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दारुबन्दी12

सब पुलिसिया कारवाई खत्म कर घर पहुंचते भोली को रात के 10 बज चुके थे, थाना प्रभारी विक्रम सिंह पुलिस की गाड़ी से उसे गांव में छुड़वा दिया था, इधर बिरजू इंतज़ार करते करते गुस्साये बैठा हुआ था, उसकी तीनों  बेटियाँ माँ के लिए छटपटा रहीं थीं, सुबह से कुछ खाया जो नहीं था। घर पहुँचते ही बिरजू , भोली था गला पकड़ के दीवार ते तरफ ठेलता चला जाता है, भोली अपने दोनों हाँथो से छुड़ाने की कोशिश करती है, बिरजू बीते दिन की घटना से अनजान उसको बहुत भला बुरा कहता है, भोली के चरित्र को दाग दार कर देता है। भोली सुबह की घटना से पहले ही बहुत आहत थी ऊपर से बिरजू का ये बर्ताव उसके अंदर गुस्से को बढ़ा देता है, उसके अंदर अब मर्दों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार और शोषण को सहन करने की क्षमता नहीं बची थी, भोली अपना पूरा जोड़ लगाती है और जोड़ से चिल्लाती हुई बिरजू को धकेल कर अलग कर देती है, वो चिल्लाहट किसी शेरनी से कम ना थी, वहीं पास में रखे बाँस के बल्ला से तबातोड़ बिरजू की पिटाई करने लगती है, चीखती चिल्लाती हुई भोली उसको पीट पीट कर लहू लुहान कर देती है, बिरजू ने भोली का ऐसा रूप आज तक कभी देखा नहीं था, इतना मारा पिटी का आवा

दारुबन्दी 13

अगले दिन अखबार में भोली द्वारा क्वार्टर बाबा का भांडा फोड़ने की ख़बर अख़बार में आते ही पूरे गाँव में सनसनी फैल गयी, भोली का फोटो, पुलिसवालों और पकड़े गए ढोंगी बाबा के साथ जिसका शीर्षक था एक साहसी महिला द्वारा ढोंगी का भंडाफोड़!  पूरा गाँव उसके साहसपूर्ण कार्य से अचंभित था, लोग यकीन ही नहीं कर पा रहे थे कि भोली ऐसा काम भी कर सकती है। उसके घर पे बधाई देने वाले लोगो का तांता लगने लगा, सब उससे आकर बस यही पूछते कैसे कर लिया तूने ये सब, तुझे बाबा ने छुआ था क्या? तेरे साथ कुछ किया तो नहीं, तेरी आबरू बची है ना अभीतक, औरतें खुद में भी भोली को लेकर कई दिनों तक खुसर पुसर करती रहीं, इसके बावजूद भी भोली बहुतों के नज़र में आ चुकी थी राज्य भर की अनेकों महिला सशक्तिकरण वाली संस्थान के सदस्य उससे मिलने आते और उसको परोत्साहन राशि और सम्मान देते, यहाँ तक कि उस क्षेत्र के विधायक वसंत यादव ने भी 50000 नकद और क्षेत्र गौरव का सम्मान दिया और बिरजू को अपने यहाँ काम देने का भी वादा किया। भोली अब अपने गाँव में एक शक्ति की मिशाल बन चुकी थी, जो औरतें उसकी पहले चुगली करती फिरती थी वो भी उसके पीछे पीछे चलने लगीं थी। वही भ

जज़बातों की ड्रीम राइड

जहां से चला था घूमकर फिर वहीं खड़ा हूँ, अभी पूर्णतः मरा नहीं, अधमरा हूँ। टूटा-टूटा वो , छूटा-छूटा वो रिश्ता-रिश्ता वो ,रास्ता-रास्ता वो ये कैसा है दौर,सब रहे हैं दौड़ मंज़िलों की ओर,इंसानो की होड़।। आकांक्षाओ और इक्षाओं के बीच, कहीं तो आज़ादी दब सी गयी है, हर कुछ पाने की असीम चाह में, ज़िन्दगी देखो कहीं छूट सी गयी है, टूटा -टूटा वो, छूटा-छूटा वो रस्मे-रस्मे वो, राहें-राहें वो ये कैसा है शहर लगता है डर जिंदगी जैसे हो इक ज़हर, वक़्त जरा तू ठहर वक़्त जरा तू ठहर।। मन को जब खामोश अकेले टटोलता हूँ, तो एक दर्द का आभाष होता है, सब कुछ पाकर भी जैसे कुछ ना पाया हो, ये जीवन अधूरा सा रह गया प्रतीत होता है। मुसाफ़िर यूँही चलता रहा, ना ठहरा, ना रूका मंज़िल तू हि बता ना पास मैं आया, ना दूर तू गया। जहां से चला था घूमकर फिर वहीं खड़ा हूँ, अभी पूर्णतः मरा नहीं, अधमरा हूँ।

जज़्बातों की ड्रीम राइड मोटिवेशन

अपनी शर्तों पे जीना चाहोगे तो कष्ट होगा ही, यूँही नहीं नदी पत्थरों से टकरा अपनी राह बनाती है, कौन नहीं चाहता कि कैद में बुलबुल रहे, बाज बन जा उससे दुनिया भय खाती है, नभ में जब तू ऊंची उड़ान भरेगा, तब सब तुझे डराएंगे मज़ाक भी उड़ाएंगे, संयम से तू बस उड़ते चले चलना, आसानी से कौन अपना मंज़िल पाया है, कितने आएं और कितने गएं, बस चंद लोग हैं जिन्होंने ने नाम कमाया है ज़िन्दगी तेरी है तो जीने की शर्तें भी तेरी हो, नियमों में बांध कर कौन आज़ादी को रख पाया है

युगों युगों

समय की फेर में फंसा तो सूर्य भी है लेकिन देखो कैसे वो डूबता रहा, उगता रहा और चमकता रहा तू ये मत भूल के तू इंसान है युगों- युगों से कैसे तू लड़ता रहा, जूझता रहा और उभरता रहा..

तस्वीरें

मेरी तस्वीरें बेजुबां नहीं वो बहुत कुछ कहतीं हैं अपने अंदर छुपा रखा है एक पल को जो गुजरे हुए कल की एक दास्तां बयां करतीं हैं मेरी तस्वीरें हाँ जरूर ख़ामोश दिखतीं हैं  मगर समेट रखा है अपने अन्दर अनंत यादों को जो बहुत सारी बातें किया करतीं हैं हाँ बहुत बातें किया करती हैं मेरी तस्वीरें।

rishte

Haan tuta hua pada tha wo ghar ke ek kone mein bahut dino se,  koi uspe dyaan bhi nahin deta yunhi pada hua tha wo mahino se, Family members aate jaate ghumte phirte rehte uske charo traf hie Lekin koi bhi haal tak nahin  puchhta tha usse, Aadat jo ho gayi thi sabhi ko unhi jo rehne ki, Sab busy chal rahe the apni apni zindagi mein, Kisi ko koi parwah nahin aakhir zindagi toa chal hi rahi thi, Haan zindagi kisi ke liye rukti nahin bas chalti rehti hai Kabhi khamosh toa kabhi chinkhti hui daaurti bhagti rehti hai Shehar mein, shehar ki galiyon mein Unn makaano mein Jahan tute pade milte hain kisi kone mein Khamosh gumsum darre hue se rishte. (2)