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Showing posts from November, 2025

पिता book54

दो जोड़ी कपड़े में ज़िन्दगी बिता देना बिना दिखावे के साधारण जीवन जीना पाई पाई पैसे जोड़ अपने बच्चों को पढ़ाना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना हमारी बेहतरी के लिए प्रतिबंध लगा रखना उनका बहुत बातों पे शख्त रूप अख्तियार कर लेना हमारे भविष्य के लिए अपना आज कुर्बान कर देना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना अपना पेट काट कर अपने बच्चों का पेट भरना अच्छे घर में बेटियों की शादी करना साथ में अपना खुद का नया घर भी बना लेना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना खुद की ख्वाहिशों का गला घोंट देना हमारे ख्वाबों के लिए दिन रात एक कर देना कभी किसी से कोई शिकायत ना करना उस पिता के बारे में कुछ भी कम है कहना।

पत्थर 50

कौन कहता है पत्थरों को दर्द नहीं होता फिर वो आवाज़ें...वो चीखें कैसी हैं जो निकलतीं हैं उनके तोड़े जाने पड़ वो भी तो बने हैं अणुओं से जो जुड़े हुए हैं एक दूसरे से ठीक उसी तरह जैसे हम जीव बने हैं कोशिकाओं से हाँ! ये अलग बात है कि हमारी तरह उन्हें ज़िन्दा रहने के लिए खाना नहीं पड़ता और अगर ये खाने पीने का मामला ना होता तो फिर हम इंसानों और पत्थरों में तुम ही बताओ आखिर क्या फर्क होता? जैसे किसी पत्थर से ठेस लग जाने पड़ कभी पत्थर को रोते देखा है नहीं ना वैसे ही हम इंसान भी किसी को ठेस पहुंचा भला कहाँ कभी रोते हैं लेकिन किसी को चोट पहुचाने के दौरान आह की आवाज़ खुद से भी जरूर आती है ठीक उन्हीं पत्थरों की तरह।

क्या पूरा कर पाऊंगा book48

आँखों में नींदें नहीं अब ख्वाब रहते है पलती है ख्वाहिशें बच्चों की उम्मीदें उनकी सारी जरूरतें क्या पूरा कर पाऊंगा अच्छा खाना पीना अच्छे से रहना सहना पढ़ना लिखना पहनना बिस्कुट चॉकलेट चिप्स छोटी-छोटी सी चाहतें क्या पूरा कर पाऊंगा नन्हे-नन्हे हैं ख्वाब थोड़ी सी है ख्वाहिशें एक टॉफी भर ही तो हैं इनकी फरमाईशें बच्चों जैसी ही जरूरतें क्या पूरा कर पाऊंगा आजकल कमा नहीं पाता घर संभाल नहीं पाता बंद हो गया कारोबार कोई नौकरी भी नहीं देता आखिर बिना पैसे के क्या पूरा कर पाऊंगा

ज़िन्दगी जी बस खुल कर जीने के लिए book42

समय मुझे अपने बहाव में बहा देना चाहती है मैं अपने हिसाब से तैरना चाहता हूँ, लोग तो अपने हिसाब से चलाते थे और चलाते ही रहेंगे, मैं एक बार और बार-बार ज़िन्दगी से मुहब्बत करना चाहता हूँ, लोगो ने तो समय को भी घड़ी में कैद कर रखा है मैं जिंदा नहीं महज जीने के लिए आज़ाद था और मैं आज़ाद ही रहना चाहता हूँ। मेरे हौंसलों की उड़ान अभी देखी हैं कहाँ आसमान को भी धरती पे झुका रखा है गिर गया एक दो बार तो क्या मैं मिट्टी में मिल गया हूँ देख फिर खड़ा हूँ फिर गिरने के लिए, गिरने के डर से तू भले ना चले, देख मेरे पर फिर उगे हैं उड़ान भरने के लिए। देख मेरे पर फिर उगे हैं उड़ान भरने के लिए।। बंदे मेरे बंधु तू कोशिश करना ना छोड़ देना ऊपर वाला जरूर मिलेगा तेरी फर्याद सुनने के लिए शिकायत ना करना तू उसकी और ना किसी की शुक्रिया अदा करना बेशक़ तुझे ज़िन्दगी देने के लिए अपने हिसाब से जीना है तो लड़ना ही पड़ेगा आज कल भीख भी देते हैं लोग पुण्य कमाने के लिए औरो की ना देख  अपनी  करता जा ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए ज़िन्दगी जी तो बस खुल कर जीने के लिए।।