जिसे देखने की आदत हो जाये, जिसे देखे बिना मन ना लगे, जिसके लिए मैं क्लास जाता था, रविवार को चाहता था कि कैलेंडर से ही हटा जाए क्योंकि उस दी छूटी होती थी, वो दो घंटे का क्लास ही मेरी ज़िंदगी बन चुका था, उसका उस दिन कोचिंग नहीं आना, मेरा दिमाग बहुत सारे प्रश्नों को जन्म देने लगा था जैसे क्या उसे मुझसे बात करके अच्छा नहीं लगा, उसने मुझसे मेरा caste पूछा और मैंने बताया नहीं क्या इस वजह से वो नहीं आयी, दूसरी तरफ इन सवालों के जवाब देता ऐसी तो कुछ खराब बात हमारे बीच हुई ही नहीं फिर भला वो क्यों नहीं आएगी, caste नहीं बोलने के बाद उसने बोला तो की दोस्ती में caste जान कर क्या करना, मासूम दिल, दिमाग की सारी नकारात्मक बातों को नज़रंदाज़ कर उसमें कहीं खो जाता, अपनी स्वप्न नगरी में जहाँ खूबसूरत पहाड़ थे, वादियाँ थी, बादल, मखमली हवा, हरे घाँस, खूबसूरत फूलों की बगिया और उन सबके बीच सिर्फ मैं और स्वाति थे। अगले दिन वो क्लास में आई और पूरी तरह से मुझे इग्नोर किया, उसने मेरी तरफ देखा है नहीं, पूरे क्लास में सिर से नज़रे बचा मैं बस उसे ही देखता रहा कि अब वो पलटेगी और मुझे देखेगी लेकिन वो 2 घंटे बीत गएं उसने ए...