विक्रम और प्रज्ञान
चंद्रयान से बिछड़ने के बाद विक्रम और प्रज्ञान का क्या होता है, विक्रम के दिल में क्या चलता है, वो अपने देश भारत और अपने जनक इसरो को क्या संदेश देना चाहता है, उसे कवि 'प्रभास' ने क्या खूब रचा है...
विक्रम और प्रज्ञान नाम है हमारा
चंद्रयान से निकले थे
अभियान पूरा करने के लिए
भले बिछड़ गएं हैं इसरो से
लेकिन खोये नहीं हैं हम।
तेजी से धम धमाते पटकन खाते गिरे
लुढ़क पुढक कर किसी तरह रुके
विपरीत परिस्तिथियों में भी
हौसले और बहादुरी से डटे रहे हम
देशवासियों के सपने को पूरा करेंगे
देश के सम्मान की रक्षा करेंगे
वैज्ञानिकों के मेहनत का अहसास है हमें
इसरो को निराश नहीं करेंगे हम
बर्फीली सतह पे खड़े हैं
चारो तरफ पानी से घिरे हैं
कर्तव्यनिष्ठ साहसी प्रज्ञान निकल चुका है
अपनी खोज को जरूर पूरा करेंगे हम
घने अंधेरे में डूबे है
धुंध में कहीं फंसे हैं
शीतल और शुष्क है फ़िज़ा
सूर्य की किरणों से परे हम
बर्फ ही बर्फ है चारो तरफ
पानी पे तैरती शिलाएँ हैं हर तरफ
किसी भी जीव का निशान नहीं
सुना सुना सब बस अकेले ही हैं हम
सभी शोध हमने कर लिए हैं
सारा डेटा इक्कठा कर लिया है
यूँही गुमनाम नहीं होंगे
आ जाओ लेने इंतज़ार कर रहे हैं हम
विक्रम और प्रज्ञान नाम है हमारा
चाँद पे फहरा रखा है तिरंगा प्यारा
भारत की उम्मीदों को ज़िंदा रखेंगे
जल्द ही देशवासियों फिर हम मिलेंगे ।
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