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Showing posts from September, 2025

असभ्यता की लकीरें book26

कभी देखा है दीवारों पे पड़ी हुई पान के छीटों को क्या वे मामूली छीटें हैं नहीं बल्कि छाप छोड़ती असभ्यता की लकीरें हैं। कभी देखा है ट्रेन में पड़ी हुई केले और बदाम के छिलको को, क्या वे मामूली से छिल्के हैं, नहीं बल्कि छाप छोड़ती असभ्यता की लकीरें हैं। कभी देखा है रोड पे फेखी हुई घर के कचरे को क्या वो मामूली सा कचरा हैं नहीं बल्कि छाप छोड़ती असभ्यता की लकीरें हैं। कभी देखा है गाड़ियों से फेकते हुए बेकार थैली और बोतल को क्या वे मामूली से प्लास्टिक हैं नहीं बल्कि छाप छोड़ती असभ्यता की लकीरें हैं। Kabhi dekha hai.... deewaron pe padi hui.... paan ke chhitoan ko, kya ve mamuli paan ke chhintein hain, nahin balki chhap chhorti.. asabhyata ki lakerein hain. Kabhi dekha hai.... train mein padi hui... kele aur badam ke chhilko ko, kya ve mamuli se chhilke hain, nahin balki chhap chhorti, ashabyata ki lakerien hain

दोहराया है दोराहा। book25

इधर जाऊं  के उधर जाऊं रुकूँ कहीं के दौड़ता जाऊं मन को विचलित करने फिरसे दोहराया है दोराहा। जीवन पथ पे चलता चला कभी गिरा तो कभी उठा सोंच को भ्रमित करने फिरसे दोहराया है दोराहा।

नींद book24

अर्धरात्रि हो ही जाती है सब समेटने में साहब सबकी उम्मीदें हैं, ख्वाहिशें हैं, जरूरतें हैं खुद में हौंसला भी चाहिए हर रात संजोने के लिये सबको ख्वाब बना कर नींद में पिरोने के लिये।

समय book23

समय से ही समस्या समय से ही समाधान है समय जग में सबसे बलवान है समय ही ले जाता शिर्ष पर समय ही लाता फिर फर्श पर समय को जिसने जीत लिया वो ही कहलाता सुल्तान है।

आज मैंने ज़िन्दगी को देखा book22

आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा सुबह से शाम शाम से सुबह तलक देखा पाया बहुत खोया थोड़ा सा उस खोये हुए को पाने के लिए आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा टूटा हुआ तो बस एक सपना था उसको पाने के लिए एक और सपना देखा नींद नहीं आ रही थी फिरभी सो रहा था ख्वाबों को कच्ची नींद में पिरो रहा था आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा निगाहें ना जाने क्या तलाश रहीं थी हर मंज़र में हर कोई अपना दिखा पूछा उनसे तो हर बार एक नया रास्ता दिखा आज मैंने ज़िन्दगी को देखा बड़े ही गौर से देखा

हंसते- हंसते book21

यूँही गुजर रही है ज़िन्दगी हंसते-हंसते, कुछ हम पे हंसते तो कुछ पे हम हंसते, कुछ होते हालात ऐसे की है हसना पड़ता, कुछ तो कभी हम हालात पे हंसते, हंसते रहो कहीं ये ज़िन्दगी बुरा ना मान जाए काँटों भरी ही तो है बस काट दो हंसते- हंसते।

झूठ में थोड़ा झूठ book20

आज कल अक्सर मैं तन्हाइयों से लिपट कर बैठा रहता हूँ महफिलों से दूर कर रखा है अपनो में भी बेगाना नज़र आता हूँ, अब तो मेरी रूह भी कहने लगी है मुझसे की तू गलत है टेक दे घुटने और सर झुका भेड़ियों में तू भेड़िया बन कर क्यों नहीं रहता, अकसर जंगल में होता है शेर का शिकार, अक्सर आंधियों में जो पेड़ झुकते नहीं वो टूट जाया करते हैं बीच में पैसा आ जाये तो रिश्ते छूट जाया करते हैं, हाँ में हाँ ही तो मिलना है सच को दबा कर बस झूठ में थोड़ा झूठ ही तो मिलना है।।

