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मुक्तक बारिश

तुम होती तो बारिश में भींग भी लेता तेरी बाहों में बाहें डाल झूम भी लेता भीगी हुई तुम क्या क़यामत लगती तेरे बदन को इसी बहाने चुम भी लेता

कभी पीती हुई

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पीने का तुझसे अच्छा बहाना ना मिला मिलें बहुत बेगाने कोई अपना ना मिला जहाँ मिल जाती तू भी कभी पीती हुई वो आज तक कहीं मयखाना ना मिला।