तुझे क्या पता होगा मेघ book 2

रातभर बरसते मेघों को क्या पता
यहाँ सड़क किनारे भी लोग सोते हैं
बेसहारा, बेबस, बिना छत के
फूटपाथ ही जिनकी चारपाई है
शरीर जितनी ही जिसकी चौड़ाई है
लंबाई से ज्यादा हिस्सा भी नहीं मिलता
बगल में आखिर कोई और भी तो है सोता
जिसका पता नहीं क्या धर्म होगा या जात
लेकिन हैं दोनों के एक जैसे ही हालात
गंदे कपड़े मैला शरीर हर जगह से जीर्ण-शीर्ण
लेकिन सब मिलकर रहते हैं एक साथ
बांट रखा है उन्होंने भी अपना साम्राज्य
जिसकी रक्षा के लिए तैनात हैं अनेक भगवान
जिनको लटका रखा है सामने की दीवारों पे
शायद इसी उम्मीद से की उनके दिन भी अच्छे हों
ठीक हमारी तरह ही भगवान से मांगते हैं वो
वो भी तो परम पिता परमेश्वर का ही अंश हैं
आखिर किसी ने कहा है ना तत्त्वं असि! सोहम!
हर जीव में ब्रह्म हैं, मैं वो हूँ!
लेकिन तुझे ये सब क्या पता होगा मेघ, तू बस बरस।

तत्त्वं ऐसी - वो ही तुम हो
सोहम- मैं वह हूँ

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