत में समय ही जीतता रहा बहुत घाव दिये समय ने, लेकिन वही हर दाव भी सिखाता रहा, लड़ना, जूझना, जीना हर परिस्थिति में, वो हर भाव में हसना सिखाता रहा, समय को गुरु मान कर शिष्य की भांति बस सीखता रहा, समय से बंधा तो है सूर्य भी, फिरभी देखो कैसे वो डूबता रहा, उगता रहा और चमकता रहा।