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Showing posts from August, 2025

बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू book 5

बीच में ही भीड़ है बिल्लू असफल हो जब तुम फर्श पे गिरोगे तब तुम्हारे साथ कोई ना होगा सफलता की सीढ़ी चढ़ जब शिर्ष पे रहोगे तब भी तुम्हारे साथ कोई ना होगा बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू जंगल का राजा बस एक ही होता है उसको भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है लड़ना पड़ता है अपनों और परायो से वक़्त आने पे दहाड़ना भी पड़ता है बस बीच मे ही भीड़ है बिल्लू बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू भेड़ चाल में ही जी सकते हो गधे की तरह गाजर देख चल सकते हो कोरू के बैल की तरह पिसते रहोगे या पिंजरा तोड़ अकेले उड़ान भर सकते हो बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू दुनिया में अकेले ही है आना दुनिया से अकेले ही है जाना फिर क्यों रोना और पछताना सबका अपना अपना है फसाना बस बीच में ही भीड़ है बिल्लू

चंद्रयान 2

चंद्रयान 2 Breaking news देशवासियों चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, सफलता और असफलता तो कर्म के साथ जुड़े ही रहते हैं, हमारे वैज्ञानिकों ने नवाचार किया इसके लिए हमें उनपे गर्व है। वैसे हमने भी प्रचार कम नहीं किया, अभी मैं फ्रांस गया था तो बहुत फेंक कर आया हूँ कि हम चाँद पे उतरेंगे तो सबको पार्टी दूँगा। खैर हमें विश्वास है कि विक्रम से हमारा संपर्क फिर से हो पायेगा, अभी श्याद network का issue है roaming में network नहीं आ पाता है यह सबको ज्ञात तो होगा ही, जैसे ही वो नेटवर्क क्षेत्र में आएगा हमारे पास सूचना आ जायेगी। कुछ दिनों बाद..... बधाई हो! विक्रम मिल गया, उसने खुद हमसे संपर्क साधा है, हमनें तो उम्मीदें छोड़ ही दी थी, आखिर हम यहाँ पृथ्वी पे दावूद को ढूंढ नहीं पा रहें तो वहाँ चाँद पे कैसे ढूंढते। विक्रम ने बताया है कि सब कुशल मंगल है, प्रज्ञान चंद्रमा के सतह पे अटखेलियाँ करता रहता है और चंदा मामा- चंदा मामा कहाँ हो कह के पुकारता रहता है, हम जल्द ही उस बुढ़िया को भी ढूंढ लेंगे जो कई सालों से वहाँ रोटी ही बना रही है, आखिर वो इतना गेंहूँ कहाँ पीसवाति होगी। मन की बात में अब जाते जाते यही...

तुझे क्या पता होगा मेघ book 2

रातभर बरसते मेघों को क्या पता यहाँ सड़क किनारे भी लोग सोते हैं बेसहारा, बेबस, बिना छत के फूटपाथ ही जिनकी चारपाई है शरीर जितनी ही जिसकी चौड़ाई है लंबाई से ज्यादा हिस्सा भी नहीं मिलता बगल में आखिर कोई और भी तो है सोता जिसका पता नहीं क्या धर्म होगा या जात लेकिन हैं दोनों के एक जैसे ही हालात गंदे कपड़े मैला शरीर हर जगह से जीर्ण-शीर्ण लेकिन सब मिलकर रहते हैं एक साथ बांट रखा है उन्होंने भी अपना साम्राज्य जिसकी रक्षा के लिए तैनात हैं अनेक भगवान जिनको लटका रखा है सामने की दीवारों पे शायद इसी उम्मीद से की उनके दिन भी अच्छे हों ठीक हमारी तरह ही भगवान से मांगते हैं वो वो भी तो परम पिता परमेश्वर का ही अंश हैं आखिर किसी ने कहा है ना तत्त्वं असि! सोहम! हर जीव में ब्रह्म हैं, मैं वो हूँ! लेकिन तुझे ये सब क्या पता होगा मेघ, तू बस बरस। तत्त्वं ऐसी - वो ही तुम हो सोहम- मैं वह हूँ

