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Showing posts from October, 2017

टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो

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टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो रिश्ता-रिश्ता वो रास्ता-रास्ता वो ये कैसा है दौर सब रहे हैं दौड़ मंज़िलों की ओर इंसानो की होड़।। टूटा -टूटा वो छूटा-छूटा वो रस्मे-रस्मे वो राहें-राहें वो ये कैसा है शहर लगता है डर जिंदगी जैसे हो ज़हर वक़्त जरा तू ठहर वक़्त जरा तू ठहर।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो यारी-यारी वो गलियां-गलियां वो ये कैसा है बाग, नहीं उगते गुलाब जाने क्यों लगी है आग दिलों में ना हो कोई भाग दिलों में ना हो कोई भाग।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो

इबादत (Old Diary 26.08.2004)

तेरी मीठी बातों को हमने सुन कर जाना, कोई कितना प्यार करता है, तेरी आंखों में हमने देख कर जाना, कोई कैसे दिल में उतरता है, तुझे प्यार करके हमने जाना, कोई क्यों किसी की इबादत करता है।

बस रब जाने (Old Dairy 25.08.2004)

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तेरी चाहतों को सीने से लगा कर, ढेरों सपने देखे हैं हमने, उन ख़्वाबों को सिरहाने रख कर, काटीं हैं कितनी रातें हमने, वो बेख़बर मेरे हमसफर मुझसे ज्यादा, तू खुद को भी ना जाने, क्या होगा हमारे प्यार का ना मैं जानूँ, ना तू जाने, बस रब जाने।

कभी करीब कभी दूर (Old Dairy 15.07.2004)

कभी करीब , कभी दूर, इस वक़्त के फासले में है, लम्बी यादों की पुल, माना  वो भी याद करते होंगे हमें, पर ये दिल है की मानता नहीं, चाहे हरपल देखे, सुने उन्हें। 

Purani Dairy 17.07.2004

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हर वक़्त दिल से बस यही फर्याद निकलती है, जीवन भर तेरा मेरा साथ रहे, हर पल तू मेरे पास रहे, और बहुत हैं इस दिल की चाहतें, तुझ में मैं रहूं , मुझमें  तू रहे। 

कमबख्त दिल (Old Dairy 17.07.2004 )

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"अगर हो सकता तो निकाल कर फ़ेंक देता पर कम्बख्त दिल के बिना रह भी नहीं सकता" दूर कहीं तुम हो , पास तुम रहो  हर वक़्त तुम रहो  इस दिल की आरज़ू है....  जिऊँ मैं हरपल तेरे लिए , इस ज़िन्दगी की आरज़ू है।

संग चलो भाइयों

संग चलो भाइयों बदलाव लाना के लिए देश को सबसे बेहतर बनाना के लिए। कब तक डर कर जीते रहोगे, खून के आँशु पीते रहोगे, नौकरी चाकरी के चक्कर में देश को लूटने देते रहोगे, आना होगा आगे सबको पढ़े लिखे युवाओं को, सीधे साधे सुलझे हुए, भविष्य के नए नेताओं को, ऐसा कौनसा काम बना है जो तुम ना कर पाओगे, रग रग में दौड़ता जुनून यूँही ना बर्बाद करो, जब उठो यलगार करो खुद में बदलाव करो उठो जागो नए सवेरे का सब मिल कर सत्कार करो। संग चलो भाइयों बदलाव लाना के लिए देश को सबसे बेहतर बनाना के लिए।

राजतंत्र

देखो तो कितनी महंगाई है, एक नेता की कीमत 1 करोड़ लगाई है, सबसे विकसित राज्य में भी योजनाओं की बाढ़ आई है, 22 सालों में जो काम पूरा ना हुआ उसके लिए 5 साल की और दुहाई है, राजतंत्र का खेल ही भ्रष्ट है मित्रों, जो शहें'शाह' आया उसने ही मलाई खाई है।

बियोस्कोप

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देखला! देखला! देखला! बॉयोस्कोप देखला, रंगबिरंगी दुनिया के हर सितारा देखला, देखला अमिताभ के त हेमा के गाल देखला, मिथुन के डांस देखला त धर्मेन्द्र के मार देखला। बहुत सारे लोगो ने ये चलता हुआ बॉयोस्कोप देखा होगा खास तौर से वो जो गांव में रह चुके हों, मुझे ज्यादा तो याद नहीं परंतु शायद 2-3 बार मैंने भी देखा होगा, जैसी कविता ऊपर लिखी है शायद वैसा ही कुछ चिल्ला कर बच्चों को बुलाया करते थे और कुछ इसी तरह सिनेमा दिखाया करते थे इस बॉयोस्कोप में, मेरा बचपन जहां गुज़रा है शायद उस मोहल्ले में ये ही आते हों खैर इतना याद नहीं लेकिन मेला घूमते हुए इनपे नज़र पड़ी, बॉयोस्कोप तो रख रखा था लेकिन शायद देखने को कुछ नहीं था उसमें, पहली बार तो मैंने भी नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ गया था लेकिन मुझे उत्सुकता हुई बॉयोस्कोप देखने की तो वापस मुड़ कर आया और चचा से बातें करने लगा बॉयोस्कोप के बारे में, उन्हों ने बताया के 1970 से वो ये काम कर रहे थे आज बदलते दौर में न फ़िल्म है देखने को और कोई आता भी नहीं बस वो किसी तरह इधर उधर से मांग कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सन 2017 में तो दूर की बात है,90s में ही इसे देखने वाले काम थे ब...