दिल

ना जाने मेरे हाँथों को मेरे दिल से क्या रंज है
अक्सर उसकी बातों को कागज़ पे उतार देता है,
कुछ राज़ जो उसने किसी कोने में दबा रखें हैं
उसे भी कभी-कभी बाज़ार-ए-आम बना देता हैं।

मेरे दिल को दर्द ये दिमाग कम नहीं देता,
अक्सर भूली बिसरी बातों को याद दिला देता है
सोंचा था उसने की अब टूट ही गया तो सुकून मिलेगा
जोड़ने के बहाने आकर बार-बार वो तोड़ देता है।

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