दारुबन्दी परिचय
जिस तरह खूबसूरत शाम जो अपने ओट में एक अंधेरे को छुपाये रहती है हम उसकी खूबसूरती को निहारते रहते हैं और अंधेरा हमें अपने आगोश में ले लेता है ठीक उसी तरह पीने वाला तो बस शराब के नशे में मदहोश रहता है उसे वो समय सबसे अच्छा लगता है और धीरे धीरे उसे पता भी नहीं चलता के कब शराब उसे पीने लग जाती है, दोस्तों की संगति में पिया हुआ एक घूंट कब एक लत का रूप ले लेती है पता भी नहीं चलता, साधरणतः पहले एक व्यक्ति अलग अलग पायदानों से गुजरता है सबसे पहले वो उसने पिला दिया वाले कैटेगरी में रहता है, दूसरा फिर वो ओकाशनल ड्रिंकर बनता है, फिर सामाजिक पियक्कड़, सामाजिक के साथ अकेले भी पी लेने वाला और अंतिम में बेवड़े की उपाधि लिए फिरता रहता है जिंदगी भर चाहे वो पिये या नहीं, इस दौरान वो जहां वो कुछ पेग से शुरुआत करता है वहीं आखरी वाले पायदान तक वो घर में रखे हर एक बोतल की हर एक बूंद तक पिये वाल बन जाता है और हर बार पीने के बाद कल से नहीं पियूँगा शराब बहुत खराब चीज़ है बोल कर सो जाता है और सुबह उठने के पश्चात जब उसकी अत्रियाँ जवाब देने लगतीं हैं और शरीर फड़फड़ाने लगता है तब आज से नहीं पियूँगा बोलकर वो अपने रोजमर्रा के काम में लग जाता है.. लेकिन प्रकृति का ये नियम है जिस चीज़ से जितना भागना चाहोगे वो उतना ही आपको अपने पास खींच लेता है.. शाम होते ही किसी दोस्त का फ़ोन आ जाता है या कोई शराब लेकर आप तक पहुंच जाता है और आपका जो दृढ़ निश्चय नहीं है पीने का वो चकना चूर हो जाता है वो तो भला हो बजरंग बली का और शनिदेव का जो सप्ताह में एक दिन शराबी शरीर को आराम दे पाता है।
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