फ़ैसले book19

सुना है जो परिंदे पिंजरा तोड़ उड़ जाया करते हैं उन्हें बाहर बैठे चील कौवे नोंच जाया करते हैं इस डर से क्या कोई अपने पंखों को ही काट दे या लड़ने के लिए अपनी चोंच को धार दें, सोने के पिंजरे का मोह कब तक रख सकेगा इससे पहले के पंख उड़ना ही भूल जाएं अपनी सोंच को एक नया आयाम दे, मजबूरियां इंसान को मिट्टी में मिला देतीं हैं तो कुछ को महान बना देतीं है, ये जद्दोजहत सिर्फ इंसान बनने के लिए नहीं है, आपके फ़ैसले ही मिट्टी को भगवान बना देतीं हैं

आत्मा का परमात्मा से मिलान book18

जब आत्मा का परमात्मा से मिलन होगा, अलौकिक परम आनंद ही सर्वर्श होगा, खुशी से रोना चाहोगे तब भी ना रो पाओगे, हर्ष से प्रफुलित तुम हंस भी ना पाओगे, मचलने के लिए ना ही मन होगा, उछलने के लिए ना ही तन होगा, बस एक शून्य में विलय होगा तन विहीन आत्मा बस परमात्मा में विलीन होगा, मनुष्य जन्म पाया है तो बस भक्ति कर बंधू, जो ये हृदय पाया है तो बस उससे प्रेम कर बंधु, उसने भेजा तेरी ही ज़िद पे तुझे क्या तुझे ये याद नहीं, उससे प्रेम करना तेरा लक्ष्य है क्या ये भी याद नहीं, भ्रमित हो रहा तू उसके ही बनाये माया जाल में, माया का ही ये भ्रम तोड़ने तो आया है तू, ये जो तन मन है मिला बस उससे प्रेम करने को, फिर क्यों डर कर उससे मिलना चाहता है तू, निर्भय जीता जा इस ज़िन्दगी को, उस परब्रह्म का ही तो अंश है तू, धर्म की राह पे अटल चलते रहना, ना घबराना किसी रक्त रंजिश से तू, सब हैं बनाये उसकी के बंदे, जो भटका उसको राह दिखा तू, प्रेम से देख सब में तुझे ईश्वर ही दिखेगा, ईश्वर के ही हैं सब अनेक रूप।।

yaad aata hai book17

apne shehar ki galiyan yaad aatin hain., ghar ki chaukhat roj bulatin hain, hain itni mazbooriyan ki apno se door hain, warna ye paun ghar ke taraf hie chalna chahtin hain, wo maa ka thappi de kar sulana, papa ka cycle sikhna- yaad aat hai, pichhe -pichhe bhag kar maa khana khilati thi, wo kaan aethna- yaad aata hai, nikale itne door ke hum, har raaste mein ghar ka pata nazar aata hai,, school jate hue paise dena, thak gaya toa pair dabana, shham ke samay papa ka bazaar ghumana, yaad aata hai. sapno ke shehar mein jo apne chhut gayein hain, wo samajh kar bhi samajh nahin aata hai, bhai ke saath khelna aur usse jjhagarna, uske kadmon ke nishan ke pichhe,, apne kadmon ke nishan banana- yaad aata hai. iss dhul bhare shehar mein, apne ghar ka har phhol yaad aata hai. doston ke saath ghumna, chai ke saath baatein ghumana, jis chaurahe pe bichhard gaye hain, wo chauraha yaad aata hai, har mod pe ek naya raasta nazar aata hai, nikle the kahin aur pahunche hain kahin, manzeelon ke safar mein, ...

बचाने की ज़रूरत है-पर्यावरण को प्रताड़ना से book11

बचाने की ज़रूरत है प्रकृति को शोषण से, पर्यावरण को दोहन से, वरना तापमान बढ़ता ही जाएगा वन-जन-जन्तु का जीना मुश्किल होगा बचाने की ज़रूरत है गर्मी को शीत से, आर्द्रता को शुष्क से, वरना रेगिस्तान में बर्फ गिरेगी, बारिश में सूखा होगा। बचाने की ज़रूरत है बादलों को गिरते तापमान से प्रदूषित SO2 और NO2 se वरना बूंदों की जगह ओला गिरेंगे, बारिश नहीं अल्मीय वर्षा होगी। बचाने की ज़रूरत है ओज़ोन को cfc से, धरती को UV विकिरण से वरना समुंद्री जल स्तर बढ़ता ही जाएगा बाढ़ को संभालना मुश्किल होगा बचाने की ज़रूरत है थल एवं जल को प्लास्टिक और अन्य क्षेपण से फिज़ा को हानिकारक गैसों से, वरना शुद्ध जल घटता ही जायेगा सांस भी लेना मुश्किल होगा जीव जन्तु जिन्दा ना रह पाएंगे अंत में प्रलय से बचना मुश्किल होगा।

