लप्रेक 2
जानती हो...
कल सोंचा पुरानी डायरी ढूंढ तुम्हारे लिए जो शायरियाँ लिखा करता था उन्हें पढूँ... बहुत याद जो आ रही थी तुम्हारी, वो मेरे हर्फ़ हमारे प्यार पे चढ़े पवित्र पुष्प ही तो थे जो उस डायरी में कहीं दबे पड़े हैं ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे दिए कुछ फूल जो मिलें मुझे सूखे हुए उन पन्नों के बीच, वो एक छोटा सा सूखा गुलाब मुझे आज भी याद है जो तुमने दिया था साई बाबा मंदिर से लाकर मुझे आशीर्वाद स्वरूप, आज भी साई बाबा को देखता हूँ तो तुम्हारी याद आ जाती है।
पता है उस पुरानी डायरी में तुमने मेरे लिए कुछ फिल्मी गाने लिखें थे वो भी पढ़े मैंने, जो तुमने लिखने के बाद घर जाकर पढ़ने को कहा था, उन पन्नो पे तुम्हारा स्पर्श आज भी महसूस कर सकता हूँ।
भले ही हम दोनों आज अलग-अलग ज़िन्दगी जी रहे हैं लेकिन उस डायरी में मेरी कविता की पंक्तियाँ और तुम्हारे दिए गुलाब की पंखुड़ियाँ आज भी एक दूसरे के आगोश में दुनिया से छुप कर साथ में ज़िन्दगी गुजार रहे हैं एक प्रेमी युगल की तरह।
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