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Showing posts from August, 2019

तेरे दिए खत

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तेरे दिए खत और हमारी तस्वीरें यमुना में बहा आया काश....... तेरे दिए ज़ख्म और हमारी यादें भी विसर्जित कर पाता।

दिल तू

सुकून छिनने वाले से ही पनाह मांगता है दिल तू कितना बेबस है उस बेवफा को आज भी अपना मानता है ख़ुदपरस्त वो तुझे कितना ठेंस पहुंचाता है दिल तू कितना बेगैरत है लात खा कर भी उसके सामने दुम हिलाता है

बराबरी की संगति: लघुकथा

संभव बचपन से ही होनहार विद्यार्थी रहा, उसकी पढ़ाई में ज्यादा अभिरुचि रहती थी वनिस्पद खेल-कूद के, वो सीधा साधा माता पिता की आज्ञा मानने वाला सुकुमार था। उसके माता पिता गांव से थे और वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, पिता जी पवन प्रसाद इंटर पास थे और माता माया देवी सिर्फ पांचवी तक पढ़ी हुई थी लेकिन संभव के पिता को पढ़ाई की अहमियत पता थी क्योंकि उन्होंने गरीब घर से होने के बावजूद किसी तरह लिपिक की नौकरी प्राप्त कर ली थी सिर्फ अपने इंटर की डिग्री के बदौलत। वो अपने बेटे को हमेशा पढ़ाई का ज्ञान देते और सही संगति वाले दोस्तों के साथ रहने की बात बताते, आखिर अपने कार्यालय के बड़े अधिकारियों को देखकर उनका भी मन करता कि उनका बेटा एक बड़ा अधिकारी बने और समाज में उनका नाम हो, पूरी ज़िंदगी प्रसाद जी ने बस दो जोड़ी कपड़ों में निकाल दी सिर्फ अपने तीनो बच्चों को पढ़ाने के लिये जिसमे संभव सबसे बड़ा बेटा था। बड़े बेटे से सभी पिताओं की बड़ी उम्मीदें ज्यादा जुड़ी होतीं हैं, वो संभव को डॉक्टर बनाना चाहते थे और उसकी पढ़ाई के लिए बहुत पैसा खर्च करते थे चाहे वो विद्यालय हो या अच्छे से अच्छे कोचिंग में पढ़ाना, उसके आने जाने के लिये

सूनी सड़क: लप्रेक

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याद है तुम्हे! वो बरसात का मौसम, उस हल्की हल्की बारिश में, कैसे हम कोजी मोमेंट की तलाश में, शहर से दूर छोटी पहाड़ी वाले रास्ते पे निकल पड़ते थे। शहर से दूर उस सुनी सड़क पे किसी जाने पहचाने का नहीं होना कितना सिक्योर फील कराता था हमें। कितना मुश्किल होता था हमारा अपने small town में खुल कर मिलना, हमेशा छुप छुपकर मिलना पड़ता था, लेकिन तुम उस सड़क पे बिना टेंशन मुझे पीछे से जोर से पकड़ लेती थी और मैं अपनी आर एक्स100 बाइक को बहुत धीरे कर तुम्हारे आलिंगन में सराबोर हो जाता था, एक दूसरे को आई लव यू! और आई लव यू टू! बोल कभी नहीं थकते थे। वो हमारी ज़िंदगी का ड्रीम राइड हुआ करता था। उसी सड़क की एक मोड़ पे वो चाय की टपरी, जिसकी चाय और वो मैग्गी आज भी याद आ जाती है , जब भी बारिश में चाय पीता हूँ, अकेले तुम्हारे बिना। उस सुनी सड़क को जरूर किसी आशिक़ ने ही बनाया होगा, जो खुद कभी किसी शहर की भीड़ से परेशान रहा होगा। sooni sadak vide o