काश

काश के ये समय ठहर जाता
मुद्तो बाद वो नज़र आएं
जीने का सबब तो भूल बैठे थे
अब जिंदा होने का यक़ीं है आया

बरसो के बिछड़े मिले कुछ पल के लिए
जुदा फिरसे तो होना ही था
फिर ये मिलना कैसा मिलना था
जो फिर उदासी के आगोश में घिर गया।

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