विक्रम और प्रज्ञान

चंद्रयान से बिछड़ने के बाद विक्रम और प्रज्ञान का क्या होता है, विक्रम के दिल में क्या चलता है, वो अपने देश भारत और अपने जनक इसरो को क्या संदेश देना चाहता है, उसे कवि 'प्रभास' ने क्या खूब रचा है... विक्रम और प्रज्ञान नाम है हमारा चंद्रयान से निकले थे अभियान पूरा करने के लिए भले बिछड़ गएं हैं इसरो से लेकिन खोये नहीं हैं हम। तेजी से धम धमाते पटकन खाते गिरे लुढ़क पुढक कर किसी तरह रुके विपरीत परिस्तिथियों में भी हौसले और बहादुरी से डटे रहे हम देशवासियों के सपने को पूरा करेंगे देश के सम्मान की रक्षा करेंगे वैज्ञानिकों के मेहनत का अहसास है हमें इसरो को निराश नहीं करेंगे हम बर्फीली सतह पे खड़े हैं चारो तरफ पानी से घिरे हैं कर्तव्यनिष्ठ साहसी प्रज्ञान निकल चुका है अपनी खोज को जरूर पूरा करेंगे हम घने अंधेरे में डूबे है धुंध में कहीं फंसे हैं शीतल और शुष्क है फ़िज़ा सूर्य की किरणों से परे हम बर्फ ही बर्फ है चारो तरफ पानी पे तैरती शिलाएँ हैं हर तरफ किसी भी जीव का निशान नहीं सुना सुना सब बस अकेले ही हैं हम सभी शोध हमने कर लिए हैं सारा डेटा इक्कठा कर लिया है यूँही गुम...

दरिया for book 1

दरिया को कहाँ पसंद है दायरे में रहना, बाढ़ बन सब कुछ बहा ले जाता है , समंदर में समा कर भी कहाँ अस्तित्व है खोता, लहरें बन साहिल से वही तो टकराता है। समंदर तो रहा है हमेशा से ही नकारात्मक, नीरस, नमकीन और निर्रथक, भले फैला हो समस्त धरती पे... फिरभी, चाँद को देख उसे हो जाती है घबराहट , बार-बार चट्टानों से टकरा बिखर जाता है, पीछे जा खुद को फिरसे समेटता, फिर वापस पूरा जोर लगा, दहाड़ता हुआ आज़ादी के लिए लड़ता है, ऊष्मा से खुद को तपा भांप बन, दरिया फिरसे बादल का अवतार लेता है, खुद को मिटा धरती की प्यास बुझा, फिरसे नई राह बना अविरल बहता है।

ख्वाब सिरहाने

ख्वाब सिरहाने रख कर सोया जब-जब टूटा फुट कर रोया निकले थे मंजिल पाने को रास्ते पे भटक कर खोया|

chand ko dekha (चाँद को देखा)

chand ko dekha toa, sitaro ne sikayat ki, sitaro ko dekha toa, chand ne kaha mujhse beimani ki, chahe jo bhi ho ye dost, iss raat ki galti hai, jo gujarti nahin, warna farmaish toa subah ki thi, lekin chand ki roshni mein, iss dil ne subah samajh kar nadani ki......... चाँद को देखा तो सितारों ने शिकायत की सितारों को देखा तो चाँद ने कहा मुझसे बेईमानी की चाहे जो भी हो ये दोस्त इस रात की गलती है जो जल्दी गुजरती नहीं फरमाइश तो सुबह की थी लेकिन चाँद की रोशनी में इस दिल ने सुबह समझ कर नादानी की

zindagi ko dekha ज़िन्दगी को देखा

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aaj maine zindagi ko dekha, bade hie gaur se dekha, subah se shaam, shaam se subah talak dekha, paya bahot.... khoya thoda sa, uss khoye hue ko pane ke liye, aaj maine zindagi ko dekha, bade hie gaur se dekha......... toota toa bas ek sapna tha, usko pane ke liye,  ek aur sapna dekha, neend nahin aa rahi thi,  phirbhi so raha tha, Khwabon ko neend mein piron raha tha, aaj maine zindagi ko dekha, bade hie gaur se dekha.............. nigahein naa jane kahan kahan ja rahin thi, har manjar mein har koi aapna dikha, puchha unse toa har baar ek naaya raasta dikha, aaj maine zindagi ko dekha , bade hie gaur se dekha. आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा सुबह से शाम शाम से सुबह तलक देखा पाया बहुत खोया थोड़ा सा उस खोये हुए को पाने के लिए आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा टूटा हुआ तो बस एक सपना था उसको पाने के लिए एक और सपना देखा नींद नहीं आ रही थी फिरभी सो रहा था ख्वाबों को कच्ची नींद में पिरो रहा था आज मैंने ज़िन्दगी को देखा  बड़े ही गौर से देखा निगाहें ...

