जिजीविषा: लघुकथा
एकता प्यार में धोखा खाने के बाद बहुत ही निराश थी, उसको अपने शरीर से घृणा होने लगी थी, और हो भी क्यों नहीं आखिर जिसे वो अपना जीवन साथी समझती थी वो उसके जिस्म को इस्तेमाल करके उसे छोड़ चुका था। अब उसे लगता था कि प्यार के जाल में फंसा कर रमेश ने उसका बहुत नाजायज़ इस्तेमाल किया। अब वो अपने पिताजी, माँ, भाई को कैसे मुह दिखाती, उसकी जिजीविषा नष्ट हो चुकी थी, जीवन का मोल नहीं रहा उसके लिए और अंततः उसने आत्महत्या करने का फैसला किया और वो पंखे से लटक गई।
लेकिन इस ज़िन्दगी की डोर तो उस ऊपर वाले के हाथ में है जो जीवन प्रदान करता है, समय पर उसकी छात्रावास की लड़कियों ने उसे अस्पताल पहुंचा कर बचा लिया।
उसकी बगल वाली बेड पर एक और लड़की ज़िन्दगी के लिए संघर्ष कर रही थी जो हर हाल में जिंदा रहना चाहती थी, उनकी कौनसी सांस आखरी हो पता नहीं। एकता ने नर्स से उस दूसरी लड़की के बारे में पूछा तो उसके आंखों से खुद ब खुद आँसू बहने लगें, वो निर्भया थी जिसको बहुत ही निर्दयता से बलात्कार किया गया था, फिर भी उसकी जिजीविषा जीवन के लिये प्रेरणा दायक थी, एकता अपनी आत्महत्या के निर्णय पे पछता रही थी और वो फुट फुट कर रोने लगी।
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