लॉक डाउन : कोरोना

सब कुछ थमा ठहरा सा है
समय भी थक कर रुक गया सा है
वातावरण में जो घट गया है प्रदूषण
दिखता नभ भी अब नीला- नीला सा है।
जब भी मानव ने प्रकृति का शोषण किया
प्रकृति ने अपने तरीकों से ऐतराज़ जताया
कभी अधिक बारिश तो कभी सूखा
कहीं भूकंप तो कहीं सुनामी तो कहीं बाढ़
जिससे हो जाते हैं कितने ही घर तबाह
हाँ बात उन्ही घरों की है वो कंक्रीट की इमारतें
वही कंक्रीट जो अब बिछा है उपजाऊ मिट्टी पे
हाँ तो ये इंफ़्रा स्ट्रक्चर भी तो जरूरी है ना
जिससे पता चलता है कि देश कितना समृद्ध है
भले ही इनको बनाने में कितना भी प्रदूषण फैले
हाँ बहुत जरूरी है ये प्रौद्योगिकीकरण वरना बताओ
इतनी गर्मी में हम बिना एयरकंडिशनर के कैसे रहते
बिना टेलेविज़न के कैसे समय व्यतीत करते
ये जो मोबाइल की तरंगों से पंछी का जीना मुश्किल है
वो क्या है हमारी मोबाइल की जरूरतों के सामने
आखिर इस लॉक डाउन में यही तो सहारा है
जिसकी पहले से ही इतनी आदत पड़ी थी कि
सोशल डिस्टनसिंग रखने में कोई दिक्कत ही नहीं हुई
वरना सोंचो जैसे हम पहले दोस्तों/रिश्तेदारों से मिलते थे
अब भी वैसे की रिश्ते बनाये रखते तो आखिर
इतने लंबे लॉक डाउन में हम घरों में कैद कैसे रह पाते,
वैसे भी ये मार्च का महीना है 
सब जगह अर्थवयवस्था की बातें होनी चाहिए थीं
एक कर्मचारी अपने सहकर्मी से लगा होता
एक कंपनी दूसरी कंपनी से लगी होती
एक देश दूसरे देश से लगा होता प्रतिस्पर्धा में
लेकिन देखो ना एक बहुत ही छोटे से वायरस ने
जिसको हम अपनी खुली आँखों से भी नहीं देख सकते
उसने सबके अंदर मानवता को जगा दिया है
या ये बता दिया है कि मानव ही सर्वश्रेष्ठ नहीं
इस धरती पे रहने वाले अन्य जीव भी अहम हैं
इस प्रकृति के बनाये नियम सबसे महत्वपूर्ण हैं।


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