उसकी गली: गज़ल

उसकी गली से जब भी गुजरता हूँ
छत की तरफ देख लिया करता हूँ

क्या पता दिख ही जाए किसी दिन
बाइक को धीरे कर लिया करता हूँ

ब्याह के चली गयी वो गैर के साथ
फिरभी उसे याद कर लिया करता हूँ

जिस मंदिर में हम साथ कभी जाते थे
सिर झुका सजदा कर लिया करता हूँ

दर-ए-रब पे अब भी तू क्यों जाता है
फ़रियाद-ओ-आह कर लिया करता हूँ

इबादत करके भी 'प्रभास' क्या कर लेगा
अगले जन्म के लिए माँग लिया करता हूँ

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