रे बिल्लू। book29

उलूल जुलूल फिजुल ,
ख़ुद  में कहाँ है गुल
दिन में टटू  ,
रात में उल्लू ,
कैसी तेरी हालत रे बिल्लू।

ऐसा वैसा जैसा
मिल जाये कुछ पैसा
कराता  ऐसा तैसा
कैसा है  ये पेशा,
न समझ में आये रे बिल्लू।

यदा जदा सदा ,
कैसी है ये विपदा ,
जैसे हो आपदा,
सबसे हो गया जुदा ,
कैसा है ये वक़्त  रे बिल्लू।
यूँही जभी कभी
याद जाऊं कहीं ,
मैं हूँ वही
जो अपना था कभी
भूल ना जाना हूँ वही मैं बिल्लू।




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