शिवम book 10

तुम से ही है शुरू , तुम से ही है खतम, तेरे नाम की जिंदगी, जो करना है तू कर शिवम्। मिलने को तो सब मिल गया बिना मांगे ही भगवन तुझसे मैं और क्या मांगूँ जो देना है दे दे शिवम्। हर मुश्किल में तुझे साथ पाया तू ही बस रहा साथ हरदम किसी और कि क्या हो दरकार जो सर पे रहे तेरा हाँथ हे शिवम। खाली हाँथ आये और खाली हाँथ है जाना बस मिथ्या है ये संसार और जीवन सब तू ही है और है सब तेरा तू ही सबका सब में तू ही है शिवम्।

कृष्णा book8

कष्टों में जन्म लिया तूने बाल गोपाल, फिर भी बाल लीला करे कैसे नंदलाल, यौवन तेरा रस भरा राधा प्रेम संजोय, मामा कंस के डर से सारा ब्रज भयभीत होए, वृन्दावन त्याग तू कैसे गया सब छोड़, अधर्मी बलशाली कंस का वध कैसे लिया सोंच, कैसे बिना शस्त्र उठाये जिताया महायुद्ध पल पल तूने जीवन जीया जैसे जीवंत स्वरूप, तुम ही अगम अगोचर, तुम हो अवतार रूप। राधे राधे सब करें, ऐसा तेरा प्रभुत्व।।

एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश book16

एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश, लोकतांत्रिक गणराज्य मेरा भारत है सर्वश्रेष्ठ २९ राज्य और 7 केंद्र शासित संप्रभुत्व हैं प्रदेश यहाँ ना असहिष्णुता ना है कोई द्वेष एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश, सामाजिक , आर्थिक,राजनैतिक न्याय की है वयवस्था सबको समान अवसर और प्रतिष्ठा देता है मेरा देश अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की है स्वतंत्रता विश्व की सबसे लंबी लिखित संविधान वाला है देश एकता अखंडता की मूरत है मेरा देश विभिन्न बोलियों विविध संस्कृतियों का है मेरा देश हर राज्य का अपना है भोजन और भेष कश्मीर पगड़ी तो कन्याकुमारी है पैर पश्चिम दायां तो बायां हाँथ है पूर्वी क्षेत्र एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश उत्तर में खड़ा हिमालय सीना ताने पूरब में बंगाल की खाड़ी वाला देश पश्चिम में फैला है अरब सागर तो दक्षिण में हिन्द महासागर का परिवेश एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश सबकी आन, बान ,शान है तिरंगा, दिल ओ जान हिंदुस्तान है मेरा देश, सौभाग्य है जो यहाँ जनम लिया, हर जन्म में भारत ही हो मेरा देश एकता अखण्डता की मूरत है मेरा देश।।

ये घाव

जितना दिखता है, उससे ज्यादा गहरा है ये घाव ताज़ा दिखता है, लेकिन बहुत पुराना है ये घाव हरा दिखता है, लेकिन बहुत काला है ये घाव दर्द जरूर देता है, लेकिन बहुत मीठा है ये घाव रुला जरूर देता है, लेकिन याद दिलाता है ये घाव पहले पराया था, लेकिन अब अपना लगता है ये घाव

तुम्हे किसी का इंतज़ार क्यों है

जीवन दायनी माँ को आज भी शक्ति की दरकार क्यों है, गंगा को धरती पे अवतरित होने के लिऐ भगीरथ के आव्हान का इंतज़ार क्यों है। हर युग में ही क्या परीक्षा देगी सीता, अग्नि की शुद्धता का प्रमाण क्या है कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिऐ, आज भी दयानन्द का इंतज़ार क्यों है। आत्मनिर्भर नारी का खुलकर जीना अपराध क्यों है, आम्रपाली जैसी सुंदर प्रतिभावान को भी मुक्त होने के लिए बुद्ध का इंतज़ार क्यों है। अधनारीश्वर प्रभु में भी शिव- शक्ति के बराबरी का स्वरूप दिखता है राधा-कृष्ण हो या सिया-राम पहले माँ का ही नाम लिया जाता है। पुरुष प्रधान इस दुनिया में, महिलाओं को मिले आरक्षण ऐसी माँग ही क्यों है महिलाओं को सशक्त होने के लिए, आज भी पुरुषों का इंतज़ार क्यों है प्रकृति से ही मिला जब समानता का अधिकार फिर तुम्हे किसी की प्रमाणता का इंतज़ार क्यों है , किसी पे निर्भर क्यों है रहना ज़िन्दगी खुलकर जियो तुम्हे किसी का इंतज़ार क्यों है तुम्हे किसी का इंतज़ार क्यों है।

उसकी गली: गज़ल

उसकी गली से जब भी गुजरता हूँ छत की तरफ देख लिया करता हूँ क्या पता दिख ही जाए किसी दिन बाइक को धीरे कर लिया करता हूँ ब्याह के चली गयी वो गैर के साथ फिरभी उसे याद कर लिया करता हूँ जिस मंदिर में हम साथ कभी जाते थे सिर झुका सजदा कर लिया करता हूँ दर-ए-रब पे अब भी तू क्यों जाता है फ़रियाद-ओ-आह कर लिया करता हूँ इबादत करके भी 'प्रभास' क्या कर लेगा अगले जन्म के लिए माँग लिया करता हूँ

