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Showing posts from October, 2025

छठ के धूम मचल बा

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जेने देखा ओने सजल बा, बिहार में छठ के धूम मचल बा... चमका ता हो सभे घरे घर गली और गढ़ा साफ होखल बा, नदी और नहर के लहर देखा, जेने देखा छठ के धूम मचल बा। जैसे सभले समान होत सूर्य के किरण वैसे हर जात गंगा घाट पे मिलल बा गजब महिमा बा छठी मईया के, परदेश में भी सबके दिलवा में प्रदेश बसल बा, बड़ा होखे की छोटा होखे, सब सुप और दउरा चढात बा, आस्था के मोल कोई पइसा से का करी, छठ में त सब डूबता सूरज के भी पूजत बा जेने देखा ओने सजल बा बिहार में छठ के धूम मचल बा।।

टूटा टूटा वो book 39

टूटा टूटा वो टूटा-टूटा वो  छूटा-छूटा वो रिश्ता-रिश्ता वो  रास्ता-रास्ता वो ये कैसा है दौर सब रहे हैं दौड़ मंज़िलों की ओर इंसानो की होड़।। टूटा -टूटा वो  छूटा-छूटा वो रस्मे-रस्मे वो  राहें-राहें वो ये कैसा है शहर लगता है डर जिंदगी जैसे हो ज़हर वक़्त जरा तू ठहर वक़्त जरा तू ठहर।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो यारी-यारी वो गलियां-गलियां वो ये कैसा है बाग, नहीं उगते गुलाब जाने क्यों लगी है आग दिलों में ना हो कोई भाग दिलों में ना हो कोई भाग।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो

टिके रहो book37

टिके रहो के हर जीत मुमकिन है, मुमकिन बिना नामुमकिन का भी अस्तित्व नहीं, ना को अपने अंदर रौंद दो, नकारात्मकता से दूर रहो, रुको नहीं बस चलते चलो टिके रहो बस टिके रहो।। जिस पथ पे तुम चल रहे हो वहां पहले कोई आया होगाउस पथ को किसी ने तो बनाया होगा,               एक नवीन पथ का तुम भी निर्माण करो,              जिसपे पे अनेको युवा चल पाएं ऐसा आरम्भ करो,    रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिके रहो।। आज में कुछ ऐसा करो के भविष्य का निर्माण हो, भूतकाल बन जाये तुम्हारा इतिहास ऐसा प्रयास करो, चलते हुए गिरोगे बार-बार लेकिन बस उठ जाना, क्यों चले थे और किसके लिए ये बस याद रखो, रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिक रहो।।

दोस्त book38

दिल तन्हा जब भी होता है दोस्त तू याद बहुत आता है जीवन के इस आपा धापी में तेरा ना होना बहुत खलता है तू ही तो वो कंधा था जिसपे मैं टेक सर सुकून से रोता था तू ही तो वो बन्दा था जिसको मैं अपना मर्म सुनाया करता था तू ही तो वो तिनका था जिसके मैं सहारे जीवन जिया करता था तू ही तो वो हौंसला था जिससे मैं ऊंची उड़ान भरा करता था तू ही तो वो सलाह था जिससे मैं समाधान निकाला करता था तू व्यस्त हो गया अपने जीवन में खुद बाद में बोल कर भूल जाता है तू नाराज़ है मुझसे तो बोल ना रूठा हुआ अच्छा नहीं लगता है तेरी आवाज़ सुने जमाना हो गया अब तो मेरा दम भी घुटने लगता है तेरे बगैर है ये ज़िन्दगी अधूरी सी मेरा जीने का मन भी नहीं करता है महीने में ना सही साल में एक बार तू कम से कम बातें कर सकता है 'प्रभास' बैठा रहता है तेरे इंतेज़ार में याद आ जाए तो फ़ोन कर सकता है

