पेड़ वाले पैसे: लघुकथा

अरविंद अपनी कार में सरसराता हुआ पटना से ही सटे नौताब पुर के तरफ जा रहा था, आँखों पे काला चश्मा धूप से बचने के लिए पहन रखी थी और गाड़ी का वातानुकूलित यंत्र गर्मी से निज़ात दिला रहा था। नौबतपुर में अरविंद की 20 बीघा ज़मीन थी जिसे एक बिल्डर खरीदना चाहता था। वो अपने गंतव्य स्थान पे पहुंचा तो वहाँ बिल्डर उसका पहले से इंतेज़ार कर रहा था। उसका ज़मीन एक बगीचा था जिसमे बहुत सारे आम, अमरूद, केला इत्यादि फलों के वृक्ष लगे हुए थे जिसे अरविंद के पिता ने बड़े ही चाव से लगाया था। बिल्डर के एक आदमी ने अरविंद को बोला भी भाई साहब बहुत अच्छा बगीचा है आपका, ये पेड़ पौधे बहुत खूबसूरत लग रहे है, इसके अलावा कोई खाली ज़मीन नहीं है क्या आपके पास, लालची अरविंद को तो बस करोड़ो रूपये दिख रहे थे, झट से बोला नहीं यही आखिरी ज़मीन की खेप बची है इस इलाके में, बिल्डर से मोल भाव करके अरविंद बयाने में 10 लाख रूपए लेकर वहाँ से निकल गया।
वापसी में गर्मी से प्यास लगी तो कार में पड़े पानी को पीते हुए, खाली बोतल को सड़क पे फेकता हुआ चल दिया, तभी कुछ दूर चलने पे उसकी गाड़ी खराब हो गयी, आगे इंजन से धुआँ निकलने लगा, बोनट उठा कर देखा तो पूरा इंजन गर्म हो चुका था। गाड़ी में पानी तलाशा तो कुछ नहीं मिला और ना ही खाली बोतल ही दिखी जिसमे वो कहीं से पानी भर लाता, वैसे भी वो जगह सुनसान थी आस पास कोई गाँव या रिहायसी इलाका नहीं दिख रहा था, दोपहर की प्रचंड धूप में उसकी हालत खराब हो रही थी, आस पास नज़र घुमाया पेड़ की छांव के लिए तो उसे एक पेड़ नहीं दिखा, प्यास और गर्मी ने उसके सारे घमंड को चकना चूर कर दिया था, पेड़ बेचकर मिले पैसे उस समय किसी काम नहीं आए।

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