तेरा ही होता जाऊं

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तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन तू जितना दूर जाए उतना ही खिंचा आऊं तेरे ख्यालों में ही जियूँ तेरा ही होता जाऊं।। मन अब काबू में ना रहे दिल को प्रीत का पंख लगे मैं हर घड़ी उड़ना चाहूँ तुझमे खोना रहना चाहूँ तेरा ही होता जाऊं।

हमसफर

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बंज़र ज़मीन पे बारिश की तरह हो तुम, रोज़े में नमाज के तरह हो तुम, याद किया ना किया क्यों पूछते हो, हमारी ज़िंदगी में सांसो की तरह हो तुम। मेरा साथ हमसफर तुम देना, अगर कम हो सांसे, तो सांसो में सांस देना, तुम मेरी जरूरत हो, हरपल तुम मेरे साथ रहना, अगर हो कोई शिकायत, तो आकर मुझसे कहना गलती से भी अगर गलती हो जाये, तो मुझे माफ़ कर देना, ख़फ़ा हो कभी बातें नहीं करना वैसी सज़ा फिर कभी ना देना, वैसे दिनों का क्या है होना या ना होना जब तेरे बिना पड़ता है रोना। मेरा हाल तो सिर्फ बुरा है वो मेरे हमदम मुझे पता है तुम कैसे जी रही हो बिन मेरे, मेरे सनम कभी कभी यूँही यूँही कभी कभी दिल थम सा जाता है याद तेरी आते ही खुद ब खुद आँँसू छलक सा जाता है। मुझे रुलाने के लिए तेरा रोना डराता है तेरा ना मेरे पास होना बैठे देर तक मुझसे बातें करना, थामे मेरे हांथों को उम्र भर चलना मेरा साथ हमसफर तुम देना अगर काम हो सांसे तो साँसों में सांस देना।।

प्रभु प्रेम

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मेरा प्रेम अब पगालपन में बदलने लगा है, ये दिल दीवाना तुझमे खोने लगा है.. तुम्हे मैं किस नाम से पुकारूँ प्रभु, 'हरि' नाम मुझे अब भाने लगा है.. तुम जल्दी से मुझे मिल जाओ प्रभू........ अब ये प्रेम इकतरफा लगने लगा है।।।।।

टिके रहो!

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टिके रहो के हर जीत मुमकिन है, मुमकिन बिना नामुमकिन का भी अस्तित्व नहीं, ना को अपने अंदर रौंद दो, नकारात्मक लोगो से दूर रहो, रुको नहीं बस चलते चलो टिके रहो बस टिके रहो।। जिस पथ पे तुम चल रहे हो वहां पहले कोई आया होगा उस पथ को किसी ने तो बनाया होगा, एक नवीन पथ का तुम भी निर्माण करो, जिसपे पे अनेको युवा चल पाएं ऐसा आरम्भ करो, रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिके रहो।। आज में कुछ ऐसा करो के भविष्य का निर्माण हो, भूतकाल बन जाये तुम्हारा इतिहास ऐसा प्रयास करो, चलते हुए गिरोगे बार-बार लेकिन बस उठ जाना, क्यों चले थे और किसके लिए ये बस याद रखो, रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिक रहो।।

Sweetu (स्वीटू)

माना कि तुमने मुझसे प्यार सीख कर मुझसे ही प्यार करना छोड़ दिया, लेकिन ये मैं कैसे मानूँ की कोई और मुझ जैसा प्यार करना सीख गया जैसे मैं तुमसे बातें किया करता था sweetu, ठीक वैसी ही बातें तुम उससे करती हो ना, प्यारी मीठी सी गुदगुदी वाली शरारती बातें, और बताओ और बताओ कह कह कर खिंचने वाली लंबी बातें, दूर होते हुए भी एक दूसरे के आगोश में रात बिता देने वाली बातें हाँ पढ़ा था...... चोरी से मैने तुम्हारा chat उसके साथ उस ID को मैने ही तो बनाया था हमारे लिए, Password तो कम से कम बदल लेती, जिससे नहीं पढ़ पाता.... अब जो ये बातें मेरे दिल में नासूर बन गईं है इनको कैसे निकलूं sweetu कैसे भुलाऊं, पता है Sweetu इन सबको भुलाने के लिए खूब पीने लगा हूँ मैं, अकेले में खुद से बातें करते हुए पीता हूँ तो महफिलों में तुम्हारी बातें करते हुए, बुलाना तो छोड़ो अब तो कितनो ने मेरे पास आने ही छोड़ दिया पता है मुझे वो सभी मेरे पीछे मेरा मज़ाक उड़ाते हैं फिर भी तेरी कहानी सुना मुझे सुकून मिलता है sweetu लेकिन बीच रात जब मेरी नींद टूट जाती है तब मैं और ज्यादा छटपटा जाता हूँ ऐसा लगता है जैसे को...

