दोस्त book38
दिल तन्हा जब भी होता है
दोस्त तू याद बहुत आता है
जीवन के इस आपा धापी में
तेरा ना होना बहुत खलता है
तू ही तो वो कंधा था जिसपे
मैं टेक सर सुकून से रोता था
तू ही तो वो बन्दा था जिसको
मैं अपना मर्म सुनाया करता था
तू ही तो वो तिनका था जिसके
मैं सहारे जीवन जिया करता था
तू ही तो वो हौंसला था जिससे
मैं ऊंची उड़ान भरा करता था
तू ही तो वो सलाह था जिससे
मैं समाधान निकाला करता था
तू व्यस्त हो गया अपने जीवन में
खुद बाद में बोल कर भूल जाता है
तू नाराज़ है मुझसे तो बोल ना
रूठा हुआ अच्छा नहीं लगता है
तेरी आवाज़ सुने जमाना हो गया
अब तो मेरा दम भी घुटने लगता है
तेरे बगैर है ये ज़िन्दगी अधूरी सी
मेरा जीने का मन भी नहीं करता है
महीने में ना सही साल में एक बार
तू कम से कम बातें कर सकता है
'प्रभास' बैठा रहता है तेरे इंतेज़ार में
याद आ जाए तो फ़ोन कर सकता है
Comments