जीने की शर्त book30

अपनी शर्तों पे जीना चाहोगे तो कष्ट होगा ही, यूँही नहीं नदी पत्थरों से टकरा अपनी राह बनाती है, कौन नहीं चाहता कि कैद में बुलबुल रहे, बाज बन जा उससे दुनिया भय खाती है, नभ में जब तू ऊंची उड़ान भरेगा, तब सब तुझे डराएंगे मज़ाक भी उड़ाएंगे, संयम से तू बस उड़ते चले चलना, आसानी से कौन अपना मंज़िल पाया है, कितने आएं और कितने गएं, बस चंद लोग हैं जिन्होंने ने नाम कमाया है ज़िन्दगी तेरी है तो जीने की शर्तें भी तेरी हो, नियमों में बांध कर कौन आज़ादी को रख पाया है।।

कच्ची मिट्टी

कच्ची मिट्टी को कहाँ पता था की वो दीप बन विभा फैलाएगी घनघोर तिमिर को भेद श्री राम को इक दिन राह दिखाएगी।। कुम्हार ने तो बनाये थे बहुत सारी कृतियाँ कलश, घड़ा, घर, घरौंदा, गुल्लक इत्यादि तब वो दीया अपनी किस्मत पे था रोया भट्टी में उसको भी गया था बहुत जलाया- तपाया और वो बनकर रह गया बस एक छोटा सा दीया! साँझ होते ही जब सूर्य का उजास खो गया धरा को जब तिमिर ने अपने आगोश में ले लिया ना कलश दिख रहा था ना ही घर घरौंदा तब उस दीये ने ही फिरसे जलकर प्रकाश था फैलाया स्वाभिमान से भरा वो लौ जैसे सर उठाय खड़ा हो भगवान की आरती का सौभाग्य भी पाया लेकिन बिन बाती बिना तेल के उसका क्या अस्तित्व? शायद एक मिट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं ठीक वैसे ही मनुष्य (दीया) मानवता (बाती) ज्ञान (तेल) सेवा (प्रकाश) के बिना शायद कुछ भी नही...

किसी का इंतेज़ार है क्यों? Book36

जीवन दायनी माँ को आज भी शक्ति की दरकार है क्यों? गंगा को धरती पे अवतरित होने के लिऐ भगीरथ के आव्हान का इंतज़ार था क्यों? हर युग में ही क्या परीक्षा देगी सीता, अग्नि की शुद्धता का प्रमाण है क्या? कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिऐ, आज भी दयानन्द का इंतज़ार है क्यों? आत्मनिर्भर नारी का खुलकर जीना अपराध है क्यों? आम्रपाली जैसी सुंदर प्रतिभावान को भी मुक्त होने के लिए बुद्ध का इंतज़ार है क्यों? अधनारीश्वर प्रभु में भी शिव- शक्ति के बराबरी का स्वरूप है दिखता राधा-कृष्ण हो या सिया-राम पहले माँ का ही नाम लिया है जाता। पुरुष प्रधान इस दुनिया में, महिलाओं को मिले आरक्षण ऐसी माँग ही है क्यों? महिलाओं को सशक्त होने के लिए, आज भी पुरुषों का इंतज़ार है क्यों? प्रकृति से ही मिला जब समानता का अधिकार फिर तुम्हे किसी की प्रमाणता का इंतज़ार है क्यों? किसी पे निर्भर क्यों है रहना ज़िन्दगी खुलकर जियो तुम्हे किसी का इंतज़ार है क्यों? तुम्हे किसी का इंतज़ार है क्यों?