लप्रेक 5

याद है तुम्हे.... वो कॉलेज के दिन हम एक दूसरे से रात में ऑनलाइन चैट किया करते थे, तुम कैंपस में कम ही मिलती और बातें करती थी मुझसे, तुम्हे डर था कहीं लोग हमारे बारे में अफ़वाह ना उड़ाने लगें, जबकि हमारे बीच तो दोस्ती के अलावा कुछ था भी नहीं, हाँ हम एक दूसरे को पसंद जरूर करते थे लेकिन हमनें शायद उसको उस तरह के प्रेम और मोहब्बत वाले नज़रिए से नहीं देखा था। तुम्हारी सहेलियाँ मुझे तुमसे बातें करते देख मुस्कुराने लगती थीं, मेरे कमीने दोस्त भी कुछ मज़ाक कर लिया करते थे, इन सब के बीच हमें सिर्फ पता था कि हम अच्छे दोस्त हैं, हमें एक दूसरे से बातें करना अच्छा लगता था। मेरे अलावा जो कुछ तुम्हारे करीबी दोस्त थे जो बात बात पे तुमसे चिपकते रहते थे वो देख मुझे बहुत गुस्सा आता था, मुझे तो कभी इतने करीब आने नहीं देती थी तुम, ऐसा क्यों? खैर छोड़ो... बहुत मिन्नतों के बाद तुम उस दिन मेरे साथ बाहर घूमने के लिए तैयार हुई थी, मेरे बाइक पे तुम पहली बार बैठी थी, हम दोनों सीसीडी गए थे जहाँ मैंने तुम्हारे लिए डेविल्स ओन आर्डर किया था और तुम मेरे लिए कप्पूचिनो, वो आधे घंटे तुमसे बातें करना आज भी मुझे याद है। वापसी म...

लप्रेक 1

12विं कक्षा उतीर्ण करने के बाद, डॉक्टर बन जाने की प्रबल इक्षा के साथ मैंने पांडेय सर् की रसायन विज्ञान की चोचिंग में नामांकन कराया, स्नातक में एक साल ड्राप करने का निर्णय लिया और सपथ लिया कि अपने माँ और पापा की आकांक्षाओं को पूरा करके ही दम लूँगा। यामाहा की rx100 बाइक से मैं चोचिंग जाया करता था जो हाल ही में मुझे भईया से मिली थी। क्लास रूम बहुत बड़ा था जिसकी अद्भुद संरचना थी, कम से कम 70-80 विद्यार्थी एक साथ पढ़ते थे, आगे की चार बेंचों पर सिर्फ लड़कियों को बैठने की इज्जाजत थी और लगभग 2 फीट की गैप के बाद लड़को के बेंच शुरू होते थे जो कि शंख्या में 6 रहे होंगे और 2 rows में विभाजित थे अलग-अलग। एक दिन अचानक मैंने महसूस किया कि कोई मुझे देख रहा रहा है, सर उठा कर गौर किया तो देखने वाला पलट गया। मैं अक्सर क्लास शुरू होने के 10 मिनट पहले पहुँच जाता था और अगले दिन फिर मेरी आँखें किसी से चार हुईं, इस बार मेरी नज़रें उससे मिल ही गयीं जो पीछे पलट अपने दोस्त से बात करने के बहाने मुझे कई दिनों से निहार रहीं थी। मैं मन ही मन ये सोंच रहा था कि बचपन से co-ed में पढ़ा फिर भी आज तक किसी लड़की ने घाँस तक नहीं ड...

लप्रेक 4

हेलो! हूं ह म म म बोलो क्या हुआ कुछ नहीं फिर कुछ बोल क्यों नहीं रही हो बस ऐसे ही अरे ये क्या बात हुई मुझे तुमसे बात नहीं करनी तो फिर फ़ोन क्यों किया तुमपे गुस्सा करने के लिए क्या! गुस्सा क्यों? तुम्हे नहीं मालूम नहीं तो.... ओह अच्छा जो कल तुमने फ़ोन किया था और मैं सिर्फ हाँ और ना कह रहा था हाँ उसी बात के लिए अरे बाबा तुम्हे पता है ना फ़ोन मम्मी पापा के रूम में है, तब वो वहीं बैठे हुए थे और तुम बार-बार ई लव यू बोलने के लिए कह रही थी, बताओ मैं कैसे बोलता। मुझे ये सब नहीं पता, जब मैंने बोला तो वापस बोलना था बस, तुम्हारा ई लव यू सुनने के लिए ही मैं घर से निकल कर टेलीफोन बूथ से फ़ोन करती हूँ तुम्हे नहीं मामूल क्या? हाँ पता है यार, सॉरी गलती हो गयी, अब से ऐसा नहीं होगा। ऐसे नहीं कान पकड़ के बोलो हा हा मैं कान पकडूँगा तो तुम्हे फ़ोन पे दिखेगा क्या? नहीं दिखेगा लेकिन फिर भी ईमानदारी से पकड़ो अच्छा बाबा ये लो पकड़ लिया सॉरी और लुवे यू वेरी मच भी उ म म म म पूच च च च ये लो पप्पी भी, अब ठीक है बस बस ज्यादा नहीं, ठीक है, ई लव ईयू टू! बाये बाये! फिर कब फ़ोन करोगी पता नहीं कब घर से निक...

