हर हर गंगे
कभी देखा है माँ गंगे के चरणों में पड़ी हुई, पूजा से उत्तपन व्यर्थ वस्तुओं को, जिन्हें हम कभी पूजते थे उन् खंडित मूर्तियों को , या इबादत में लिपटी हुई उस डर रूपी आस्था को, क्या वो मात्र जल को दूषित करने वाले वस्तुएं हैं, नहीं बल्कि छाप छोड़ती अशभ्यता की लक़ीडें हैं I इतनी अलोकिक कहानी है पुरानी हमारी, भगीरथ के कठोर तपस्या से, निकली ब्रह्मलोक से, क्रोध से अपने बहा देती धरती को, तभी हुए प्रकट जटाधारी, बाँधा अपनी जटाओं से, तो शांत हुईं गंगा मैया प्यारी। सदियों से सृजन है किया, कितनो के पाप धोये तो, कितनो को मुक्त है किया, सड़ा, गाला, मैला ना जाने क्या क्या बहा ले गयीं, और हमने माँ कह कर भी उनका न सोंचा न भला किया। लिखा है की कलियुग के अंत में, गंगा हो जाएंगी विलीन, वो दिन जल्द ना आ जाए, इससे पहले स्टार्ट करो CLEANING. कभी देखा है माँ गंगे के चरणों में पड़ी हुई, पूजा से उत्तपन व्यर्थ वस्तुओं को, जिन्हें हम कभी पूजते थे उन् खंडित मूर्तियों को , या इबादत में लिपटी हुई उस डर रूपी आस्था को, क्या वो मात्र जल को दूषित करने वाले वस्तुएं...