क्रेच
अच्छा हुआ विमला तुम आ गयी, देखो दो दिन से घर कितना गंदा पड़ा है, कहाँ चली गयी थी? तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था, जैसे तैसे रोटी बनाकर बस एक समय ही खा पाया, कम से बता कर जाती की कुछ और इंतज़ाम कर लेता, मेहता जी अपने गुस्से को दबाए हुए नर्म भाव से अपनी कामवाली से बोल रहे थे।
आखिर गुस्सा करते भी तो कैसे उनकी पत्नी कौशल्या अपने बेटे विशाल के पास दिल्ली गयी हुई थी और वो घर के सारे किर्याओं के लिए विमला पे ही आश्रित थे।
शाम में कौशल्या का फ़ोन आया तो उस पे ही बरस पड़े, अरे कब तक आओगी, यहां जीना मुहाल हो गया है अकेले, वो तो आज विमला आ गयी वरना ये तुम्हारा बूढ़ा आज भूख से तड़प कर जान ही गवा देता। कौशल्या- ऐसा क्यों बोल रहे हैं, शुभ-शुभ बोलिये मरे आपके दुश्मन, अभी तो बस 5 दिन ही हुए हैं आये हुए, बहु और बेटा तो एक महीने रुकने के लिए बोल रहे हैं।
मेहता जी- एक महीना! दिमाग खराब हो गया है क्या तुम्हारा।
तभी कौशल्या से फ़ोन झपट कर उसका बेटा विशाल पापा को प्रणाम करते हुए बोलता है, पापा आप भी आ जाइए यहाँ, क्यों वहां अकेले रह रहे हैं, मेरी तो नौकरी है जिसे छोड़ वहां नहीं आ सकता, आप तो अवकाश ग्रहण कर चुके हैं फिर आने में क्या दिक्कत है।
मेहता जी- नहीं बेटे मैं वहां नहीं आ पाऊंगा, इतनी मेहनत से एक- एक पाई जोड़ के तुम्हारी पढ़ाई के बाद जो पैसे बचे उनसे ये घर बनाया, अब इसमें रहने के लिए तुम ही नहीं हो, और मैं आ जाऊंगा तो फिर इन पेड़-पौधों का क्या होगा, ये भी तो मेरी तरह किसी और पे ही आश्रित हैं।
विशाल- अरे पापा आपको अपने घर और पेड़ों की पड़ी है, मैं और सोनम आफिस चले जाते हैं तब हमें अपने दोनों बच्चों को क्रेच में रखना पड़ता है, दस हज़ार महीना देना पड़ता है दोनों के लिए अलग से, आप आ जाएंगे तो कम से कम वो पैसे तो बचेंगे।
ये सुनते ही मेहता जी उदास हो फ़ोन रख देते हैं।
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