लप्रेक 3

जिसे देखने की आदत हो जाये, जिसे देखे बिना मन ना लगे, जिसके लिए मैं क्लास जाता था, रविवार को चाहता था कि कैलेंडर से ही हटा जाए क्योंकि उस दी छूटी होती थी, वो दो घंटे का क्लास ही मेरी ज़िंदगी बन चुका था, उसका उस दिन कोचिंग नहीं आना, मेरा दिमाग बहुत सारे प्रश्नों को जन्म देने लगा था जैसे क्या उसे मुझसे बात करके अच्छा नहीं लगा, उसने मुझसे मेरा caste पूछा और मैंने बताया नहीं क्या इस वजह से वो नहीं आयी, दूसरी तरफ इन सवालों के जवाब देता ऐसी तो कुछ खराब बात हमारे बीच हुई ही नहीं फिर भला वो क्यों नहीं आएगी, caste नहीं बोलने के बाद उसने बोला तो की दोस्ती में caste जान कर क्या करना, मासूम दिल, दिमाग की सारी नकारात्मक बातों को नज़रंदाज़ कर उसमें कहीं खो जाता, अपनी स्वप्न नगरी में जहाँ खूबसूरत पहाड़ थे, वादियाँ थी, बादल, मखमली हवा, हरे घाँस, खूबसूरत फूलों की बगिया और उन सबके बीच सिर्फ मैं और स्वाति थे। अगले दिन वो क्लास में आई और पूरी तरह से मुझे इग्नोर किया, उसने मेरी तरफ देखा है नहीं, पूरे क्लास में सिर से नज़रे बचा मैं बस उसे ही देखता रहा कि अब वो पलटेगी और मुझे देखेगी लेकिन वो 2 घंटे बीत गएं उसने ए...

लप्रेक 2

जानती हो... कल सोंचा पुरानी डायरी ढूंढ तुम्हारे लिए जो शायरियाँ लिखा करता था उन्हें पढूँ... बहुत याद जो आ रही थी तुम्हारी, वो मेरे हर्फ़ हमारे प्यार पे चढ़े पवित्र पुष्प ही तो थे जो उस डायरी में कहीं दबे पड़े हैं ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे दिए कुछ फूल जो मिलें मुझे सूखे हुए उन पन्नों के बीच, वो एक छोटा सा सूखा गुलाब मुझे आज भी याद है जो तुमने दिया था साई बाबा मंदिर से लाकर मुझे आशीर्वाद स्वरूप, आज भी साई बाबा को देखता हूँ तो तुम्हारी याद आ जाती है। पता है उस पुरानी डायरी में तुमने मेरे लिए कुछ फिल्मी गाने लिखें थे वो भी पढ़े मैंने, जो तुमने लिखने के बाद घर जाकर पढ़ने को कहा था, उन पन्नो पे तुम्हारा स्पर्श आज भी महसूस कर सकता हूँ। भले ही हम दोनों आज अलग-अलग ज़िन्दगी जी रहे हैं लेकिन उस डायरी में मेरी कविता की पंक्तियाँ और तुम्हारे दिए गुलाब की पंखुड़ियाँ आज भी एक दूसरे के आगोश में दुनिया से छुप कर साथ में ज़िन्दगी गुजार रहे हैं एक प्रेमी युगल की तरह।

गाना 1

अफसानों को हकीकत ने मारा मुझको तो तेरी मोहब्बत ने मारा खामखां शराब बदनाम हो गयी मुझको तो तेरी शोहबत ने मारा। जी रहा था मैं, कितना खुश अकेला मुझको पहले तो, तेरी नज़रों ने मारा मुस्कुराकर तूने, जो कहर था ढाया चाह कर भी ये दिल रुक ना पाया मुझको तो तेरी मोहब्बत ने मारा। गुदगुदी उठी जब तेरे पास आया करंट दौड़ उठा जब हाथ मिलाया अच्छा खासा खुश रहता था पहले तेरे जाने के बाद उदासी ने मारा मुझको तो तेरी मोहब्बत ने मारा। तेरा मिलना रहा, ज़िन्दगी में सबसे अच्छा  तेरा बिछड़ना रहा, ज़िन्दगी में सबसे बेज़ार 

