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टूटा टूटा वो book 39

टूटा टूटा वो टूटा-टूटा वो  छूटा-छूटा वो रिश्ता-रिश्ता वो  रास्ता-रास्ता वो ये कैसा है दौर सब रहे हैं दौड़ मंज़िलों की ओर इंसानो की होड़।। टूटा -टूटा वो  छूटा-छूटा वो रस्मे-रस्मे वो  राहें-राहें वो ये कैसा है शहर लगता है डर जिंदगी जैसे हो ज़हर वक़्त जरा तू ठहर वक़्त जरा तू ठहर।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो यारी-यारी वो गलियां-गलियां वो ये कैसा है बाग, नहीं उगते गुलाब जाने क्यों लगी है आग दिलों में ना हो कोई भाग दिलों में ना हो कोई भाग।। टूटा-टूटा वो छूटा-छूटा वो

टिके रहो book37

टिके रहो के हर जीत मुमकिन है, मुमकिन बिना नामुमकिन का भी अस्तित्व नहीं, ना को अपने अंदर रौंद दो, नकारात्मकता से दूर रहो, रुको नहीं बस चलते चलो टिके रहो बस टिके रहो।। जिस पथ पे तुम चल रहे हो वहां पहले कोई आया होगाउस पथ को किसी ने तो बनाया होगा,               एक नवीन पथ का तुम भी निर्माण करो,              जिसपे पे अनेको युवा चल पाएं ऐसा आरम्भ करो,    रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिके रहो।। आज में कुछ ऐसा करो के भविष्य का निर्माण हो, भूतकाल बन जाये तुम्हारा इतिहास ऐसा प्रयास करो, चलते हुए गिरोगे बार-बार लेकिन बस उठ जाना, क्यों चले थे और किसके लिए ये बस याद रखो, रुको नहीं बस चलते चलो, टिके रहो बस टिक रहो।।

दोस्त book38

दिल तन्हा जब भी होता है दोस्त तू याद बहुत आता है जीवन के इस आपा धापी में तेरा ना होना बहुत खलता है तू ही तो वो कंधा था जिसपे मैं टेक सर सुकून से रोता था तू ही तो वो बन्दा था जिसको मैं अपना मर्म सुनाया करता था तू ही तो वो तिनका था जिसके मैं सहारे जीवन जिया करता था तू ही तो वो हौंसला था जिससे मैं ऊंची उड़ान भरा करता था तू ही तो वो सलाह था जिससे मैं समाधान निकाला करता था तू व्यस्त हो गया अपने जीवन में खुद बाद में बोल कर भूल जाता है तू नाराज़ है मुझसे तो बोल ना रूठा हुआ अच्छा नहीं लगता है तेरी आवाज़ सुने जमाना हो गया अब तो मेरा दम भी घुटने लगता है तेरे बगैर है ये ज़िन्दगी अधूरी सी मेरा जीने का मन भी नहीं करता है महीने में ना सही साल में एक बार तू कम से कम बातें कर सकता है 'प्रभास' बैठा रहता है तेरे इंतेज़ार में याद आ जाए तो फ़ोन कर सकता है

जीने की शर्त book30

अपनी शर्तों पे जीना चाहोगे तो कष्ट होगा ही, यूँही नहीं नदी पत्थरों से टकरा अपनी राह बनाती है, कौन नहीं चाहता कि कैद में बुलबुल रहे, बाज बन जा उससे दुनिया भय खाती है, नभ में जब तू ऊंची उड़ान भरेगा, तब सब तुझे डराएंगे मज़ाक भी उड़ाएंगे, संयम से तू बस उड़ते चले चलना, आसानी से कौन अपना मंज़िल पाया है, कितने आएं और कितने गएं, बस चंद लोग हैं जिन्होंने ने नाम कमाया है ज़िन्दगी तेरी है तो जीने की शर्तें भी तेरी हो, नियमों में बांध कर कौन आज़ादी को रख पाया है।।

