लप्रेक 1
12विं कक्षा उतीर्ण करने के बाद, डॉक्टर बन जाने की प्रबल इक्षा के साथ मैंने पांडेय सर् की रसायन विज्ञान की चोचिंग में नामांकन कराया, स्नातक में एक साल ड्राप करने का निर्णय लिया और सपथ लिया कि अपने माँ और पापा की आकांक्षाओं को पूरा करके ही दम लूँगा। यामाहा की rx100 बाइक से मैं चोचिंग जाया करता था जो हाल ही में मुझे भईया से मिली थी। क्लास रूम बहुत बड़ा था जिसकी अद्भुद संरचना थी, कम से कम 70-80 विद्यार्थी एक साथ पढ़ते थे, आगे की चार बेंचों पर सिर्फ लड़कियों को बैठने की इज्जाजत थी और लगभग 2 फीट की गैप के बाद लड़को के बेंच शुरू होते थे जो कि शंख्या में 6 रहे होंगे और 2 rows में विभाजित थे अलग-अलग। एक दिन अचानक मैंने महसूस किया कि कोई मुझे देख रहा रहा है, सर उठा कर गौर किया तो देखने वाला पलट गया। मैं अक्सर क्लास शुरू होने के 10 मिनट पहले पहुँच जाता था और अगले दिन फिर मेरी आँखें किसी से चार हुईं, इस बार मेरी नज़रें उससे मिल ही गयीं जो पीछे पलट अपने दोस्त से बात करने के बहाने मुझे कई दिनों से निहार रहीं थी। मैं मन ही मन ये सोंच रहा था कि बचपन से co-ed में पढ़ा फिर भी आज तक किसी लड़की ने घाँस तक नहीं डाला, फिर इस लड़की ने ऐसा क्या देख लिया जो पलट कर देखती है।
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