संग चलो भाइयों

संग चलो भाइयों बदलाव लाना के लिए देश को सबसे बेहतर बनाना के लिए। कब तक डर कर जीते रहोगे, खून के आँशु पीते रहोगे, नौकरी चाकरी के चक्कर में देश को लूटने देते रहोगे, आना होगा आगे सबको पढ़े लिखे युवाओं को, सीधे साधे सुलझे हुए, भविष्य के नए नेताओं को, ऐसा कौनसा काम बना है जो तुम ना कर पाओगे, रग रग में दौड़ता जुनून यूँही ना बर्बाद करो, जब उठो यलगार करो खुद में बदलाव करो उठो जागो नए सवेरे का सब मिल कर सत्कार करो। संग चलो भाइयों बदलाव लाना के लिए देश को सबसे बेहतर बनाना के लिए।

ये मुल्क़ वही है प्यारों का

ये मुल्क़ नहीं है परायों का ये मुल्क़ वही है प्यारों का खुलके घुलते मिलते सिवयों में सौहादर्य छिपा है भाइयों का चाँद की कटोरी में पुआ पकाये होली का दूर है चाँद तो बाँट नहीं पायें सरहदें चंद पत्थरों से दिल ना फूटेगा हम भाइयों का। इंसानो को हैवान बना रहे हैं कुछ लोग धर्म के नाम पे माहौल बिगाड़ रहे हैं लोग सियासत की रोटी सेकने के लिए घर बार जला रहे हैं कुछ लोग। दहशतगर्दो को होगा दोज़क नसीब काटने पीटने वालों का ना होता कोई कौम ये लड़ाई नहीं है महजबी न होता आतंकी का कोई धरम। ये मुल्क़ नहीं है परायों का ये मुल्क़ वही है प्यारों का 

बिल्लू

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बिल्लू  दी किस्मत बिल्लू जाने मैं तो जांदा अपना मंजिल मिले ना ऐसे ही बिल्लू ढूंढे रास्ता अपना, बिल्लू  ढूंढे short cut, मांगे bundle of note, मांगे ना मिलती मनचाही मौत भी बिल्लू को बताये कोई, ऐसे लगेगी चोट। बिल्लू  खुद ko समझे boss पहनता है ऐसे कपडे जैसे हो posh emi पे  गाडी चमके चमके ray ban ka चस्मा बिल्लू उड़े  ऐसे हवा में जैसे उड़े मुर्गा ac office में बैठ कर करे पक पक सब पकते सुनके इस की बक बक। सपने ऐसे पुरे नहीं होते अगर होते तोा आज होती  katrina मेरी gf, बिल्लू  को बताये कोई , बेटा  ऐसा ना हो पाएगा sprite पिने से भी सब clear ना हो पाएगा। चम चम चमकती गाड़ी , गाडी के पीछे कुत्ता भाग बिल्लो आंधी आई , कहीं short ना हो जाए तेरा हथा बैठ, सोंच ,खुद से सवाल कर , कब तक ऐसे ही  चलायेगा बिल्लू  बस तू ही जाने कैसे तू बेहतर कर पायेगा। होता है मुश्किल डगर सही जो सब ना कर पाते हैं हौंसलों की उड़ान लेता जो जब कभी मिलती है मंज़िल उसको तब तभी।

दिल

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ना जाने मेरे हाँथों को मेरे दिल से क्या रंज है अक्सर उसकी बातों को कागज़ पे उतार देता है, कुछ राज़ जो उसने किसी कोने में दबा रखें हैं उसे भी कभी-कभी बाज़ार-ए-आम बना देता हैं। मेरे दिल को दर्द ये दिमाग कम नहीं देता, अक्सर भूली बिसरी बातों को याद दिला देता है सोंचा था उसने की अब टूट ही गया तो सुकून मिलेगा जोड़ने के बहाने आकर बार-बार वो तोड़ देता है।

कोरोना का वध

घनघोर अंधकार फैला है मन में डर का बसेरा है अगर तम को भगाना है तो बस दीप ही जलाना है बस दीप ही जलाना है सबको साथ चलते जाना है देश हित में जो भी हो वो सब करते जाना है माँ भारती के नौनिहालों हमें एक जुट रहना है वसुधा है पुकार रही भारत को आगे आना है खुद के साथ- साथ इस विश्व को बचना है हिम्मत की मशाल जला तिमिर से पार पाना है कोरोना का वध कर विजय ध्वज फहराना है।

