बंदर: लघुकथा

अभिषेक को घुमाने शर्मा जी चिड़िया घर पहुंचे, तरह तरह के जानवरों को देखते हुए वो बंदरों के पिंजरे के पास पहुंचे, अभिषेक बंदरों को देखकर बहुत उत्साहित हुआ और ताली बजाने लगा, बहुत सारे लोग मूंगफली, केले पिंजरे के अंदर फेक रहे थे।
शर्मा जी ने अभिषेक से कहा- बेटा हम जब बच्चे थे तो हमारे आंगन में एक अमरूद का पेड़ था वहाँ कभी-कभी बंदरों की टोली आया करती थी अमरूद खाने के लिए, मुझे उन्हें देखकर बहुत गुस्सा आता था उस समय, वो मेरे पसंदीदा अमरूद खा जाया करते थे, ये बोलते बोलते शर्मा जी बहुत उदास हो गएं और अतीत में कहीं खो गएं।
अभिषेक ने उन्हें झंझोरते हुए कहा पापा-पापा क्या हुआ आपको? अब वे बंदर क्यों नहीं आते?
शर्मा जी- बेटा अब बंदर कैसे आएंगे, अब ना कोई आंगन है, ना ही कोई पेड़ बचे हैं, फिर फल हो भी तो कैसे,  पेड़ अब इमारतों में तब्दील हो चुके हैं, जिसपे खुद को इंसान कहने वाले बंदर ही रहा करते हैं ठीक इस पिंजरे में कैद बंदरो के तरह।


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