दोहराया है दोराहा। book25
इधर जाऊं के उधर जाऊं
रुकूँ कहीं के दौड़ता जाऊं
मन को विचलित करने फिरसे
दोहराया है दोराहा।
जीवन पथ पे चलता चला
कभी गिरा तो कभी उठा
सोंच को भ्रमित करने फिरसे
दोहराया है दोराहा।
रुकूँ कहीं के दौड़ता जाऊं
मन को विचलित करने फिरसे
दोहराया है दोराहा।
जीवन पथ पे चलता चला
कभी गिरा तो कभी उठा
सोंच को भ्रमित करने फिरसे
दोहराया है दोराहा।
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