मीठे ख्वाब

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किसी ने इक गुजरते हुऐ वक़्त में ये कहा था. " कोई किसी से अलग क्यों ना हो जाये, दिल के किसी ना किसी कोने में उसकी यादें रह जाती हैं " कल रात फिर तेरे मीठे ख्वाब आये क्या जादू भरी वो आँखें थी मैं मदहोश अब भी हूँ , मुस्कुरा रहा हूँ  ना जाने क्यों खुद में ही खोया सा हूँ । कभी तो आ के मिल अपनी दुनिया भुला कर मेरी दुनिया में, कब से बैठा हूँ बाहें फैला यूँही तन्हा अकेला सा कुछ एहसास अब भी बाकि है तेरे साँसों की तू कह दे तो  काट लून ये  ज़िन्दगी उन अहसासों में ही। भूल ना पाऊं तुझे कैसा तेरा जादू था चुम्बक के तरह तुझसे मेरी रूह है जा चिपकी आ आना आ जा पास मेरे मेरी जान मेरी मोह्बत प्यार से भर दूँ खुद को मैं और तुझे भी।

ब्रह्म की तलाश

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जहां से चला था घूमकर फिर वहीं खड़ा हूँ, अभी पूर्णतः मरा नहीं, अधमरा हूँ। आकांक्षाओ और इक्षाओं के बीच, कहीं तो आज़ादी दब सी गयी है, हर कुछ पाने की असीम चाह में, ज़िन्दगी देखो कहीं छूट सी गयी है, मन को जब खामोश अकेले टटोलता हूँ, तो एक दर्द का आभाष होता है, सब कुछ पाकर भी जैसे कुछ ना पाया हो, ये जीवन अधूरा सा रह गया प्रतीत होता है कुछ तो है अपने अंदर जो पूर्ण स्वरूप लेना चाहता है जैसे कैद हो इस शरीर रूपी पिंजरे में, बेचैन, बेबस लेकिन असीम ऊर्जा से भरा वो खुद को आज़ाद करना चाहता है, फंस कर रह जाता है इंसान माया के जाल में भूल जाता है कि क्यों आया है इस संसार में, जगा अपनी चेतना को और उभर के दिखा कैसा और कितना तूने अद्भुत ये जीवन पाया है ज़िन्दगी की ये जद्दोजहत बस जीने के लिए नहीं ये महज इंसान बनने के लिए नहीं, ये जो जद्दोजहत है वो भगवान बनने के लिए है सब में छुपा है वो ब्रह्म उसे तलाशने की जरूरत है तराशने की जरूरत है।। ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या, जीव ब्रह्म ईवा नपरः।

जीने की शर्त

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अपनी शर्तों पे जीना चाहोगे तो कष्ट होगा ही, यूँही नहीं नदी पत्थरों से टकरा अपनी राह बनाती है, कौन नहीं चाहता कि कैद में बुलबुल रहे, बाज बन जा उससे दुनिया भय खाती है, नभ में जब तू ऊंची उड़ान भरेगा, तब सब तुझे डराएंगे मज़ाक भी उड़ाएंगे, संयम से तू बस उड़ते चले चलना, आसानी से कौन अपना मंज़िल पाया है, कितने आएं और कितने गएं, बस चंद लोग हैं जिन्होंने ने नाम कमाया है ज़िन्दगी तेरी है तो जीने की शर्तें भी तेरी हो, नियमों में बांध कर कौन आज़ादी को रख पाया है। ।

हिचकियों का दौर

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"तेरे जाते ही हिचकियों का दौर शुरू हो गया , तुझसे मिलने का जूनून सर चढ़ गया " तू कब आएगी आकर कब हंसाएगी उदास दिल है मेरा जल्दी ये बता की तू कब आएगी। पागल ना हो जाऊं  कहीं दिल ये लगता नहीं कहीं तू आजा पगली अभी के अभी देर ना हो जाए कहीं। 

समय से बंधा सूर्य भी

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इधर आया तो उधर भी गया, ऊपर गया तो नीचे भी आया, जितना भी जोर लगाया, अंत में पराजय ही पाया, घाट-घाट का पानी पिआ, सीखा चाहे हो पुण्य या पाप, मदारी ने ऐसा नाच नचाया, पटका ऐसे के उठ ना पाया, गिरता रहा उठता रहा उठ-उठ के गिरता रहा आदत सी हो गयी पराजय कि अंत में समय ही जीतता रहा बहुत घाव दिये समय ने, लेकिन वही हर दाव भी सिखाता रहा, लड़ना, जूझना, जीना हर परिस्थिति में, वो हर भाव में हसना सिखाता रहा, समय को गुरु मान कर शिष्य की भांति बस सीखता रहा, समय से बंधा तो है सूर्य भी, फिरभी देखो कैसे वो डूबता रहा, उगता रहा और चमकता रहा।