बदरा

नित काली रात बदरा छुपके आये,
भरल पानी लादे अहंकार का गरजाए,
सावन भादो छुपाये अम्बर अपने पंख फैलाये,
खोवत अस्तित्व ज्यूँ-ज्यूँ 
बरसत जाए।

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