पागलपन की शान book35

हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है, हम तो निकले थे अकेले अब पागलों का काफिला बढ़ता जा रहा है, मैं भी पागल, अरे तू भी पागल पागलों का ठहाका गूँजता जा रहा है। हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है, आज एक पागल चल बसा है तो देखो कैसे नाच रहे हैं, छूटा जमाने से पागल का पीछा तो मिठाइयां बांट रहे हैं, हंस रहे हैं हमें देख कर लोग हम आईना समझ कर हंस रहे है हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है। हर अख़बार में ख़बर छपी है पागलों के नाम का वारंट निकल जा रहा है, मरने लगीं हैं युवतियाँ हर पागल में उनको उनका आशिक़ नज़र आ रहा है हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है। नेताजी आ रहे हैं पागलों से मिलने अब उनको भी हम में अपना वोट बैंक नज़र आ रहा है, पागलों का अलग धर्म बना दो, हर फेंके हुए पत्थर में उन्हें अपना भगवान नज़र आ रहा है, हमारे पागलपन की शान देख कर, अब सारा जमाना पागल हो रहा है।

AAM book34

aam ke ped ke neeche khade ho kar, main aam ko dekh raha tha, bahut der se patthar fek kar, girane ki koshisk kar raha tha, par ek bhi aam mil naa paya, kai dino se main uss aam ki chah mein, roz aata aur torne ki koshish karta, lekin kuchh bhi haanth naa lag paya, ek din gira mere haanth mein, khud toot kar... jo sabse achha tha, baat isme nahin ki jo mila, woh sabse achha tha, baat isme hai ki jo mila,  wahi toa apna tha. आम के पेड़ के नीचे खड़े हो कर में आम को देख रहा था, बहुत देर से पत्थर फेक कर गिरने की कोशिश कर रहा था, पर एक भी आम मिल ना पाया, कई दीनी से मैं उस आम की चाह में रोज़ आता और तोड़ने की कोशिश करता, लेकिन कुछ भी हाँथ ना लग पाया, एक दिन गिरा मेरे हाँथ मैं खुद टूट कर जो सबसे अच्छा था, बात इसमें नहीं कि जो मिला वो सबसे अच्छा था, बात इसमें है कि जो मिला वही तो अपना था।।

मेरे सपनों की नगरी book33

मेरे सपनों की नगरी के शिल्पकार से मिलवा दो जिसने लिखी है मेरी पट कथा उस रचेता से मिलवा दो आँखों इतने तारे क्यों हैं चमचमाते इतने नहीं चाहिए बस एक चाँद ही दिला दो बहुत रंग हैं छूट गए उस कलाकार को कोई तो बता दो इतनी बेजान आवाज़ें जो निकलतीं हैं उन्हें कोई रागिनी तो बना दो जितनी धड़कने उतनी हैं हसरतें मेरे सपनों के संसार में कम से कम एक दिया तो जला दो फंसा हूँ ज़िन्दगी की मझधार में मुझे मेरे माझी से मिलवा दो रात में अकेले डर जाता हूँ ठीक से सो भी नहीं पाता हूँ मुझे कम से कम मेरी माँ से मिलवा दो मेरे सपनों की नगरी के शिल्पकार से मिलवा दो जिसने लिखी है मेरी पट कथा उस रचेता से मिलवा दो

साहस book32

ख़ुश मिज़ाज मौसम में ख़ुश मिज़ाज हम रहने दे यूँही ना दे कोई ग़म  जीवन मैंने माना की तूझमे है बहुत दम साहसी हूँ, है साहस मेरा करम  तेरे हाँथों में  माना के हैं भाग्य कि कमान थका मुझे, गिरा मुझे, कर तू मुझे परेशान हर समय की पटकथा पे गीत लिखता जांउगा, धैरय है इतना के तूझे असमंजस करता जांउगा।

यादें बुक31

दिल की व्याख्या करने को जब काग़ज़ पे क़लम ले उतरा यादों से घिरा मेरा मन भूत काल में चलता चला। तरह तरह के भाव हैं अातें न जाने कैसी है ये व्यथा  यादों के हर रंग को समाने रंग क़लम अब है आ निकला। कितना रोचक कितना सुहाना हर दर्द का तीस-तीस कर जाना वापस अब है किसको जाना अच्छा लग रहा है यादों में आना। गुज़रगएं इतने साल और इतने महीने  आएँ कितने मोड़ छूटें कितने पसिने यादें सिखा रहीं हर पल को जी ले हर पल को जित ले, हर पल जी ले।