हवाओं ने जो रुख बदल लिया है book15

हवाओं ने जो रुख बदल लिया है मौसम ने भी तेवर बदल लिया है तिनके जो अक्सर किसी का सहारा बनते थे उन्हीने ने भी घोंसला बनना पसंद किया है वृक्ष जो रहते थे सीना ताने उन्होंने भी अब झुकना पसंद किया है चिंगारियां जो पहले दहक जाती थीं उन्होंने भी अब बुझना पसंद किया है कश्तियाँ जो मझधार से लड़ जाती थीं उन्होंने भी अब डूबना पसंद किया है आत्माएं जो इंसान में जन्म लेना चाहतीं थी उन्होंने भी अब जानवर बनना पसंद किया है अये दुनिया के हुक्मरानों ऐसा माहौल मत बनाओ कि ज़िंदगी जीना ही छोड़ दे.... और बदलाव अगर आ जाएगा तो अंधेरे जो रौशनी से डरा करते थे उन्होंने आज सूरज बनना पसंद किया है।

आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा book14

अब खड़ा कौन होगा चुनाव में मुद्दा बन कर विकास भी तो अब से आरक्षित हो जाएगा बिना पढ़े अब वो भी सरकारी मुलाज़िम हो जाएगा नाचो गाओ हर्ष मनाओ मेरे देशवासियों आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा। अब जात-पात पे चुनाव नहीं लड़ा जाएगा बेरोज़गारी रही कहाँ जो उसपे बात किया जाएगा अब बातें विकास की भी नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जाएगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा अब सब आरक्षित हैं मतलब सभी खुश हैं गरीब भूखे का भी पेट भर जाएगा, अब किसानों की भी आत्महत्या नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जाएगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा अब असहिष्णुता सहिष्णुता में तब्दील हो जाएगा, गाय पे भी सौहार्द का माहौल बन जायेगा, अब तो तीन तलाख की भी बातें नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जायेगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा अब मेरे हनुमान का जात नहीं पूछा जाएगा, श्री राम का मंदिर सवर्ण आरक्षण के तहत बन जायेगा, ईमानदार सरकार में भ्रस्टाचार की भी बात नहीं होगीं, फिर चुनाव में मुद्दा क्या रह जायेगा, आज से विकासशील भारत विकसित हो जाएगा।

बिन लोरी book 12

बिन लोरी तुम कैसे सोये भूखे पेट नींद कैसे आयी वो मेरे बिहार के नौनिहालों उठ जाओ राहत है आयी जो गलतियाँ हुई है हमसे उसकी ना है कोई भरपाई अभी तो पनपा था बचपन उनपे ये कयामत क्यों आयी सुविधाओं के आभाव में विपदा ने सैकड़ों जाने खायी फिर भ्रस्टाचार की चपेट में देखो गरीबी ने जान है गवाई क्यों तुमने बिहार में जन्म लिया कैसी खराब किस्मत थी पायी माफ करना बिहार के नौनिहालों तुम्हे बचाने राहत देर से आयी। अश्रुपूर्ण श्रधांजलि... 'प्रभास'

main toa pani hoon book 13

main toa pani hoon, bhagwan pe chadha , phirbhi naale se hokar gujra hoon, bujhaya bahut pyaas phir bhi, ansoo ban kar nikala hoon, baarish ban kar barsa toa khush hua, phirbhi aasman se chhuta toa.... dharti pe mit gaya hoon, main toa pani hoon. मैं तो पानी हूँ, भगवान पे चढ़ा फिरभी नाले से होकर गुजरा हूँ मैं तो पानी हूँ बुझाया बहुत प्यास फिरभी आँसू बनकर निकला हूँ मैं तो पानी हूँ बारिश बनकर बरसा तो खुश हुआ फिरभी आसमान से छूटा तो धरती पे मिट गया हूँ....

ख़्वाब

स्याह रातें लाल हो चुकीं हैं, हसरतें बदहाल हो चुकीं है, रोज़ मरते है कई ख़्वाब यहाँ जीस्त भी मुहाल हो चुकी है

बादल book 9

देखो नील गगन में उड़ते कितने श्वेत पंख हैं, बिखरातें है झीलमील मोती  जब हो जाते उनके काले तन हैं, उन्हीं मोतियों के घूमील छांव में  गुम कहीं हो जाते हैं, और मृतिका को हरा भरा कर जााते हैं। तपती धूप से जब धरती छटपटा रही होती है, सूखे डालों की कृन्दन से जब फ़िज़ा ग़मगीन हो जाती है बादल बारिश बन तब खुद को मिटा जाते है और मृतिका को हरा भरा कर जाते हैं।।