कच्ची मिट्टी
कच्ची मिट्टी को कहाँ पता था
की वो दीप बन विभा फैलाएगी
घनघोर तिमिर को भेद
श्री राम को इक दिन राह दिखाएगी।।
कुम्हार ने तो बनाये थे बहुत सारी कृतियाँ
कलश, घड़ा, घर, घरौंदा, गुल्लक इत्यादि
तब वो दीया अपनी किस्मत पे था रोया
भट्टी में उसको भी गया था बहुत जलाया- तपाया
और वो बनकर रह गया बस एक छोटा सा दीया!
साँझ होते ही जब सूर्य का उजास खो गया
धरा को जब तिमिर ने अपने आगोश में ले लिया
ना कलश दिख रहा था ना ही घर घरौंदा
तब उस दीये ने ही फिरसे जलकर प्रकाश था फैलाया
स्वाभिमान से भरा वो लौ जैसे सर उठाय खड़ा हो
भगवान की आरती का सौभाग्य भी पाया
लेकिन बिन बाती बिना तेल के उसका क्या अस्तित्व?
शायद एक मिट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं
ठीक वैसे ही मनुष्य (दीया) मानवता (बाती) ज्ञान (तेल) सेवा (प्रकाश) के बिना शायद कुछ भी नही...
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