कच्ची मिट्टी

कच्ची मिट्टी को कहाँ पता था की वो दीप बन विभा फैलाएगी घनघोर तिमिर को भेद श्री राम को इक दिन राह दिखाएगी।। कुम्हार ने तो बनाये थे बहुत सारी कृतियाँ कलश, घड़ा, घर, घरौंदा, गुल्लक इत्यादि तब वो दीया अपनी किस्मत पे था रोया भट्टी में उसको भी गया था बहुत जलाया- तपाया और वो बनकर रह गया बस एक छोटा सा दीया! साँझ होते ही जब सूर्य का उजास खो गया धरा को जब तिमिर ने अपने आगोश में ले लिया ना कलश दिख रहा था ना ही घर घरौंदा तब उस दीये ने ही फिरसे जलकर प्रकाश था फैलाया स्वाभिमान से भरा वो लौ जैसे सर उठाय खड़ा हो भगवान की आरती का सौभाग्य भी पाया लेकिन बिन बाती बिना तेल के उसका क्या अस्तित्व? शायद एक मिट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं ठीक वैसे ही मनुष्य (दीया) मानवता (बाती) ज्ञान (तेल) सेवा (प्रकाश) के बिना शायद कुछ भी नही...

किसी का इंतेज़ार है क्यों? Book36

जीवन दायनी माँ को आज भी शक्ति की दरकार है क्यों? गंगा को धरती पे अवतरित होने के लिऐ भगीरथ के आव्हान का इंतज़ार था क्यों? हर युग में ही क्या परीक्षा देगी सीता, अग्नि की शुद्धता का प्रमाण है क्या? कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिऐ, आज भी दयानन्द का इंतज़ार है क्यों? आत्मनिर्भर नारी का खुलकर जीना अपराध है क्यों? आम्रपाली जैसी सुंदर प्रतिभावान को भी मुक्त होने के लिए बुद्ध का इंतज़ार है क्यों? अधनारीश्वर प्रभु में भी शिव- शक्ति के बराबरी का स्वरूप है दिखता राधा-कृष्ण हो या सिया-राम पहले माँ का ही नाम लिया है जाता। पुरुष प्रधान इस दुनिया में, महिलाओं को मिले आरक्षण ऐसी माँग ही है क्यों? महिलाओं को सशक्त होने के लिए, आज भी पुरुषों का इंतज़ार है क्यों? प्रकृति से ही मिला जब समानता का अधिकार फिर तुम्हे किसी की प्रमाणता का इंतज़ार है क्यों? किसी पे निर्भर क्यों है रहना ज़िन्दगी खुलकर जियो तुम्हे किसी का इंतज़ार है क्यों? तुम्हे किसी का इंतज़ार है क्यों?

पागलपन की शान book35

हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है, हम तो निकले थे अकेले अब पागलों का काफिला बढ़ता जा रहा है, मैं भी पागल, अरे तू भी पागल पागलों का ठहाका गूँजता जा रहा है। हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है, आज एक पागल चल बसा है तो देखो कैसे नाच रहे हैं, छूटा जमाने से पागल का पीछा तो मिठाइयां बांट रहे हैं, हंस रहे हैं हमें देख कर लोग हम आईना समझ कर हंस रहे है हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है। हर अख़बार में ख़बर छपी है पागलों के नाम का वारंट निकल जा रहा है, मरने लगीं हैं युवतियाँ हर पागल में उनको उनका आशिक़ नज़र आ रहा है हमारे पागलपन की शान देख कर अब सारा जमाना पागल हो रहा है। नेताजी आ रहे हैं पागलों से मिलने अब उनको भी हम में अपना वोट बैंक नज़र आ रहा है, पागलों का अलग धर्म बना दो, हर फेंके हुए पत्थर में उन्हें अपना भगवान नज़र आ रहा है, हमारे पागलपन की शान देख कर, अब सारा जमाना पागल हो रहा है।