रे बिल्लू। book29

उलूल जुलूल फिजुल , ख़ुद  में कहाँ है गुल दिन में टटू  , रात में उल्लू , कैसी तेरी हालत रे बिल्लू। ऐसा वैसा जैसा मिल जाये कुछ पैसा कराता  ऐसा तैसा कैसा है  ये पेशा, न समझ में आये रे बिल्लू। यदा जदा सदा , कैसी है ये विपदा , जैसे हो आपदा, सबसे हो गया जुदा , कैसा है ये वक़्त  रे बिल्लू। यूँही जभी कभी याद जाऊं कहीं , मैं हूँ वही जो अपना था कभी भूल ना जाना हूँ वही मैं बिल्लू।

lo chala book28

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लो चला फिर अपना  मन पीछे छोड़ के , यादों को समेटे , पलकों में अश्क़ छुपाये , अपने नगर हर डगर को अलविदा कह के। रूह की कपकपाहट को कोई महसूस ना कर ले , नम्न नेत्र देख कहीं वो रो  ना दे , रखना पड़ता है चेहरे पे  कहीं अपनों से ये फरेब कोई पदक ना ले। दिल जिग़र आत्मा सब छोड़ कर है जाना , फिर से उसी शहर में जा कर है कमाना , अब तो  काटेंगे हर दिन गिन गिन  के , यादों को सिरहाने रख चुपके से सो है जाना।

Main girunga Phir uthunga book27

Bujha de Jo tere khwab the Bhula de Jo thi Teri manzil maan le haar bas tu abb Maan kar mukaddar isko Main girunga phir uthunga Tut ke bhi phir jutunga Bujh bujh kar hie sahi jalta rahunga Laga le tu zor jitna bhi ye zindagi...... Naa manaunga haar Ho chahe kuchh bhi Main girunga phir uthunga Main girunga phir uthunga बुझा दे जो तेरे ख़्वाब हैं भूला दे जो है तेरी मंज़िल मान ले हार बस तू अब मान कर मुक्कदर इसको मैं गिरूँगा फिर उठूँगा टूट के भी फिर जुटूँगा बुझ-बुझ कर ही सही मैं हमेशा जलता रहूँगा लगा ले तू ज़ोर जितना भी ज़िन्दगी हो चाहे अब जो कुछ भी मैं हर नहीं मानूँगा मैं गिरूँगा फिर उठूँगा।

महात्मा बन गएं

यूँही नहीं गांधी मोहनदास से महात्मा बन गएं काले कोट को त्याग सफेद खादी धारण किया उन्होंने कोर्ट के महत्वकांक्षी गलियारों को छोड़ गांव की पगडंडियों पे चलना पसंद किया गोरे काले का भेद मिटा जात पात से ऊपर उठ उनके लिए हमेशा देशहित सर्वोपरि रहा निहत्ते निडर खड़े हो कर सत्य अहिंसा का मार्ग दिखाया अफ्रीका हो या बिहार शोषण के खिलाफ सत्याग्रह को अपना अहम हथ्यार बनाया आमरण अनसन हो या भूख हड़ताल उन्होंने देशवासियों के लिए हर त्याग किया असहियोग आंदोलन से अहिंसा का पाठ पढ़ाया तो सविनय अवज्ञा हेतु दांडी मार्च भी किया बार-बार जेल जाने पर भी उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का नारा बुलंद किया देश के दो बेटों को साथ लेकर चलना चाहते थे लेकिन देश विभाजित होने से बचा ना सके अंत में वो ना समझो द्वारा गोली का शिकार हो गएं यूँही नहीं गांधी मोहनदास से महात्मा बन गएं।

महात्मा

हर जीव के प्रति रखते थे संवेदना निष्काम कर्म से बने वो महात्मा